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इंडिया न्यूज, कोलंबो:
भारत की आपत्ति के बावजूद चीन का शोध पोत युआन वांग-5 आज सुबह श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंच गया। यह पोत शोध जहाज कहलाता है, पर असल में यह चीन आर्मी के अंडर रहकर जासूसी का काम करता है। श्रीलंका सरकार की ओर से इस पोत को अपनी बंदरगाह पर आने की अनुमति दी गई थी। मीडिया रिपोर्टों में यह जानकारी दी गई है।
दरअसल चीन का युआन वांग-5 हाई टेक्नोलॉजी से लैस है और इसी वजह से भारत का इसके द्वारा जासूसी की आशंका है। भारत सरकार ने श्रीलंका सरकार से इस पर शिकायत दर्ज करवाते हुए कहा था कि यह पोत भारत के खिलाफ जासूसी कर सकता है। इसके बावजूद श्रीलंका की सरकार ने इसे आने की इजात दी। श्रीलंका के बंदरगाह मास्टर निर्मल पी सिल्वा का कहना है कि उन्हें चीनी पोत युआन वांग-5 को हंबनटोटा बंदरगाह पर बुलाने के लिए विदेश मंत्रालय की अनुमति मिली है।
गौरतलब है कि श्रीलंका की हंबनटोटा बंदरगाह सामरिक दृष्टि से संवेदनशील है। इसी के बड़े पैमाने पर इसे चीनी कर्ज की मदद से बनाया गया है। चीन का युआन वांग-5 पोत सैटेलाइटों और बैलिस्टिक मिसाइलों को ट्रैक करता है। भारत ने श्रीलंका से कहा था कि चीनी पोत पर लगे ट्रैकिंग सिस्टम तटीय क्षेत्र में भारतीय सुरक्षा ढांचे की जानकारी हासिल कर सकते हैं। चीन के पोतों व उसकी सैन्य पनडुब्बियों के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) युआन वांग-5 का उपयोग करती है। पीएलए के लगभग 2000 नौसैनिक इस पोत पर तैनात रहते हैं। श्रीलंकाई बंदरगाह के मास्टर निर्मल पी सिल्वा के अनुसार 16 से 22 अगस्त तक युआन वांग-5 को हंबनटोटा बंदरगाह पर बुलाने व रहने की अनुमति दी गई है। चीन ने श्रीलंका से 99 साल के पट्टे पर कर्ज की अदला-बदली के तौर पर हंबनटोटा बंदरगाह ली है। अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से यह बंदरगाह रणनीतिक रूप से अहम मानी जाती है।
बता दें कि भारत हिंद महासागर में चीनी पोतों के प्रवेश पर हमेशा सख्ती दिखाता रहा है। पिछले हफ्ते शुक्रवार को भारत ने चीन के उन आरोपों को खारिज कर दिया जिसमें ड्रैगन की ओर से कहा गया था कि नई दिल्ली ने कोलंबो पर चीनी पोत के हंबनटोटा बंदरगाह की यात्रा को रोकने के लिए दबाव डाला।
चीन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने भारत की तरफ इशारा कर कहा कि कुछ देशों के लिए श्रीलंका पर दबाव के मकसद से ाथाकथित सुरक्षा चिंताओं का हवाला देना पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा, श्रीलंका इन दिनों राजनीतिक व आर्थिक चिंताओं से जूझ रहा है और उसके सामान्य आदान-प्रदान व अन्य देशों के साथ सहयोग में हस्तक्षेप उसकी कमजोरी का फायदा उठाना है। यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों को नियंत्रित करने वाले बुनियादी मानदंडों के खिलाफ है।
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