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India News (इंडिया न्यूज़), Moon: पृथ्वी का सबसे करीबी उपग्रह चंद्रमा हमारे लिए शुरुआत से ही एक पहेली की तरह है। चंद्रमा कैसा है? और इसका पृथ्वी से क्या कनेक्शन है? इस सवालों के जवाब विज्ञान लगातार जूटा रहा है। विज्ञान के पास चांद्रमा के अस्तिस्व को लेकर और इसके जन्म की पहले को लेकर कई सवाल हैं, जिसके पुख्ता जवाब शायद आज भी विज्ञान के पास नहीं। वैज्ञानिक लगातार इस सवाल के जवाब की तलाश में रिसर्च कर रहे हैं।
चंद्रमा के रहस्यों की खोज के लिए अमेरिका और रुस ने कई मिशन किए। लेकिन, इसके रहस्यों के पिटारों को सबसे ज्यादा खोलने की कोशिश की अमेरिका के साल 1969 में लॉन्च हुए अपोलो-11 मिशन ने। अपोलो मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पाई जाने वाले तत्वों की खोज के लिए अहम योगदान दिया। इस मिशन में वैज्ञानिक अपने साथ चांद की सतह की चट्टानों के टुकड़े लेकर आया। वैज्ञानिक इन चट्टानों की मद्द से चंद्रमा के निर्माण का पता लगाने में लगे हैं।
चंद्रमा के इन टुकड़ों पर शोध करने के बाद वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि चंद्रमा 444 करोड़ साल पहले अस्तित्व में आया था। दावा ये भी है कि 444 करोड़ साल पहले मंगल ग्रह के आकार का प्रोटोप्लानेट पृथ्वी से टकराया था। टकराने की इस घटना को वैज्ञानिक Giant Impact कहते हैं।
विज्ञान मानता है कि इस टक्कर से पृथ्वी का एक बड़ा हिस्सा टूट कर अलग हो गया और चद्दान के अंदर स्थित लावा ऊपर आकर गर्मी पैदा करने लागा। गर्म गैस और लावा बहने की क्रिया चंद्रमा पर लगभग 20 सालों तक चलती रही। और अंत में करोड़ों साल बाद ये चट्टानेंं ठंड़ी होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने लगी। चट्टानों के इसी गोले को चंद्रमा कहा जाता है
कनाडा की डलहौजी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेम्स ब्रेनन के अनुसार चांद पर मौजूद ज्वालामुखी पत्थरों में पाए जाने वाले सल्फर का संबंध चांद के अंदर छिपे आयरन सल्फेट से है। इसके अलावा भी चंद्रमा पर कई मूल्यवान धातु मौजूद है जैसे प्लेटिनम और पलाडियम।
बता दें कि चन्द्रमा पर वायुमण्डल नहीं है। लेकिन नासा के अपोलो 17 मिशन की रिसर्च के मुताबिक चांद पर बहुत कम मात्रा में हीलियम, अमोनिया, नियोन, मीथेन और कार्बन डाई-ऑक्साइड गैस पाई गईं। मालूम हो की चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज भारत के चद्रयान-1 के मिशन के बाद हुई थी।
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