Karva Chauth 2021: करवाचौथ सुहाग की सलामती का पर्व है। यह चांद से सुख समृद्धि मांगने का दिन भी होता है। इस दिन पूरे श्रृंगार में सुहागिनें मां पार्वती और शिव के साथ चांद की पूजा कर मांगती हैं खुशियों का वरदान। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां पति के स्वास्थ्य, आयु एवं मंगलकामना के लिए व्रत करती हैं।
Karwa Chauth Message for Husband in Hindi करवाचौथ मैसेज फॉर हसबैंड
करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी, जो कि भगवान गणेश के लिए उपवास करने का दिन होता है, एक ही समय होते हैं। विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं। विवाहित महिलाएँ भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ्य अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं। करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक मिट्टी के पात्र को कहते हैं जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण किया जाता है।
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इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को चाहिए कि वह सूर्य निकलने से पूर्व ही फलाहार इत्यादि ग्रहण कर लें उसके बाद उन्हें पूरे दिन बिना जल और आहार के व्रत रखना होता है। सायं को चंद्रमा निकलने के बाद उनका दर्शन कर उन्हें अर्घ्य दें तथा पूजन करें। उसके बाद पति द्वारा पिलाये गये जल अथवा खिलाए गए निवाले से ही अपना व्रत तोड़ें।
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इस दिन सास अपनी बहू का सरगी भेजती है। सरगी में मिठाई, फल, सेवइयां आदि होती हैं। इसका सेवन महिलाएं करवाचौथ के दिन सूर्य निकलने से पहले करती हैं। इसलिए सरगी को करवाचौथ से एक दिन पहले तक भेज दिया जाता है।
ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवाचौथ का व्रत बड़ी श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। पति की दीघार्यु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना भी की जाती है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियां आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। इस पर्व की धूम पहले उत्तर भारत में ज्यादा होती थी लेकिन फिल्मों और टीवी ने इस पर्व को देशभर में लोकप्रिय बनाया।
बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। इसके बाद देवों का पूजन करें। पूजन हेतु निम्न मंत्र बोलें- ‘ॐ शिवायै नम:’ से पार्वती का, ‘ॐ नम: शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नम:’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नम:’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नम:’ से चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री जैसे- कंघी, शीशा, सिंदूर, चूड़ियां, रिबन और रूपया रखकर दान करना चाहिए तथा सास के पांव छूकर फल, मेवा व सुहाग की सारी सामग्री उन्हें देनी चाहिए। इसके बाद करवाचौथ की कथा सुनें। सायंकाल को चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें।
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहां एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बांध दिया। मगर को बांधकर यमराज के यहां पहुंची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।
यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अत: मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीघार्यु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।
एक बार अर्जुन नीलगिरि पर तपस्या करने गये। द्रौपदी ने सोचा कि वहां हर समय अनेक प्रकार की विघ्न बाधाएं आती रहती हैं। उनके शमन के लिए अर्जुन तो यहां हैं नहीं, अत: कोई उपाय करना चाहिए। यह सोचकर उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भगवान वहां उपस्थित हुए तो द्रौपदी ने अपने कष्टों के निवारण हेतु कोई उपाय बताने को कहा। इस पर श्रीकृष्ण बोले, ”एक बार पार्वतीजी ने भी शिवजी से यही प्रश्न किया था तो उन्होंने कहा था कि करवा चौथ का व्रत गृहस्थी में आने वाली छोटी मोटी विघ्न बाधाओं को दूर करने वाला है। यह पित्त प्रकोप को भी समाप्त करता है।” फिर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को एक कथा सुनाई- प्राचीन काल में एक धर्मपरायण ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। बड़ी होने पर पुत्री का विवाह कर दिया गया। कार्तिक की चतुर्थी को कन्या ने करवा चौथ का व्रत रखा। सात भाइयों की लाड़ली बहन को चंद्रोदय से पहले भूख सताने लगी। उसका फूल-सा चेहरा मुरझा गया। भाइयों के लिए बहन की यह वेदन असहनीय थी। वे कुछ उपाय सोचने लगे। पहले तो उन्होंने बहन से चंद्रोदय से पहले ही भोजन करने को कहा, पर बहन न मानी। तब भाइयों ने स्नेहवश पीपल के वृक्ष की आड़ में प्रकाश करके कहा, ‘देखो चंद्रोदय हो गया। उठो, अर्घ्य देकर भोजन करो।’
बहन उठी, चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। भोजन करते ही उसका पति मर गया। यह देख वह रोने लगी। देवयोग से इन्द्राणी देवदासियों के साथ वहां से जा रही थीं। रोने की आवाज सुन वे वहां गईं और उससे रोने का कारण पूछा। ब्राह्मण कन्या ने सब हाल कह सुनाया तो इन्द्राणी बोलीं, ‘तुमने करवा चौथ के व्रत में चंद्रोदय से पूर्व ही अन्न जल ग्रहण कर लिया, इसी से तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। अब यदि तुम मृत पति की सेवा करती हुई बारह महीनों तक प्रत्येक चौथ को यथाविधि व्रत करो, करवा चौथ को विधिवत गौरी, शिव, गणेश, कार्तिकेय सहित चंद्रमा का पूजन करो तथा चंद्रोदय के बाद अर्घ्य देकर अन्न जल ग्रहण करो तो तुम्हारे पति अवश्य जी उठेंगे। ब्राह्मण कन्या ने 12 माह की चौथ सहित विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसका मृत पति जीवित हो गया। यह कथा कह कर श्रीकृष्ण द्रौपदी से बोले, यदि तुम भी श्रद्धा एवं विधिपूर्वक इस व्रत को करो तो तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे और सुख सौभाग्य, धन धान्य में वृद्धि होगी। द्रौपदी ने श्रीकृष्ण के कथनानुसार करवा चौथ का व्रत रखा। उस व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार तथा पांडवों की जीत हुई।
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