Same-sex marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाले केस में पांचवें दिन की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें दीं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग वाली याचिकाओं पर उठाए गए सवालों को संसद पर छोड़ने का विचार किया जाए।
तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता की संविधान पीठ को बताया कि अदालत एक बहुत जटिल विषय से निपट रही है, जिसका गहरा सामाजिक प्रभाव है। असली सवाल यह है कि शादी किससे और किसके बीच होगी, इस पर फैसला कौन करेगा।
एसजी मेहता ने पीठ से कहा कि विवाह का अधिकार देश को विवाह की नई परिभाषा बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। संसद ऐसा कानून बना सकती है लेकिन यह पूर्ण अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि इस कानून का कई अन्य कानूनों पर प्रभाव पड़ेगा, जिन पर समाज में और विभिन्न राज्य विधानसभाओं में भी बहस की आवश्यकता होगी।
दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर की गई थी। इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की मांग उठाई गई थी। पिछले साल 14 दिसंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था।
इससे पहले 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी की था। इन जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर कर लिया था और उसी के बाद से इस केस पर सुनवाई जारी है।
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