इंडिया न्यूज़ (दिल्ली):सुप्रीम कोर्ट ने कहा की भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाना एक गंभीर अपराध है,इसके मामले में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत समझौते के आधार पर मामला रद्द नहीं किया जा सकता.
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और वी रमासुब्रमण्यम की पीठ ने माना की आत्महत्या की लिए उकसाना एक गंभीर अपराध है,यह समाज के प्रति अपराध है इसे किसी व्यक्ति के खिलाफ अपराध नहीं माना जा सकता.
पीठ ने टिपण्णी की “जघन्य या गंभीर अपराध,जो प्रकृति में निजी नहीं हैं और समाज पर गंभीर प्रभाव डालते हैं,उन्हें अपराधी और शिकायतकर्ता और/या पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है”
आरोपियों के खिलाफ मामला यह था कि उन्होंने मृतक से 2,35,73,200 रुपये की ठगी की और इस प्रकार मृतक जो गंभीर आर्थिक संकट में था,अपनी जान लेने के लिए विवश हुआ,आरोपी द्वारा धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर याचिका में गुजरात उच्च न्यायालय ने प्राथमिकी में नामित आरोपी और शिकायतकर्ता मृतक के एक चचेरे भाई के बीच एक समझौते के मद्देनजर आरोपी के खिलाफ दर्ज आईपीसी की धारा 306 के तहत प्राथमिकी को रद्द कर दिया था,मृतक की पत्नी द्वारा दायर फैसले को वापस लेने की मांग वाली अर्जी भी खारिज कर दी गई थी.
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह मुद्दा उठाया गया कि क्या अभियुक्त द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर आपराधिक विविध आवेदनों को मंजूर किया जा सकता है और एफआईआर में नामित शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच एक समझौते के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आईपीसी की धारा 306 के तहत एक प्राथमिकी, जिसमें दस साल की कैद की सजा होती है,उसे रद्द किया जा सकता था?
कोर्ट ने साफ़ कर दिया की ऐसा नहीं किया जा सकता.
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