इंडिया न्यूज़ (दिल्ली, Mulayam- shivpaal- akhilesh yadav relations): साल 1988 अगस्त का महीना और जगह उत्तर प्रदेश के कानपूर का फूलबाग मैदान। जनमोर्चा के सभी बड़े नेता वह मौजूद थे, उनकी अगुवाई कर रहे थे, विश्वनाथ प्रताप सिंह और चौधरी देवीलाल, देश में राजीव गाँधी सरकार थी, तब बोफोर्स घोटाले के कारण सरकार के खिलाफ माहौल बन गया था। सरकार विरोधी माहौल बनाने के लिए वीपी सिंह देश भर में घूम रहे थे, देवीलाल किसानों के बीच जा रहे थे.
इन रैलीयों का समापन कानपुर में होना था। चौधरी देवीलाल ने इस रैली के बाद एक ऐलान किया, जिसने सबको चौंका दिया। देवीलाल ने ऐलान किया कि “देश कि तरह उत्तर प्रदेश को भी कांग्रेस के कुशासन से मुक्त करने कि जरुरत है और यह काम चौधरी चरण सिंह के सच्चे शिष्य मुलायम सिंह यादव ही कर सकते है।
तब देश के सबसे बड़े नेता कहे जाने वाले वीपी सिंह, चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने चाहते थे। अजित सिंह के कारण ही साल 1987 में मुलायम सिंह यादव को यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अजित सिंह के कारण ही लोकदल में विभाजन हो गया था, एक धड़ा बना लोकदल-अजित और एक गुट बना लोकदल-बहुगुणा, बाद में ऐसे ही कई गुटों का विलय कर जनता दल बनाया गया था।
जब मुलायम सिंह यादव को जनता दल का उत्तर प्रदेश का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तब जनता दल के कद्दावर नेता राम नरेश यादव ने इसके विरोध में इस्तीफा दे दिया और अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस में चले गए।
मुलायम सिंह यादव के विरोध में यूपी के कई यादव नेता और वीपी सिंह थे। लेकिन इन सब को राजनीती में मुलायम सिंह यादव ने पछाड़ दिया और इन सब में उनका साथ दिया उनके भाई शिवपाल सिंह यादव ने, शिवपाल सिंह यादव तब यूपी के इंटर कॉलेज में क्लर्क थे और मुलायम सिंह यादव जसवंतनगर सीट से विधायक थे, मुलायम सिंह के सहयोग से साल1988 में शिवपाल इटावा के सहकारी बैंक के चेयरमैन बने। इस मौके के बाद शिवपाल ने पलट कर नही देखा। फिर लगातार शिवपाल सिंह यादव खुद जसवंतनगर सीट से विधायक चुने जाते रहे।
तब लड़ाई परिवार के बाहर थी शिवपाल को मुलयाम का आशीर्वाद प्राप्त था लेकिन साल 2016 में शिवापल और अखिलेश कि लड़ाई हुए तब मुलायम के लाख जतन के बाद भी अखिलेश यादव की जीत हुई। 14 अगस्त 2016 को शिवपाल ने बयान दिया कि अखिलेश यादव सरकार के मंत्री, विधायक और नेता, सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने का काम कर रहे है।
साल 1992 में मुलायम सिंह ने समजवादी पार्टी का गठन किया और पार्टी ने 1993 में विधानसभा का चुनाव लड़ा। शिवपाल के पास चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी थी, पार्टी ने 109 विधानसभा की सीटें जीती थी। साल 2017 के चुनाव में पार्टी ने अब तक का सबसे ख़राब प्रदर्शन किया था.
13 सितम्बर 2016 को मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को हटा कर शिवपाल सिंह यादव को उत्तर प्रदेश में पार्टी का प्रदेश अध्यध बना दिया था, जवाब में अखिलेश ने शिवपाल सिंह यादव से तीन विभाग छीन लिएथे, तब उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दीपक सिंघल, शिवपाल सिंह यादव के करीबी थे उन्हें भी अखिलेश ने हटा दिया। शिवपाल सिंह ने जवाब अखिलेश यादव के कई करीबियों को पार्टी से निकाल दिया इसमें प्रवक्ता सुनील सिंह साजन समेत कई नेता शामिल थे।
3 अक्टूबर को शिवपाल सिंह यादव ने यूपी के महराजगंज जिले के नौतनवा सीट से अमनमणि त्रिपाठी को टिकट देने का ऐलान किया, उनके पिता अमरमणि त्रिपाठी हत्या के आरोप में जेल की सजा काट रहे थे। अमनमणि त्रिपाठी के खिलाफ पत्नी सारा सिंह की हत्या के मामले में सीबीआई की जांच चल रही थी।
शिवपाल सिंह के फैसले से अखिलेश यादव नाराज़ को गए। अखिलेश सिंह यादव पार्टी को अपराधी वाली छवि से दूर रखना चाहते थे। तभी शिवपाल सिंह यादव ने ऐलान किया कि मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय किया जाएगा।
13 अक्टूबर 2017 को अखिलेश ने ऐलान किया कि वह अकेले ही यूपी का चुनाव लड़ने और सँभालने के लिए तैयार है। तब अखिलेश यादव ने एक वीडियो जारी कर बताया कि “मेरा परिवार उत्तर प्रदेश”। तब मुलायम सिंह यादव ने अगले दिन बयान देते हुए अखिलेश को चौंका दिया और कहा कि “यह चुने हुए विधायक तय करेंगे की अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।”
अक्टूबर 2017 में अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव और उनकी दो करीबी नेताओं को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया। जवाब में शिवपाल सिंह ने अपने चचेरे भाई और अखिलेश के करीबी राम गोपाल यादव को पार्टी से निकालने का फैसला किया। रामगोपाल यादव पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव थे उन्हें निकालने का फैसला सिर्फ मुलायम सिंह यादव ही कर सकते थे लेकिन शिवपाल ने उन्हें निकाले जाने का ऐलान किया। फिर अज़ाम खान और कई नेताओं के प्रयास के बाद रामगोपाल यादव के निष्कासन का फैसला वापस लिया गया।
28 दिसंबर 2016 को अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव के लिए लिस्ट जारी की पर पिता मुलायम सिंह यादव ने जवाब में कहा कि अखिलेश की लिस्ट असली नही है और जवाब में उन्होंने 325 उम्मीदवारों की लिस्ट भी जारी कर दी और अखिलेश यादव को एक कारण बताओ नोटिस भी जारी दिया, साथ ही अपनी भाई रामगोपाल यादव को भी। इसके कुछ घंटो के बाद अखिलेश और रामगोपाल को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निकाल दिया गया।
जनवरी 2017 की शुरुआत में रामगोपाल यादव ने समाजवादी पार्टी की आपातकाल राष्ट्रीय सम्मेलन को बुलाया और उसमें मुलायम सिंह यादव को पार्टी से निकाल दिया गया। इस सम्मलेन में अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया। फिर मामला चुनाव आयोग के दरवाजे पर पहुंचा, तब 11 दिनों के बाद चुनाव आयोग ने अखिलेश यादव के हक़ में फैसला दिया क्योंकि ज्यादातार विधायक और सांसद अखिलेश यादव के साथ थे।
फिर आया उत्तर प्रदेश का विधानसभा का चुनाव, चुनाव में जो हुआ वह इतिहास में दर्ज है। 11 मार्च 2017 में राज्य में विधानसभा चुनाव का नतीजा आया , समाजवादी पार्टी को सीट मिली 47 और कांग्रेस को मिलाकर संख्या पहुंची 54। तब गृह जिले इटावा में पार्टी का प्रत्याशी तीसरी नंबर पर रहा था।
अखिलेश हमेशा पिता के साथ होने का दावा करते रहे। शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बना लिया और मुलायम सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बना। बाद में मुलायम को सपा संरक्षक बना दिया गया.
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