इंडिया न्यूज, नई दिल्ली, (Prostitution In India): सुप्रीम कोर्ट ने आज वेश्यावृत्ति (सेक्स वर्क) पर बड़ा फैसला दिया। जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने इसे वैध करार दिया और कहा कि पुलिस इस मामले में दखल नहीं दे सकती। पीठ ने कहा, वेश्यावृत्ति के पेशे में शामिल लोगों को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार है। जजों ने निर्देश दिया कि अगर वेश्यावृत्ति के पेशे से जुड़े लोग वयस्क हैं और वे आपसी सहमति से संबंध बना रहे हैं तो पुलिस को इसमें शामिल लोगों की जिंदगी में न तो किसी तरह का हस्तक्षेप करना चाहिए और न ही उनके खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह की तांक-झांक अपराध है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह बात कहने की कोई जरूरत नहीं है कि वेश्यावृत्ति के प्रोफेशन में होने के बावजूद हर व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवनयापन का पूरा अधिकार है। सेक्स वर्कर को समान कानूनी सुरक्षा मुहैया करवाने का अधिकार है। पीठ ने कहा कि सभी मामलों में आपसी सहमति और उम्र के आधार पर क्रिमिनल लॉ समान रूप से लागू होना चाहिए।
पीठ ने कहा कि पुलिस जब भी कहीं छापे की कार्रवाई करे तो वेश्यावृत्ति के पेशे से जुड़ किसी व्यक्ति को न तो गिरफ्तार किया जाना चाहिए और न उन्हें कोई सजा दी जानी चाहिए। इसके अलावा उन्हें उन्हें प्रताड़ित भी नहीं करना चाहिए। जहों का कहना था कि खुद से और सहमति से यौन संबंध गैर कानूनी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि केवल वेश्यालय चलाना अपराध है, सहमति से सेक्स अपराध नहीं है।
पीठ ने कहा कि सेक्स वर्कर के बच्चे को उसकी मां से अलग भी नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सेक्स वर्कर और उनके बच्चों को भी मौलिक सुरक्षा और सम्मानपूर्ण जीवन जीने का अधिकार है। यदि नाबालिग वेश्यालय में अथवा सेक्स वर्कर के साथ रहते पाया जाता है तो ऐसा नहीं माना जाना चाहिए कि बच्चा तस्करी करके लाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि अगर सेक्स वर्कर पुलिस में शिकायत दर्ज करवाती है तो उसके साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। ऐसा विशेषकर तब हो जब अपराध यौन संबंध से जुड़ा हुआ हो। अगर सेक्स वर्कर यौन अपराध का शिकार हुआ हो तो उन्हें हर तरह की सहायता जैसे मेडिकल से लेकर काूननी मदद मुहैया करवाई जाए। कई मामलों में सामने आया है कि पुलिस का सेक्स वर्कर के साथ रवैया बेहतर नहीं है। अक्सर उनके साथ पुलिस की बर्बरता व हिंसा के मामले सामने आते हैं। सेक्स वर्कर को ऐसा माना जाता है कि उनकी कोई पहचान नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि मीडिया सेक्स वर्कर की पहचान सार्वजनिक न करे। अगर सेक्स वर्कर को गिरफ्तार किया जाता है अथवा उनके ठिकानों पर छापे मारे जाते हैं तो उन्हें बचाने का अभियान चलाया जाता है। ऐसे में न तो उनका नाम पीड़िता और न ही दोषी के तौर पर सार्वजनिक करना चाहिए। सेक्स वर्कर की कोई ऐसी वीडियो या तस्वीर भी सार्वजनिक नहीं करनी चाहिए, जिससे उनकी पहचान सार्वजनिक हो।
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