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इंडिया न्यूज़ (उज्जैन, mahakaal importance in hindu society): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज महाकाल कॉरिडोर देश को समर्पित किया है। महाकाल मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। महाकाल के पहले बनारस में प्रधानमंत्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन कर चुके है। आखिर बाबा महाकाल की पूजा का सनातन धर्म को मानाने वाले लोगों के लिए क्या महत्व है, आइये जानते है।
मध्य प्रदेश के उज्जैन का प्राचीन नाम उज्जयिनी है। उज्जैन में महाकाल वन स्थित था। इस वन में होने के कारण ज्योतिर्लिंग को महाकाल कहा गया और फिर मंदिर को महाकाल मंदिर नाम मिला। धर्म ग्रंथ स्कन्दपुराण के अवन्ती खण्ड में भगवान महाकाल का भव्य प्रभामण्डल प्रस्तुत किया गया है। इसके अलावा पुराणों में भी महाकाल मंदिर का उल्लेख आपको मिल जाएगा है.
उज्जैन को अवंति भी कहा जाता था। प्राचीनकाल में यह उज्जैन विज्ञान और गणित का रिसर्च केंद्र हुआ करता है। यहाँ से कई महान गणितज्ञ, जैसे भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त और वाराहमिहिर और खगोलविद् ने उज्जैन को अपने शोध का केंद्र बनाया था। इसी जगह को चुनने की कई वजह थीं, यहाँ प्रधान मध्याह्न रेखा ( prime meridian ) का केंद्र हुआ करता था। इस रेखा की मदद से भारतीय गणितज्ञ समय की गणना करते थे। आज भी दुनियाभर में मानक समय इसी रेखा से तय किया जाता है। इसे ग्रीनविच रेखा के नाम से भी दुनिया जानती है.
महाकाल की भस्म आरती ऐसे की जाती है
कवि कालिदास मेघदूतम के पहले भाग में महाकाल मंदिर का विवरण देते है। वहीं शिवपुराण के अनुसार नन्द से आठ पीढ़ी पहले एक गोप बालक द्वारा महाकाल की प्राण-प्रतिष्ठा हुई गई थी.
महाकालेश्वर मंदिर से जुड़ी वेबसाइट के मुताबिक यह मंदिर पहली बार अस्तित्व में कब आया, इसके बारे में पुख्ता तौर पर कुछ कहा नही जा सकता है। पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है की इसकी स्थापना ब्रह्मा जी द्वारा की गई थी। माना जाता है की इस मंदिर की नींव व चबूतरा पत्थरों से बनाया गया था और मंदिर लकड़ी के खंभों पर टिका था। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार गुप्त काल से पहले इस पर कोई शिखर नहीं था, इसकी छतें लगभग सपाट थीं.
महाकाल मंदिर की बात करें तो एक तीन मंजिला मंदिर है। इसके सबसे नीचे महाकालेश्वर, मध्य में ओंकारेश्वर और ऊपरी हिस्से में नागचंद्रेश्वर के लिंग स्थापित हैं। तीर्थयात्रियों को केवल नाग पंचमी के दिन ही नागचंद्रेश्वर लिंग के दर्शन की इजाजत होती है। यहाँ एक कोटि तीर्थ नाम का एक बहुत बड़ा कुंड भी है, जिसकी शैली सर्वतोभद्र है.
सनातन धर्म में इस कुंड और इसके पवित्र जल का बहुत महत्व माना जाता है। कुंड की सीढ़ियों से सटे मार्ग पर पौराणिक काल के दौरान बनाए गए मंदिर की मूर्तिकला की भव्यता को दिखाने वाले कई चित्र देखे जा सकते हैं। वहीं कुंड के पूर्व दिशा में एक बड़ा बरामदा है इस बरामदे के उत्तरी भाग में एक कोठरी में है, जिसमें श्रीराम और देवी अवंतिका की पूजा होती है.
महाकाल के मुख्य मंदिर के दक्षिणी हिस्से में कई छोटे शैव मंदिर हैं, जिनमें वृद्ध महाकालेश्वर, अनादि कल्पेश्वर और सप्तर्षि के मंदिर प्रमुख हैं। यह मंदिर वास्तुकला के उल्लेखनीय नमूने माने जाते हैं। महाकाल की भव्यता को कोई चीज सबसे ज्यादा बढ़ाती है तो वह है चांदी से मढ़वाया गया नागा जलाधारी और गर्भगृह की छत को ढंकने वाला छत्र और चांदी की प्लेट, महाकालेश्वर का मंदिर वास्तुकला की भूमिजा, चालुक्य और मराठा शैलियों का एक खूबसूरत मिश्रण है.
महाकाल मंदिर में में चार आरती होती हैं। जिसमें सबसे मुख्य सुबह होने वाली भस्म आरती को माना जाता है। मंदिर में पूजा-अभिषेक, आरती, श्रावण मास में जुलूस, हरिहर-मिलाना जैसी प्राचीन परंपराओं को जीवित रखा गया है। यहां सुबह की भस्मारती, महाशिवरात्रि, पंच-क्रोसी यात्रा, सोमवती अमावस्या आदि मंदिर के अनुष्ठानों के साथ जुड़े विशेष धार्मिक अवसर हैं। कुंभ के दौरान मंदिर-परिसर की उचित मरम्मत और जीर्णोद्धार किया जाता है.
महाकाल के भस्म आरती से पूर्व उनको स्नान कराया जाता है। महाकाल का जलाभिषेक होता है। इसके बाद मंत्रोच्चार के बीच पंचामृत से अभिषेक करते हुए पूजा करते हैं. फिर चंदन, बेलपत्र, भांग, आभूषण आदि से महाकाल का श्रृंगार होता है. त्रिपुण्ड, त्रिशूल, मुकुट और फूलों की माला से महाकाल सुशोभित होते हैं. भस्म आरती के बाद फलों और मिष्ठान का भोग लगाया जाता है और भक्तों में प्रसाद बांटा जाता है.
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