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इंडिया न्यूज, History of Rashtrapati Bhavan: बीते कल (25 जुलाई) एक आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को देश की 15वीं राष्ट्रपति के तौर पर संसद भवन के केंद्रीय सभागार में चीफ जस्टिस एनवी रमना ने शपथ दिलवाई। इस मौके पर मुर्मू को 21 तोपों की सलामी भी दी गई। मुर्मू ने हिन्दी में शपथ लेने के बाद पुस्तिका में हस्ताक्षर किए। इसीके साथ अब राष्ट्रपति मुर्मू राष्ट्रपति भवन में रहेंगी।
कहते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली में बसा राष्ट्रपति भवन महज एक इमारत नहीं है। ये गवाह है आजादी की लड़ाई का, ये गवाह है हिंदुस्तान की आजादी का और भारत के गणतंत्र का। वायसराय के महल तौर पर बनी ये इमारत कभी ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतीक थी, लेकिन बाद में ये बन गया महामहिम यानी राष्ट्रपति का महल। तो चलिए जानते हैं जिस भवन में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद ‘राष्ट्रपति’ रहते हैं उस भवन का इतिहास क्या है।
राष्ट्रपति भवन का वर्णन भारत की शक्ति, शान और सुंदरता की परिणति के रूप में किया जाता है। कहते हैं कि 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार में जॉर्ज पंचम की ओर से भारत की राजधानी को तत्कालीन कोलकाता से स्थानांतरित कर दिल्ली लाने का निर्णय लिया गया था। इस योजना के तहत गवर्नर जनरल के आवास को प्रधान और अतीव विशेष दर्जा दिया गया। ब्रिटिश वास्तुकार सर एड्विन लैंडसीर लूट्येन्स को जो कि नगर योजना के प्रमुख सदस्य थे। राष्ट्रपति भवन वास्तुकारिता की असाधारण कल्पनाशील और दक्ष वास्तुकार एडविन लैंडसीर लुट्येन्स की कृति थी। लुट्येन्स ने ही इस अंग्रेजी के एच आकार वाले भवन की संकल्पना की थी जो 330 एकड़ संपदा पर पांच एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है।
राष्ट्रपति भवन निर्माण हजारों श्रमिकों जिनमें राजगीर, बढ़ई, कलाकार, संगतराश और कटर्स के कठिन प्रयासों से वर्ष 1929 में पूरा किया गया। भारत के वायसराय के आवास के रूप में मूल रूप से निर्मित, राष्ट्रपति भवन में इसके नाम, निवास और प्रयोजन के मामले में अनेक परिवर्तन किए गए हैं। सन् 1950 तक इसे वायसराय हाउस ही कहते थे। इसकी इमारतें तब अस्तित्व में आईं जब भारत की राजधानी को कोलकत्ता से दिल्ली में स्थानांतरित किया गया। इस राष्ट्रपति भवन की कुल चार मंजिलों पर 340 कमरे हैं।
राष्ट्रपति भवन के निर्माण में सत्रह वर्ष से अधिक समय लगा। तत्कालीन गवर्नर जनरल तथा वायसराय लॉर्ड हॉर्डिंग के शासन काल में इसका निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था। वे चाहते थे कि इमारत चार वर्ष में पूरा हो जाए। लेकिन 1928 के शुरू में भी इमारत को अंतिम रूप देना असंभव था। तब तक प्रमुख बाहरी गुंबद बनना शुरू भी नहीं हुआ था। यह विलंब मुख्य रूप से प्रथम विश्व युद्ध के कारण हुआ था। अंतिम शिलान्यास भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने किया और वह 6 अप्रैल, 1929 को नवनिर्मित वायसराय हाऊस के प्रथम आवासी बने।
आखिरी पत्थर भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल लॉर्ड इरविन, और 6 अप्रैल, 1929 को नवनिर्मित वायसराय हाउस के पहले अधिवासर द्वारा रखे गए थे। मुख्य भवन हरान-अल-रशीद ने बनाया था, जबकि फोरकोर्ट द्वारा किया गया था सुजन सिंह और उनके पुत्र सोभा सिंह यह अनुमान लगाया गया है कि सात सौ मिलियन ईंट और तीन लाख क्यूबिक फीट पत्थर इस विशाल संरचना के निर्माण के लिए चले गए थे जिसमें करीब 21 हजार मजदूर काम कर रहे थे। वायसराय हाउस के निर्माण की अनुमानित लागत 14 मिलियन रुपए बताई जाती है।
इतिहास कहता है कि जब इस भवन को निर्मित किया गया तो इसे वायसराय का ( भारत की आजादी से पहले जब कोलकाता राजधानी थी तब इस इमारत का नाम वायसराय हाउस हुआ करता था।) आवास कहा गया। 15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ तो इस भवन को सरकारी आवास में परिवर्तित कर दिया गया। अंतत: राष्ट्रपति, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल के दौरान इस भवन का नाम राष्ट्रपति भवन कर दिया गया। लेकिन अब यह भारत के राष्ट्रपति का घर है।
बता दें बहुत कम लोग जानते होंगे कि स्वतंत्र भारत के राजनीतिक प्रमुखों से भी पहले महात्मा गांधी तत्काल नवनिर्मित वायसराय के आवास (राष्ट्रपति भवन) के पहले दर्शक थे। उस समय वायसराय ने उन्हें बैठक के लिए आमंत्रित किया था, जिसपर विंस्टन चर्चिल असहमत थे। इसके बावजूद महात्मा गांधी ब्रिटिश नमक आंदोलन के प्रतीक के रूप में अपनी चाय में डालने के लिए नमक अपने साथ लेकर गए। महात्मा गांधी और लॉर्ड इरविन के बीच बैठकों का क्रम अंतत: प्रसिद्ध गांधी-इरविन समझौता में पूरा हुआ जिसपर 05 मार्च 1931 को हस्ताक्षर हुए थे।
बताया जाता है कि राष्ट्रपति भवन न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम का दर्शक रहा है, बल्कि यह भारत के राजनीतिज्ञ स्वरूप होने का भी साक्षी है। यह वायसराय लार्ड इरविन के गृह के रूप में भी रहा और उसके पश्चात लार्ड माउंटबेटन, जो अंतिम ब्रिटिश वायसराय और 1947 में स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे, के और अन्य वायसरायों के गृह के रूप में भी रहा। लार्ड माउंटबेटन ने 1947 में राष्ट्रपति भवन के केंद्रीय गुंबद के नीचे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को शपथ दिलाई थी। सी. राजगोपालाचारी, प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल ने भी 21 जून, 1948 को केंद्रीय गुंबद के नीचे शपथ ली और सरकारी आवास जैसा कि उस समय इसे कहा जाता था में रहने वाले वे प्रथम भारतीय थे।
इस आलीशान राष्ट्रपति भवन की शान को सी. राजगोपालाचारी के मामूली इशारे पर सादगी प्रदान की गई है। वायसराय के कमरे को रहने के लिहाज से अत्यंत शाही देखकर वह अपने व्यैक्तिक प्रयोजन से लिए छोटे कमरों में (जो अब राष्ट्रपति का फैमिली विंग कहा जाता है) आ गए। भवन में रहने वाले बाद के सभी निवासियों द्वारा भी ऐसा ही किया गया। भूतपूर्व वायसराय के कमरों को राज्यों और सरकार के प्रमुखों और उनके प्रतिनिधिमंडल जो भारत की राजकीय यात्रा पर आते हैं के ठहरने के लिए गेस्ट विंग के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 1950 में राष्ट्रपति भवन को अपना आवास बनाया।
देश के राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है। हालांकि राष्ट्रपति अपने पद पर तब तक बना रहेगा, जब तक की उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता। अगर राष्ट्रपति का पद मृत्यु, त्याग पत्र या महाभियोग की वजह से खाली हो जाता है, तो इस स्थिति में नए राष्ट्रपति का चुनाव 5 वर्षों के लिए ही होता है, ना कि शेष अवधि के लिए। इसके अलावा खाली पद पर चुनाव 6 महीने के अंदर कराया जाता है। वैसे अगर राष्ट्रपति का पद मृत्यु त्याग पत्र अथवा पद से हटाए जाने के कारण रिक्त होता है, तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है।
राष्ट्रपति की सैलरी 5 लाख प्रतिमाह है, राष्ट्रपति के वेतन पर कोई टैक्स नहीं लगता है। इसके अलावा आजीवन मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं, आवास व संसद द्वारा स्वीकृत अन्य भत्ते प्राप्त होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 59 के अनुसार राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान सैलरी तथा भत्ते में किसी प्रकार की कमी नहीं की जा सकती है।
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