Kargil Vijay Diwas: करगिल के चार योद्धा जिन्हें मिला परमवीर चक्र
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Kargil Vijay Diwas: करगिल के वह चार परमवीर योद्धा जिन्हें मिला बहादुरी का सबसे बड़ा सम्मान, कई गोलियां लगी पर रुके नहीं

Roshan Kumar • LAST UPDATED : July 26, 2023, 12:36 pm IST
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Kargil Vijay Diwas: करगिल के वह चार परमवीर योद्धा जिन्हें मिला बहादुरी का सबसे बड़ा सम्मान, कई गोलियां लगी पर रुके नहीं

India News (इंडिया न्यूज़), Kargil Vijay Diwas: 26 जुलाई, 1999, वो तारीख जब भारतीय जवानों ने पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए फतह हासिल की। उनकी साजिशों को नाकाम किया। 85 दिन चली इस जंग को ऑपरेशन विजय नाम दिया गया। जम्मू-कश्मीर के करगिल जिले की पहाड़ी पर देश की रक्षा करते हुए 557 भारतीय सैनिक शहीद हुए। आज करगिल की जंग के 24 साल पूरे हो गए हैं।

3 मई 1999 तो करगिल की पहाड़ी पर एक चारवाहे ने (Kargil Vijay Diwas) पाकिस्तान के सैनिकों को आतंकियों को पहली बार देखा। उसने भारतीय सेना के अधिकारियों को इसकी जानकारी दी। 5 मई 1999 को घुसपैठ की खबर के बाद भारतीय सेना अलर्ट हुई और दुश्मनों को जवाब देने के लिए भारतीय सेना के जवानों को उस जगह भेजा गया है जहां से घुसपैठ हुई। दोनों देशों के सैनिकों का आमना-सामना हुआ और 5 भारतीय जवान शहीद हो गए।

ऑपरेशन विजय का ऐलान

10 मई को गोलाबारी के बाद पाकिस्तानी जवानों ने एलओसी को पार किया। द्रास और काकसर सेक्टर को पार करते हुए जम्मू-कश्मीर के कई हिस्सों में पहुंच गए। इसी दिन (Kargil Vijay Diwas) भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय का ऐलान किया और कश्मीर से सैनिकों को करगिल भेजा गया। भारतीय वायुसेना ने भी कमान संभाली। देश में सर्वोच्च सेना सम्मान परमवीर चक्र पाने का गौरव देश के 21 महावीरों का प्राप्त है, जिनमें से 4 परमवीर ऐसे हैं जिन्हें करगिल युद्ध के दौरान दिए गए।

कैप्टन विक्रम बत्रा (परमवीर चक्र, मरणोपरांत)

भारतीय सेना के बेस कैम्प में जंग पर जाने की सारी तैयारी होने के बाद जब जम्मू कश्मीर राइफल्स के लेफ्टिनेंट से पूछा गया कि तुम्हारा जयघोष क्या (Kargil Vijay Diwas) होगा तो जवाब मिला ‘ये दिल मांगे मोर’। भारतीय सेना के ‘शेरशाह’ का जन्म हिमाचल के पालपुर में 9 सितम्बर 1974 को हुआ था। जी.एल. बत्रा पिता और मां का नाम कमलाकांता बत्रा था। ग्रेजुएशन के बाद सीडीयस क्लीयर किया और जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली।

जंगा में बत्रा की टुकड़ी के जिम्मे लेह-श्रीनगर हाइवे के ठीक उपर वाली प्वॉइंट 5140 चोटी आई, जिस पर कब्जा करना भारतीय सेना के लिए बेहद महत्वपूर्ण था। परिस्थिति अनुकूल न होने के बाद भी रात के करीब साढ़े तीन बजे बत्रा ने अपने साथियों के साथ पाक सेना पर हमला बोल दिया। आमने-सामने की लड़ाई में कई दुश्मन सैनिकों को मार दिया। चोटी के जीतने का बाद वायरलेस पर संदेश भेजा ‘ये दिल मागें मोर’ जिसके बाद लेफ्टिनेंट बत्रा का प्रमोशन कैप्टन बनाया गया और करगिल के शेर की उपाधि दी गई।

ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव (परमवीर चक्र)

भयानक सर्दी के बीच 15 गोलियां झेलने वाले भारतीय सेना के परमवीर जवान ग्रेनेडियर योगेद्र सिंह यादव कीवीरता और हिम्मत के आगे पाकिस्तानी सेना की गोलियों ने भी हार मान ली। 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर में जन्में योगेन्द्र सिंह यादव को 1996 में सेना में भर्ती हुए। 1999 में उनकी शादी के 15 दिन बाद ही उन्हे युद्ध में बुला लिया गया। द्रास की चोटी पर चढ़ाई के दौरान हुई लड़ाई में उन्हें 15 गोली लगी लेकिन फिर भी सासं लेते रहे। 19 साल में उन्हें परमीर चक्र से सम्मानित किया गया था। ग्रेनेडियर योगेद्र सिंह यादव देश में सबसे कम उम्र में ‘परमवीर चक्र’ से नवाजे जाने वाले पहले वीर हैं।

 

लफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे (परमवीर चक्र, मरणोपरांत)

5 जून 1975 को सीतपुर (उत्तर प्रदेश) के रुदा गांव में जन्में कैप्टन मनोज की माता का नाम मोहनी और पिता का नाम गोपीचंद था। लखनऊ के सैनिक स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा लेने का बाद कैप्टन पाण्डेय एनडीए खड़गवासला (पुणे) में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर गोरखा राइफल्स रेजिमेंट के अधिकारी बने। एनडीए में जब उनसे पूछा गया था कि यहां क्यों आए जब उन्होंने जवाब दिया था परमवीर चक्र के लिए। 3 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के चार बंकर तबाह करने के बाद वह वीरगित को प्राप्त हुए।

राइफलमैन संजय कुमार

करगिल युद्ध के वीर राइफलमैन संजय कुमार के चाचा जम्मू कश्मीर राइफल्स बटालियन के सैनिक थे, जिनको देख कर संजय कुमार के मन में भी देश सेवा की भावना जागी। 1996 में आर्मी ज्वाइन कर ली. संजय कुमार का जन्म हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में हुआ था। शुरूआत में वह विलासपुर में टैक्सी चलाने काम करते थे। करगिल युद्ध में राइफलमैन की टुकड़ी को मुशकोह घाटी में एरिया फ्लैट टॉप ऑफ पॉइंट 4875 कैप्चर करने को जिम्मा मिला। 4 जुलाई 1999 को जैसे संजय अपनी टीम के साथ पॉइंट 4875 को कब्जे में लेने के लिए आगे बढ़े सामने से भारी गोलीबारी शुरू हो गई।

 

 

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