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India News(इंडिया न्यूज),UP News: स्वामी प्रसाद मौर्य सपा के भस्मासुर हैं। पहले राम और रामचरितमानस पर विवादित बयान और अब दीपावली के दिन मां लक्ष्मी पर विवादित ट्वीट करके स्वामी ने ख़ुद के साथ साथ समाजवादी पार्टी का भी बड़ा नुक़सान कर दिया है। स्वामी का ट्वीट मानसिक दिवालियापन है। जिस मुल्क़ में 100 करोड़ लोगों के आराध्य देवी देवता का अपमान हो, वहां की सियासत में स्वामी जैसे हाशिए पर चले जाते हैं।
2024 चुनाव से चार महीने पहले स्वामी धर्म की आग में घी डाल रहे हैं। मेरा मानना है कि इस आग की तपिश स्वामी को सियासी तौर पर झुलसाएगी और अखिलेश की लुटिया डुबोएगी। स्वामी प्रसाद मौर्य को अंदाज़ा है कि 22 जनवरी को अयोध्या में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ कार्यक्रम है।
बीजेपी के लिए अयोध्या इवेंट ऑक्सीजन का काम करेगा। स्वामी को लगता है कि धर्म वाली राजनीति का सामना जाति से करना बेहतर होगा। लेकिन ये सियासी मिसकैलकुलेशन है। अखिलेश अब तक ख़ामोश हैं, वो जानते हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले स्वामी बड़ा नुक़सान करने पर आमादा हैं।
ज़ुबान से निकला तीर अगर अधीर हो जाए तो उसका घाव बहुत गंभीर होता है। भारत का चुनावी इतिहास बताता है कि इंसान और भगवान दोनों का अपमान नुक़सान करता है। बात 1962 की है, साल था 1962 और भारत में तीसरे लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका था। जनसंघ के टिकट पर उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से अटल बिहारी वाजपेयी चुनावी मैदान में थे। उस ज़माने में बलरामपुर से अटल कांग्रेस के लिए गले की हड्डी थे।
1957 का चुनाव इसी बलरामपुर सीट से जीत कर अटल बिहारी वाजपेयी अपना दम दिखा चुके थे। जवाहरलाल नेहरू ने वाजपेयी के ख़िलाफ़ सुभद्रा जोशी को चुनावी मैदान में उतार दिया। सुभद्रा जोशी ने घर-घर जाकर कहा कि वो साल के 365 दिन क्षेत्रीय जनता के लिए समर्पित रहेंगी।
अटल बिहारी वाजपेयी ने हल्के फुल्के अंदाज़ में सुभद्रा पर निशाना साधते हुए कह डाला- “महिलाएं महीने के कुछ दिन सेवा नहीं कर सकतीं तो सुभद्रा जोशी कैसे साल के 365 दिन सेवा का संकल्प ले रही हैं।” ज़ुबान फिसलने का नुक़सान जनसंघ को हुआ, अटल बिहारी वाजपेयी को सुभद्रा ने हरा दिया। हार की वजह रही ‘महिला अपमान’ का वो नैरेटिव जो कांग्रेस ने वाजपेयी के ख़िलाफ़ बनाया।
याद कीजिए 2007 का गुजरात विधानसभा चुनाव। सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा और भारतीय जनता पार्टी ने इसे ‘गुजराती अस्मिता’ से जोड़ दिया। नतीजे आए तो कांग्रेस 59 सीटों पर सिमट चुकी थी, बीजेपी ने रिकॉर्ड 117 सीटें जीतीं और नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बन गए। सोनिया की ज़ुबान ने कांग्रेस का बंटाधार कर दिया।
स्वामी जी इतिहास से सबक़ लीजिए। इतने भर से सबक़ ना मिले तो मणिशंकर अय्यर का ‘चाय वाला’ बयान याद कर लीजिए, जिसका डैमेज कंट्रोल कांग्रेस आज तक नहीं कर पाई। स्वामी जी, ज़ुबान पर कंट्रोल कीजिए, जनादेश के लिए देवी देवताओं का अपमान भारत सह नहीं पाएगा। हाशिए पर ले जाने वाली ज़ुबान से परहेज़ ज़रूरी है।
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