संबंधित खबरें
चल रही है शनि की महादशा? इस तरीके से शनि महाराज से मांगें माफी, कट जाएंगे सारे कष्ट…दिखेगा शनि का अलग रूप
घर में शराब रखना होता है शुभ? आचार्य ने बताया रखने का सही तरीका…अचानक मिलने लगेंगी ये 3 अनमोल चीजें
आखिर क्या है वजह जो गर्भवती महिलाओं को नहीं काटते सांप, देखते ही क्यों पलट लेते हैं रास्ता? ब्रह्मवैवर्त पुराण में छुपे हैं इसके गहरे राज!
क्या आपके घर का मेन गेट भी है गलत दिशा में? तो हो जाएं सतर्क वरना पड़ सकता है आपकी जिंदगी पर बूरा असर!
अगर श्री कृष्ण चाहते तो चुटकियों में रोक सकते थे महाभारत का युद्ध, क्यों नही उठाए अपने अस्त्र? इस वजह से बने थे पार्थ के सारथी!
आखिर क्या वजह आन पड़ी कि भगवान शिव को लेना पड़ा भैरव अवतार, इन कथाओं में छुपा है ये बड़ा रहस्य, काशी में आज भी मौजूद है सबूत!
India News (इंडिया न्यूज़), Dharm (Bhagwat Gita): हम सभी ईश्वर (God) से प्रेम करते हुए उनकी भक्ति करते है। कुछ दिन लगातार भक्ति में लीन रहने के बाद हमें ईश्वर पर अपना अधिकार अनुभव होने लगता है। जब भी हम ऐसी भक्ति में लीन में होते है, तो हमें अपने साथ एक दिव्य शक्ति का भी अहसास होने लगता है। इसके बाद जीवन मे फिर चाहे कितनी भी घोर विपत्ति का समय क्यों ना हो, उस दिव्य शक्ति पर विश्वास रखते हुए हम उस संकट से बाहर निकल आते हैं। वहीं, हर किसी को ईश्वर के होने का ये अनुभव प्राप्त नहीं हो पाता है। कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए ही ईश्वर की भक्ति करते है। ऐसे मनुष्य को कभी-कभी इसका कुछ परिणाम तो प्राप्त हो जाता है, लेकिन वो मनुष्य ईश्वर की भक्ति के रस और आनंद से वंचित रह जाते है।
महाभारत में श्री कृष्णा के द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता ज्ञान में इस बात का भगवान ने उल्लेख किया है कि किस तरह के भक्त और मनुष्य भगवान को अधिक प्रिय हैं। जब हम भगवत गीता का अध्ययन करते है तो हमें लगभग अपने कई सवालों के जवाब मिल जाते है। इसी में भगवान ने अपने प्रिय भक्त और मनुष्य की प्रकृती (Nature) की बात अर्जुन से कही है। भगवात गीता के 12 अध्याय (भक्तियोग) के 16वें श्लोक में भगवान ने अपने प्रिय भक्त के बारे में अर्जुन को बताया है।
श्लोक- अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः । सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः ॥16॥
भगवान ने कहा है कि वे जो सांसारिक प्रलोभनों से उदासीन रहते हैं बाह्य और आंतरिक रूप से शुद्ध, निपुण, चिन्ता रहित, कष्ट रहित और सभी कार्यकलापों में स्वार्थ रहित रहते हैं, मेरे ऐसे भक्त मुझे अति प्रिय हैं।
सांसारिक सुखों के प्रति उदासीन- कई व्यक्ति होते है जो ईश्वर की भक्ति इसलिए करते है कि उनकों संसार की भौतिक वस्तु जैसे धन, दौलत, घर और कई निजी चीजें प्राप्त हो जाए। ऐसे व्यक्ति ईश्वर की भक्ति को करके कुछ देर अपने मन की शांति तो प्राप्त कर सकते है, लेकिन भगवान का दिव्य प्रेम प्राप्त नहीं कर पाते है।
बाह्य और आंतरिक रूप से शुद्ध- ईश्वर की भक्ति करने वाले भक्त को हमेशा ही आंतरिक शुद्धता पर ध्यान देना चाहिए। हमारे मन के विकार जैसे क्रोध, वासना, ईर्ष्या और लालच आदि जैसे विकारों को दूर रख कर मन की शुद्धता रखनी चाहिए। इसके अलावा अपने आसपास हमेशा साफ-सफाई और पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए।
(निपुण) कार्य-कुशल- जो भक्त अपने काम को एकाग्र होकर करता है और उस एक कार्य पर निपुणता प्राप्त करने के साथ उस काम कर्ता हुआ ईश्वर पर अर्पित कर देता है। ऐसा भक्त ईश्वर को अति प्रिय होता है।
चिन्ता रहित- जो व्यक्ति किसी बात की चिन्ता नहीं करता और सभी चिन्ताओं को ईश्वर पर विश्वास रखता हुआ उससे रहित हो जाता है। वहीं ईश्वर से प्रेम करता है और ईश्वर उससे प्रेम करते है।
स्वार्थ रहित- जिस मनुष्य को किसी दूसरे मनुष्य से स्वार्थ होता है और साथ ही स्वार्थ के लिए वो ईश्वर की भक्ति करता है। वो ईश्वर का आशीर्वाद तो प्राप्त कर सकते है, लेकिन ईश्वर का दिव्य प्रेम से वंचित रह जाते है।
ये भी पढ़ें- Gautam Buddha: मन की शांति के लिए अपनाएं गौतम बुद्ध की ये मुद्राएं, जानें इनका मतलब और महत्व
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.