संबंधित खबरें
हेमंत सोरेन से अलग क्या है कल्पना की पहचान? राजनीति में आने से पहले चलाती थीं प्ले स्कूल, JMM की जीत में रही बड़ी भूमिका
महाराष्ट्र-झारखंड चुनाव परिणाम पर आ गया राहुल गांधी का बयान, कह दी ऐसी बात सिर पकड़ लेंगे आप
‘मुझे कहीं न कहीं रुकना…’, महाराष्ट्र चुनाव में मिली करारी हार से पहले शरद पवार ने दे दिए थे ये बड़े संकेत, 14 बार के सांसद और विधायक से कहां हो गई चूक?
राहुल गांधी फूस हुए…कमाल कर गई बहन प्रियंका, दिलाई ऐसी जीत, खिल गई दुखी कांग्रेसियों की शक्लें
महाराष्ट्र का अगला सीएम कौन होगा? भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने लिया चौंकाने वाला नाम, सुनकर सदमे में आ गए शिंदे!
‘एकजुट होकर हम और भी ऊंचे उठेंगे’, महाराष्ट्र-झारखंड चुनाव नतीजों पर PM Modi ने कह दी ये बड़ी बात, इन्हें दिया जीत का श्रेय
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
देश की राजधानी दिल्ली के महरौली इलाके में लाल और हल्के पीले बलुआ पत्थरों से बनी कुतुबमीनार दुनिया की सबसे ऊंची मीनारों में से एक है। इसकी ऊंचाई 72.5 मीटर (237.86 फीट) है। कहते हैं कि यूनेस्को ने इस मीनार को ”वर्ल्ड हेरिटेज साइट” का दर्जा दिया है।
वहीं, भारत में मुगलकालीन वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। यह इमारत हिंदू-मुगल इतिहास का एक बहुत खास हिस्सा है। इसे इतिहास में विजय मीनार के नाम से भी जाना जाता है। तो चलिए आज के इस लेख में जानते हैं कुतुब मीनार का इतिहास और रोचक तत्वों के बारे में।
इतिहास कहता है कि कुतुब मीनार का निर्माण 12वीं और 13वीं शताब्दी के बीच में कई अलग-अलग शासकों की ओर से करवाया गया है। 12वीं शताब्दी में दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने सन 1193 में अफगानिस्तान में स्थित जाम की मीनार से प्रेरित होकर कुतुब मीनार का निर्माण शुरू करवाया था, लेकिन उन्होंने केवल कुतुबमीनार की नींव रख सिर्फ इसका बेसमेंट और पहली मंजिल बनवाई थी।
वहीं 13वीं शताब्दी में उनके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें 3 मंजिलों को बढ़ाया और सन 1368 में फीरोजशाह तुगलक ने पांचवीं और अंतिम मंजिल बनवाई। बताया जाता है कि 1508 ईसवी में आए भयंकर भूकंप की वजह से कुतुब मीनार की इमारत काफी क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसके बाद लोदी वंश के दूसरे शासक सिकंदर लोदी की ओर से इस मीनार की सुध ली गई थी और इसकी मरम्मत करवाई गई थी।
यह सिलसिला यहीं नहीं थमा और 1 अगस्त 1903 को भी एक भूकंप आया और एक बार फिर कुतुब मीनार को बड़ी क्षति पहुंची। लेकिन साल 1928 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी के मेजर रोबर्ट स्मिथ ने इसकी मरम्मत करवाई इसके साथ ही उन्होंने कुतुब मीनार के ऊपर एक गुम्बद भी बनवा दिया। लेकिन बाद में पाकिस्तान गवर्नल जनरल लार्ड हार्डिंग ने गुम्बद को हटवा दिया था और उसे कुतुब मीनार के पूर्व में स्थापित करवा दिया।
इस मीनार के नाम को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। कुछ का मानना है कि इस मीनार का नाम गुलाम वंश के शासक और दिल्ली सल्तनत के पहले मुस्लिम शासक कुतुब-उद-दिन ऐबक के नाम पर रखा गया है। ”कुतुब” शब्द का अर्थ है ‘न्याय का ध्रुव’।
वहीं, कुछ इतिहासकारों के मुताबिक मुगलकाल में बनी इस भव्य इमारत का नाम मशहूर मुस्लिम सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार ”काकी” के नाम पर रखा गया है। क्योंकि कहते हैं कि कुतुब मीनार को बनाने वाले इंसान का नाम ही बख्तियार काकी था जो कि एक सूफी संत थे। कहा जाता है कि मीनार का नक्शा तुर्की की भारत में आने से पहले ही बनवाया गया था। लेकिन अब तक भारत के इतिहास में इस मामले में कुछ भी दस्तावेज नहीं मिले हैं।
जैसा कि आप सब जानते हैं कि कुतुबमीनार को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है, जिस पर कुरान की आयतें (यह आयतें अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ ‘प्रशांत’ होता है। इस्लाम के धार्मिक ग्रंथ कुरआन की सबसे छोटी ईकाई को आयत कहते हैं।) लिखी हुई है। पत्थरों पर फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है। इस मीनार के ऊपरी भाग पर खड़े होकर दिल्ली शहर को देखने से बहुत ही शानदार दृश्य दिखाई देता है। कुतुब मीनार के बगल में एक दूसरी मीनार भी बनाई गई है जिस ”अलाई मीनार” कहते हैं।
इस मीनार को यूनेस्को की ओर से ”वर्ल्ड हेरिटेज साइट” यानी विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया गया है। पर्यटकों के बीच में यह काफी प्रसिद्ध है। कुतुब मीनार की पहली तीन मंजिले लाल बलुआ पत्थर से बनाई गई है। चौथी और पांचवी मंजिल संगमरमर और बलुआ पत्थर से बनाई गई है। कुतुब मीनार की नीचे वाली मंजिल में कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनी है। कहते हैं कि यह देश की पहली मस्जिद कही जाती है। इस मस्जिद के पूर्वी दरवाजे पर लिखा है कि यह मस्जिद 27 हिंदू मंदिरों को तोड़कर पाई गई सामग्री से बनाई गई है।
कुतुब मीनार पर पारसी-अरेबिक और नागरी भाषाओं में इसके इतिहास के बारे में कुछ अंश दिखाई देते हैं। लेकिन कुतुब मीनार के इतिहास को लेकर जो भी जानकारी हैं वो फिरोज शाह तुगलक (1351-89) और सिकंदर लोदी (1489-1517) से प्राप्त के समय की प्राप्त हैं।
कुतुबमीनार भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसकी भव्यता को देखने दुनिया के कोने-कोने से बड़ी संख्या में सैलानी हर साल आते हैं और इसकी सुंदर बनावट और विशालता की तारीफ करते हैं। कुतुब मीनार के परिसर में इल्तुतमिश का मकबरा, अलाई दरवाजा, अलाई मीनार, मस्जिदें आदि इस मीनार के आर्कषण को बढ़ाती हैं।
वहीं शंक्काकार आकार में बनी इस भव्य मीनार में की गई शानदार कारीगरी और बेहतरीन नक्काशी पर्यटकों को अपनी तरफ खींचने पर मजबूर करती हैं। इंडो-इस्लामिक वास्तु शैली की ओर से निर्मित इस ऐतिहासिक मीनार की खूबसूरती को देखते ही बनता है।
इस बहुमंजिला मीनार की वजह से भारत के पर्यटन विभाग को भी हर साल खासा मुनाफा होता है। कुतुबमीनार को देखने हर साल लाखों की संख्या में सैलानी आते हैं, जिससे भारत में टूरिज्म को भी काफी बढ़ावा मिलता है। इसकी खासियत यह है कि इतने सालों बाद में इस लौह स्तंभ (आयरन पिलर) में किसी तरह की जंग नहीं लगी हुई है।
बता दें कि कुतुब मीनार के उत्तर में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण भी कुतुब-उद-दिन ऐबक ने 1192 में करवाया था। यह मस्जिद भारतीय उपमहाद्वीप की काफी पुरानी मस्जिद भी बताई जाती है। इस मस्जिद का निर्माण करवाने के बाद फिर इल्तुमिश (1210-35) और अला-उद-दिन खिलजी ने इस मस्जिद का विकास करवाया। जब 1368 ईस्वी में बिजली गिरने की वजह से मस्जिद का ऊपरी भाग टूट गया था लेकिन बाद में फिरोज शाह ने मस्जिद का फिर से निर्माण करवाया।
1974 के पहले कुतुब मीनार में पर्यटक ऊपरी भाग तक जा सकते थे। 4 दिसंबर 1981 को सीढ़ियों पर लगी बत्तियां खराब हो गई। उस समय वहां पर 300 से 430 पर्यटक मौजूद थे। पर्यटकों के बीच भगदड़ मच गई। सभी कुतुब मीनार से बाहर निकलना चाहते थे। ऐसे में करीब 47 पर्यटकों की मौत हो गई। उनमें से कई स्कूल के बच्चे थे। इसके बाद से इस इमारत के अंदर हिस्से में प्रवेश पूरी तरह से वर्जित कर दिया गया।
अलाउद्दीन खिलजी की चाहत थी कि कुतुब मीनार जैसी एक और इमारत बनवाई जाए, जो कुतुब मीनार से भी दुगनी ऊंचाई वाली हो। इस इमारत का निर्माण शुरू हुआ, लेकिन यह पूरी नहीं की जा सकी। अलाउद्दीन खिलजी की जिस समय मौत हुई। उस समय यह इमारत लगभग 27 मीटर तक बन चुकी थी, लेकिन अलाउद्दीन की मौत के बाद उनके वंशजों ने इसे खचीर्ला मानकर काम रुकवा दिया। इसे ‘अलाई मीनार’ का नाम दिया गया था और यह आज भी अधूरी खड़ी है। यह मीनार कुतुब मीनार और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के उत्तर में स्थित है।
इसके बारे में यह मान्यता यह है कि अगर इसे कोई व्यक्ति उल्टी तरफ से अपनी बाहों में पकड़ ले तो उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। हालांकि, अब इस पिलर के आसपास घेरा बना दिया गया है ताकि लोग इसे छूकर नुकसान न पहुंचा सकें।
कुतुब मीनार की सबसे खास बात यह है कि यहां परिसर में एक लोहे खंभा लगा हुआ है जिसको लगभग 2000 साल हो गए हैं लेकिन अब तक इसमें जंग नहीं लगी है। माना जाता है कि इस लौह स्तंभ का निर्माण राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 375-412) ने कराया था। बता दें कि कुतुब मीनार भले ही भारत की सबसे बड़ी इमारत है लेकिन यह बिलकुल सीधी नहीं है यह थोड़ी सी झुकी हुई है। जिसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इस इमारत का मरम्मत का काम कई बार हुआ है।
ऐसा भी माना जाता है कि कुतुब मीनार का वास्तविक नाम विष्णु स्तंभ था जिसे राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बनवाया था। उस समय विष्णु स्तंभ का इस्तेमाल खगोलीय गणना और अध्ययन के लिए किया जाता था। वराहमिहिर एक प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक थे।
ये भी पढ़ें : जानिए देश की प्रसिद्ध मस्जिदें क्यों घिरी विवादों में और क्या कहता है इतिहास?
ये भी पढ़ें : दिल्ली की जामा मस्जिद के नीचे देवी-देवताओं की मूर्तियां होने का दावा
हमें Google News पर फॉलो करे- क्लिक करे !
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.