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Mata Amritanandmayi
ओणम वो दिवस है जब राजा महाबली का, जिनका जीवन प्रजा के हितार्थ ही था, अपनी भूमि पर आगमन होता है। हम बच्चों को प्राय: ऐसा कहते पाते हैं कि, ‘कितना अच्छा होता यदि प्रतिदिन ओणम होता!’ बच्चों को सदैव प्रसन्न रहना, उछलकूद करना अच्छा लगता है। हाल ही में अमृतपुरी(अम्मा के आश्रम) में एक बाल-शिविर था। बच्चों में कितना उत्साह था! वे अम्मा के समीप बैठे, गाते कितने प्रसन्न थे!
केवल बच्चे ही क्यों, बड़े भी प्रसन्नता चाहते हैं, क्या नहीं चाहते? तभी तो वे ओणम व विशु तथा ऐसे अन्य उत्सव मनाते हैं। परन्तु, ऐसे वातावरण का निर्माण वर्ष भर में मात्र एक बार पर्याप्त नहीं, हम सम्पूर्ण जीवन को आनन्द से भर सकते हैं। इसके लिए हमारे ऋषियों ने मार्ग प्रशस्त किया है, जिसके अनुसरण हेतु हमें स्वयं को तैयार करना है। इसकी मानसिक तैयारी को अध्यात्म कहा जाता है।
महाबली के राज्य में, सब लोग परस्पर मिल-जुल कर रहते थे। सुनने में आता है कि उस समय न तो चोरी होती थी, न कोई धोखाधड़ी। राजा सबके साथ समान तथा यथायोग्य प्रेमपूर्ण व्यवहार करते थे। जो हर सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता। महाबली एक महात्मा थे जो सम्पूर्ण जगत् को मूर्तरूप-ब्रह्म मानते थे। तो, उनके समय में वास्तव में प्रजातंत्र था। कुछ वर्ष पूर्व तक, केरल में ओणम जाति व धर्म के भेदभाव बिना मनाया जाता था, परन्तु अम्मा का अनुभव है कि अब वैसा नहीं रहा।
इसके कई कारण हो सकते हैं परन्तु अम्मा को लगता है कि इसका मूल कारण है कि लोगों के मन में स्वार्थ, शत्रुता व बदले की भावना घर कर गई है। आज ओणम केवल बच्चों का त्यौहार बन कर रह गया है क्योंकि बच्चे मासूम होते हैं, मन पर इतना बोझा नहीं रखते। जबकि जाति, धर्म तथा राजनीति के बंधनों ने बड़ों का ओणम जैसे त्यौहारों के प्रति उत्साह कम कर दिया है। आज हम जहाँ दृष्टि दौडाएँ, व्यक्ति अथवा राष्ट्र, अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने में संघर्षरत हैं। इसी प्रकार हर जाति दूसरी जाति पर, एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर अपना प्रभुत्व जताना, उसे कुचल-मसल देना चाहता है।
इस भावना से जीवन का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा। दिलों में प्रेम के लिए स्थान नहीं है, केवल क्रोध व घृणा का साम्राज्य है। ऐसे वातावरण में उत्सव रस्म-मात्र हो कर रह गए हैं, जो होना नहीं चाहिए। मानवता के हित के लिए इन परिस्थितियों को बदलना ही होगा। भले ओणम हो, क्रिसमस अथवा ईद – हमें उनके आध्यात्मिक महत्व तथा उद्देश्य को समझना होगा। तभी समाज तथा मानव-जाति उनसे लाभान्वित हो सकेगी।
ओणम वो दिवस है जब राजा महाबली का, जिनका जीवन प्रजा के हितार्थ ही था, अपनी भूमि पर आगमन होता है। ऐसी किंवदन्ती है कि भगवान् विष्णु ने धार्मिक राजा महाबली को पाताल में धकेल दिया था। यदि ऐसा हुआ होता, तो फिर ओणम के दिन महाबली के साथ-साथ हम भगवान् विष्णु का स्वागत क्यों करते? वस्तुत:, भगवान् विष्णु ने महाबली को नीचे नहीं धकेला, अपितु ऊपर (पूर्णत्व की ओर) उठाया था। इतना ही नहीं, ओणम के दिन सर्वव्यापी परब्रह्म परमात्मा ने जगत् में वामनावतार लिया था। इस दिन हम महाबली तथा विष्णु भगवान्, दोनों का अपने घर तथा हृदय में स्वागत करते हैं, अर्थात् इस दिन का महत्व यह है कि हम अपने हृदय में परमात्मा के प्रति भक्ति तथा मानव-मात्र के लिए प्रेम को जागृत करें, धर्म के प्रति जागरूक होवें एवं परमात्मा की कृपा का आह्वान करें। जीवन में सफलता-प्राप्ति हेतु यह आवश्यक है।
महाबली की कथा एक ऐसे व्यक्ति की कथा है जो अपना सर्वस्व – जय, पराजय तथा सांसारिक उपलब्धियाँ – परमात्मा को समर्पित कर के ब्रह्मात्मैक्य का अनुभव प्राप्त करता है। ओणम से हमें यह शिक्षा भी प्राप्त होती है कि यदि हम अपने कर्मों को ईश्वरार्पण-बुद्धि के साथ करें तो न केवल हम भौतिक दृष्टि से समृद्ध होंगे, अपितु आध्यात्मिक उन्नति भी होगी। यह हमें सभी प्राणियों के साथ निस्स्वार्थ सम्बन्ध स्थापित करने एवं अर्पण-भावना के माध्यम से संतोष विकसित करने की भी प्रेरणा देता है। यह उत्सव हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित करे – ऐसी अम्मा की प्रार्थना है!
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