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Sandeep Dwivedi
Bhojpuri language: भोजपुरी समाज के वर्तमान स्थिति को देखने से पता चल रहा हैं कि खेती किसानी की हालत अच्छी नहीं चल रही हैं।गन्दी मानसिकता का नया विधान रचती चली जा रही हैं भोजपुरी, सिनेमा और संगीत किसी भी समाज एवं संस्कृति को एक विशेष पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिनमें से भोजपुरी भाषा भी एक हैं। लेकीन पिछले कुछ दिनों से भोजपुरी भाषा अपनी अश्लीलता को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है, आज भोजपुरी भाषा का वर्चस्व विशेष रूप से भारत के कई राज्यों में फैला हुआ है जिसे खूब देखा और सुना जा रहा हैं, तो वही भोजपुरी अंचल में पहले महिलाएं शादी-विवाह के अवसर पर पारम्परिक गीत गाती थीं लेकिन अब इस तरह की रस्में खत्म होती जा रही हैं और अगर बची हैं तो फिल्मी गीतों के रूप में, यहां तक कि अब अनुष्ठानिक गीत भी फिल्मी धुनों पर गाया जाने लगा है जिससे गांव की संस्कृति पुरी तरह से खत्म होती हुई दिख रही हैं। आज भोजपुरी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बोला जा रहा है, लेकिन एक कड़वा सच यह भी हैं कि अधिकतर बाहरी राज्यों में रहने वाले भोजपुरी भाषी लोग अपनी भाषा जो भोजपुरी हैं उसे बोलने से कतरा रहे हैं जिसका कारण है भोजपुरी में फैल रहीं अश्लीलता।
लेकिन फिर भी आज भोजपुरी एक बड़ा दर्शक वर्ग हो गया हैं।लेकिन वास्तविकता से देखा जाये तो आज भी भोजपुरी भाषा व संस्कृति की पहचान हिरा डोम, बुलाकी दास, दुधनाथ उपाध्याय, रघुवीर नारायण, महेन्द्र मिश्रा, भिखारी ठाकुर जैसे बड़े कलाकारो और कवियों से हैं। भोजपुरी आज अश्लीलता को दिखा और सुना कर इतनी बदनाम हो चुकी हैं कि कम से कम संख्या वाले मैथिली और नेपाली भाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया, लेकिन भोजपुरी आज भी अपने अस्तित्व कि लड़ाई लड़ रहा हैं एक नजर अगर हम संविधान की आठवी अनुसूची पर डालें, तो इसमे बाईस भारतीय-भाषाओँ को शामिल किया गया है, पर विडंबना तो ये है कि उन बाईस भाषाओं में से असमिया, मणिपुरी, संथाली, कश्मीरी, आदि कई ऐसी भाषाएं भी हैं, जिन्हें बोलने वालों की संख्या, भोजपुरी बोलने वालों की तुलना में काफी कम है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रविस्तार के मामले में भी भोजपुरी आठवी अनुसूची की कई भाषाओँ पर भारी है! देश, तो देश, विदेशों में भी भोजपुरी मजबूती से मौजूद है।
भारत में पूर्वी-यूपी, पश्चिमी-बिहार और झारखण्ड जैसे राज्यों से लिए नेपाल, मारिशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद आदि तमाम देशों तक भोजपुरी व्यापक रूप से व्याप्त है। मारिशस में तो भोजपुरी को राष्ट्रभाषा का दर्जा तक प्राप्त है। पर इन सब उपलब्धियों के बावजूद आज अपने ही देश में भोजपुरी को अब-तक संवैधानिक मान्यता न मिलना, उसके प्रति अबतक की सभी सरकारों के रूखेपन को ही दशार्ता है। अगर भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का समर्थन करने वाले हैं, तो बहुतों विरोधी भी हैं, उनके पास विरोध के लिए कई तर्क हैं। विरोधियों का सबसे बड़ा तर्क ये होता है कि भोजपुरी की अपनी कोई लिपि नही है वो देवनागरी लिपि के सहारे लिखी जाती है पर ऐसा कहने वालों का ये तर्क पूर्णतया निरर्थक ही प्रतीत होता है, क्योंकि ये कोई आधार नही हो सकता किसी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने या ना देने के लिए चूंकि, विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा अंग्रेजी की भी अपनी कोई लिपि नही है, अंग्रेजी लेखन के लिए जिस लिपि का प्रयोग किया जाता है, वो रोमन-लिपि है।
विरोधियों का एक तर्क ये भी होता है कि भोजपुरी कोई भाषा नही, वरन हिंदी की ही एक उपभाषा है पर उनका ये तर्क भी बेबुनियाद ही प्रतीत होता है, क्योंकि भोजपुरी का अस्तित्व हिंदी से अलग, भोजपुरी-सिनेमा हिंदी से अलग, भोजपुरी-साहित्य हिंदी से अलग, समान्तर रूप से समुन्नत हुआ है। ‘भोजपुरी सांस्कृतिक सम्मलेन’ ‘विश्व भोजपुरी सम्मलेन‘ जैसे और भी कई संगठन भोजपुरी साहित्य के विकास में निरंतर रूप से संलग्न हैं। इंटरनेट पर भी ‘जयभोजपुरी.कॉम’, ‘अंजोरिया.कॉम’, ‘भोजपुरिया माटी.कॉम’ आदि तमाम वेबसाईटों के द्वारा तमाम लोग भोजपुरी के प्रचार-प्रसार में तन-मन-धन से जुटे हैं। आज भोजपुरी-संगीत और भोजपुरी-सिनेमा भी उन्नति की ओर ही अग्रसर है, बस जरूरत है तो थोड़ा रचनात्मक होने और अश्लीलता को त्यागने की क्यों कि जब कभी भी भोजपुरी भाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करने की बात उठी तो कभी बोली भाषा का भेद बताकर तो कभी नियमों कि अस्पश्टीकरण का हवाला देते हुए दर किनार कर दिया गया।ऐसे में भोजपुरी इंडस्ट्री में अश्लीलता के खिलाफ खड़े होने और भोजपुरी पहचान के गिरते साख को बचाने हेतु पहले अपनी भाषा को एक संबैधानिक पहचान दिलाने और एक साहित्यक मानक तैयार करने की जरूरत हैं।
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