इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Sri Lanka Going Through Economic Phase : इन दिनों श्रीलंका आर्थिक संकट से जूझ रहा क्योंकि देश का विदेशी भंडार खत्म हो चुका है और राजपक्षे सरकार ईंधन के आयात के लिए भुगतान करने के लिए संघर्ष कर रही है। 1948 में श्रीलंका अंग्रेजों से आजाद हुआ था। उसके बाद से यूं तो श्रीलंका में कई वर्षों से आर्थिक संकट चला आ रहा था, लेकिन कोरोना ने उसे और गहरा कर दिया है। इस समय (अंग्रेजों से आजाद होने के बाद यानि 74 साल बाद) श्रीलंका सबसे ज्यादा कठिक दौर से गुजर रहा है। वहां की जनता को जरूरत की चीजें नहीं मिल पा रहीं। तो चलिए जानते हैं कि क्या कारण है कि श्रीलंका आर्थिक दौर से गुजर रहा है और इसका भारत पर क्या असर पड़ेगा।
बताया जा रहा है कि भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका इस समय सबसे खराब आर्थिक संकट (sri lanka economic crisis) से गुजर रहा है।
देश की जनता ईंधन, रसोई गैस के लिए लंबी लाइन, आवश्यक वस्तुओं की कम आपूर्ति और घंटों बिजली कटौती से जनता महीनों से परेशान है। पिछले हफ्ते 12.5 किलो गैस सिलेंडर की कीमत 4200 रुपए हो गई थी। वहां महंगाई इस कदर है कि चावल 220 रुपए प्रति किलो और गेहूं 190 रुपए प्रति किलो की दर से बिक रहा है। वहीं, एक किलोग्राम चीनी की कीमत 240 रुपए, नारियल तेल 850 रुपए प्रति लीटर, जबकि एक अंडा 30 रुपए और 1 किलो मिल्क पाउडर की रिटेल कीमत 1900 रुपए तक पहुंच गई है। (Sri Lanka Going Through Economic Phase)
Sri Lanka is Facing Economic Crisis Due To These Reasons
क्या राजपक्षे के गलत फैसले-भ्रष्टाचार से श्रीलंका डूब रहा?
- श्रीलंका की दो सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टियां हैं- श्रीलंका फ्रीडम पार्टी, जिसके मुखिया हैं- मैत्रीपाला सिरिसेना। वहीं दूसरी पार्टी है श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना पार्टी- जिसके मुखिया हैं महिंदा राजपक्षे।
- कहते हैं कि 2015 से 2019 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे सिरिसेना पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे 2018 में उनके चीफ आफ स्टाफ और अधिकारियों को रिश्वत लेने के लिए गिरफ्तार किया गया था। सिरिसेना राजपक्षे परिवार पर भ्रष्टाचार में डूबे होने का आरोप लगाते रहे हैं। ताकतवर राजनीतिक परिवार माने जाने वाले राजपक्षे के गलत फैसले और भ्रष्टाचार ने श्रीलंका की हालतखराब कर दी।
राजपक्षे का टैक्स में कटौती का फैसला पड़ा उल्टा
- 2019 में वर्तमान राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने टैक्स में कटौती का लोकलुभावन दांव खेला, लेकिन इससे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा। एक अनुमान मुताबिक, इससे श्रीलंका की टैक्स से कमाई में 30 फीसदी तक कमी आई, यानी सरकारी खजाना खाली होने लगा।
- 1990 में श्रीलंका की जीडीपी में टैक्स से कमाई की हिस्सा 20 फीसदी था, जो 2020 में घटकर महज 10 फीसदी रह गया। टैक्स में कटौती के राजपक्षे के फैसले से 2019 के मुकाबले 2020 में टैक्स कलेक्शन में गिरावट आई।
आंतकी हमला और कोरोना ने टूरिज्म सेक्टर को डुबोया
- श्रीलंका में अप्रैल 2019 में ईस्टर संडे के दिन राजधानी कोलंबो में तीन चर्चों पर हुए आतंकी हमले में 260 से ज्यादा लोग मरे थे। आतंकी हमले ने श्रीलंका टूरिज्म इंडस्ट्री को नुकसान पहुंचाया। रही-सही कसर इसके कुछ माह बाद आई कोरोना महामारी ने पूरा कर दिया। टूरिज्म सेक्टर श्रीलंका में विदेशी मुद्रा कमाने का तीसरा सबसे बड़ा माध्यम है।
- 2018 में श्रीलंका में 23 लाख टूरिस्ट आए थे, लेकिन ईस्टर आतंकी हमले की वजह से 2019 में इनकी संख्या में करीब 21 फीसदी की गिरावट आई और 19 लाख टूरिस्ट ही आए। उसके बाद कोरोना पाबंदियों की वजह से 2020 में टूरिस्ट की संख्या घटकर 5.07 लाख ही रह गई। 2021 में श्रीलंका में 1.94 लाख ही टूरिस्ट आए। श्रीलंका आने वाले टूरिस्टों में सबसे ज्यादा भारत, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के होते हैं। (Sri Lanka Going Through Economic Phase)
कर्ज ने बिगाड़ा लंका का खेल
- पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंका की सरकारों ने काफी कर्ज लिए, लेकिन इसका सही तरीके से इस्तेमाल करने के बजाय दुरुपयोग किया। 2010 के बाद से ही लगातार श्रीलंका का विदेशी कर्ज बढ़ता गया। श्रीलंका ने अपने ज्यादातर कर्ज चीन, जापान और भारत जैसे देशों से लिए हैं। 2018 से 2019 तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे रानिल विक्रमसिंघे ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन को 99 साल की लीज पर दे दिया था। ऐसा चीन के लोन के पेमेंट के बदले किया गया था। ऐसी नीतियों ने उसके पतन की शुरूआत की।
- इसके अलावा उस पर वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलेपमेंट बैंक जैसे आगेर्नाइजेशन का भी पैसा बकाया है। साथ ही उसने इंटरनेशनल मार्केट से भी उधार लिया है। 2019 में एशियन डेवलेपमेंट बैंक ने श्रीलंका को एक ‘जुड़वा घाटे वाली अर्थव्यवस्था’ कहा था। जुड़वा घाटे का मतलब है कि राष्ट्रीय खर्च राष्ट्रीय आमदनी से अधिक होना। श्रीलंका की एक्सपोर्ट से अनुमानित आय 12 अरब डॉलर है, जबकि इम्पोर्ट से उसका खर्च करीब 22 अरब डॉलर है, यानी उसका व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर का रहा है।
- श्रीलंका जरूरत की लगभग सभी चीजें, जैसे-दवाएं, खाने के सामान और फ्यूल के लिए बुरी तरह इम्पोर्ट पर निर्भर है। ऐसे में विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से वह ये जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहा है। पिछले 2 वर्षों में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 70 फीसदी तक घट गया है।
- फरवरी तक श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में केवल 2.31 बिलियन डॉलर ही बचा था, जबकि 2022 में ही उसे लगभग 4 बिलियन डॉलर का लोन चुकाना है। श्रीलंका में महंगाई दर 17फीसदी को पार कर गई है। वहां एक डॉलर की कीमत करीब 298 श्रीलंकाई रुपए तक पहुंच गई है और एक भारतीय रुपए की कीमत 3.92 श्रीलंकाई रुपए हो गई है।
संकट में श्रीलंका के साथ खड़ा है भारत? (Sri Lanka Going Through Economic Phase)
- इस कठिन समय में श्रीलंका की मदद के लिए कोई आगे आया है तो वह है भारत। भारत श्रीलंका को संकट से उबारने के लिए हरसंभव मदद कर रहा है। भारत ने श्रीलंका को दवाइयां, अनाज समेत अन्य जरूरी चीजें खरीदने के लिए 1 अरब डॉलर यानी करीब 7600 करोड़ रुपए की क्रेडिट लाइन को मंजूरी दी है। भारत 2022 की शुरुआत से श्रीलंका को 2.4 अरब डॉलर यानी करीब 18 हजार करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता दे चुका है।
- भारत ने 500 मिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन तेल खरीदने के लिए दी है। इसी के तहत 2 अप्रैल को भारत ने श्रीलंका में 40 हजार मीट्रिक टन डीजल श्रीलंका पहुंचाया है। कुल मिलाकर भारत पिछले 50 दिनों में श्रीलंका को 2 लाख मीट्रिक टन डीजल सप्लाई कर चुका है। भारत ने साथ ही हाल में श्रीलंका को 40 हजार टन चावल भेजे हैं, जो 3 लाख टन चावल की पहली खेप है। भारत ने श्रीलंका के जाफना के तीन द्वीपों पर 12 अरब डॉलर की लागत से तीन विंड फर्म बनाने की भी घोषणा की है।
भारत पर क्या पड़ेगा असर?
- श्रीलंका सकंट का सबसे बड़ा असर भारत में शरणार्थी संकट के रूप में पड़ सकता है। श्रीलंका से बड़ी संख्या में तमिल शरणार्थी भारत आने लगे हैं। इनकी संख्या श्रीलंका का आर्थिक संकट गहराने पर बढ़ सकती है। ये पहली बार होगा जब आर्थिक वजहों से किसी देश से भारत में शरणार्थियों का पलायन होगा। इससे पहले भारत में आए तिब्बती और रोहिंग्या शरणार्थी उनके देश के राजनीतिक कारणों से आए थे।
- श्रीलंका भारत के लिए जियो-पॉलिटिकल रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले दो दशक में श्रीलंका में चीन का प्रभाव बहुत बढ़ा है। ऐसे में भारत नहीं चाहता कि श्रीलंका चीन के चंगुल में फंसे, इसलिए इस संकट के दौरान भारत श्रीलंका की ज्यादा से ज्यादा मदद करना चाहता है।
श्रीलंका में आपातकाल हटा
श्रीलंका में आर्थिक संकट की वजह से लोगों की नाराजगी को देखते हुए सरकार के सभी 26 मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया। केवल राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा नहीं दिया है। गोटबाया ने जल्द बनने वाली सर्वदलीय सरकार में विपक्षी नेताओं को भी शामिल होने का न्योता दिया है। ( economic emergency in sri lanka) इससे पहले अपने घर के बाहर हो रहे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए गोटबाया ने देश में आपातकाल (sri lanka emergency) लागू कर दिया था, जिसे अब हटा दिया गया है।
Sri Lanka Going Through Economic Phase
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