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दो ऋतुओं का मिलन वर्षा ऋतु का जाना और शीत ऋतु का आगमन पर मनाई जाने वाली शारदीय नवरात्रि का अपना अलग ही महत्व शास्त्रों में बताया गया है। 9 दिनों तक देवी माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा आराधना की जाती है।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर दशमी तिथि तक मनाई जाने वाली नवरात्र पर्व की पूरी कथा और महत्व। नवरात्रि पर्व, नौ दिनों तक विशेष रूप से माता दुर्गा के भक्त अनेक तरह से जैसे- मंत्र जप साधना, पूजा आराधना, स्तुति पाठ आदि श्रद्धा पूर्वक करके माता की कृपा भी पाते हैं। मुख्य नवरात्रि साल में दो बार मनाई जाती है। पहली तो चैत्र मास में, जिसे चैत्र नवरात्र कहते हैं और दूसरी आश्विन मास में, जिसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं।
नवरात्रि काल को साधना कर शक्ति अर्जित करने का विशेष पर्व माना जाता है। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख आता कि आश्विन मास में आने वाली शारदीय नवरात्र की शुरूआत मयार्दा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान श्रीराम ने सबसे पहले समुद्र के किनारे शारदीय नवरात्रों की पूजा की शुरूआत की। भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्ति की कामना से आश्विन मास के शुक्ल पक्ष से लेकर लगातार 9 दिनों तक सिंहवाहिनी माँ दुर्गा भवानी की विशेष पूजा आराधना करते हुए ही युद्ध किया था, और माता के आशीर्वाद से 10 वें दिन उन्होंने असुर लंकापति रावन को मारकर लंका पर विजश्री प्राप्त कर माता सीता को मुक्त किया था।
तभी से शारदीय नवरात्र पर्व मनाने का प्रचलन शुरू हुआ और लगातार नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा आराधना की जाती है। शारदीय नवरात्रि में नौ दिनों तक मां दुर्गा की विशेष पूजा करने के बाद दसवें दिन धर्म से अधर्म हारा था एवं असत्?य का अंत कर समाज में सत्य की प्रतिष्ठापना की हुई थी। नवरात्र के नौ दिन समाप्त होते ही दसवें दिन दशहरा का पर्व असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है।
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