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15 Incredible Health Benefits of Absinthe चिरायता के 15 अविश्वसनीय सेहतमंद फायदे

Neelima Sargodha • LAST UPDATED : November 7, 2021, 3:53 pm IST
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15 Incredible Health Benefits of Absinthe चिरायता के 15 अविश्वसनीय सेहतमंद फायदे

15 Incredible Health Benefits of Absinthe

15 Incredible Health Benefits of Absinthe :

चिरायता के उपयोग और फायदे (15 Incredible Health Benefits of Absinthe)

चिरायता आमतौर पर आसानी से उपलब्ध होने वाला पौधा नहीं है। चिरायता का मूल उत्पादक देश होने के कारण नेपाल में यह अधिक मात्रा में पाया जाता है। भारत के हिमाचल प्रदेश में और कश्मीर से लेकर अरुणाचल तक काफी ऊंचाई पर इसका पौधा होता है।

गुण : (15 Incredible Health Benefits of Absinthe)

आयुर्वेद के अनुसार : (15 Incredible Health Benefits of Absinthe)

आयुर्वेद के मतानुसार चिरायता का रस तीखा, गुण में लघु, प्रकृति में गर्म तथा कड़ुवा होता है।
यह बुखार, जलन और कृमिनाशक होता है।
चिरायता त्रिदोष नाशक (वात, पित्त, कफ) को नष्ट करने वाला, प्लीहा, यकृत वृद्धि (तिल्ली और जिगर की वृद्धि) को रोकने वाला, आमपाचक, उत्तेजक, अजीर्ण, अम्लपित्त, कब्ज, अतिसार, प्यास, पीलिया, अग्निमान्द्य, संग्रहणी, दिल की कमजोरी, रक्तपित्त, रक्तविकार, त्वचा के रोग, मधुमेह, गठिया, जीवनशक्ति वर्द्धक, जीवाणुनाशक गुणों से युक्त होने के कारण इन बीमारियों में सफलतापूर्वक उपयोग किया जाता है।

चिरायता मन को प्रसन्न करता है..
इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है।
यह सूजनों को पचाता है।
दिल को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है।
चिरायता जलोदर (पेट में पानी भरना), सीने का दर्द, और गर्भाशय के विभिन्न रोगों को नष्ट करता है। यह खून को साफ करता है तथा कितना भी पुराना बुखार क्यों न हो चिरायता उस बुखार को नष्ट कर देता है। इसका कड़वापन ही इस औषधि का विशेष गुण होता है। इसका उपयोग मलेरिया, दमे की बीमारी, बुखार, टायफाइड, संक्रमणरोधक, कमजोरी, जीवाणु कृमिनाशक, कालाजार (जिसमें प्लीहा और यकृत दोनों बढ़ जाते हैं) आदि रोगों को नष्ट करने के लिए किया जाता है।

विभिन्न रोगों में उपयोग : (15 Incredible Health Benefits of Absinthe)

(1). आग से जलने पर उत्पन्न घाव:
चिरायता को सिरके और गुलाब जल में पीसकर लेप बना लें। इस लेप को घाव पर लगाएं। इससे घाव जल्दी ही भर जाता है।

(2). नेत्र रोग :
चिरायता को पानी में घिसकर आंखों पर लेप करने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है और आंखों के अनेक रोगों में आराम मिलता है।

(3). साधारण बुखार :
• लगभग 4 चम्मच चिरायता के चूर्ण को 1 गिलास पानी में भिगोकर रात में रख दें।
सुबह छानकर 3-3 चम्मच की मात्रा में दिन में 3-4 बार रोगी को पिलाने से सामान्य बुखार में लाभ मिलता है।
• चिरायता के तेल से पूरे शरीर पर मालिश करने से पुराने बुखार के साथ साथ पीलिया और कमजोरी दूर हो जाती है।

(4). मलेरिया का बुखार :
• चिरायते का काढ़ा 1 कप की मात्रा में दिन में 3 बार कुछ दिनों तक नियमित रूप से रोगी को पिलाने से मलेरिया रोग के सारे कष्टों में जल्द लाभ मिलता है।
• 10 मिलीलीटर चिरायता के रस को 10 मिलीलीटर संतरे के रस में मिलाकर रोगी को दिन में 3 बार पिलाने से मलेरिया के रोग में लाभ होता है।

(5). पुराना बुखार:
चिरायता, सोंठ, बच, आंवला और गिलोय को बराबर की मात्रा में मिलाकर पीस लेते हैं और 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3-4 बार रोगी को देने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है।

(6). गर्भवती की उल्टी :
चिरायते का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से गर्भवती की उल्टी में लाभ मिलता है।

(7). सूजन :
चिरायता और सोंठ को बराबर की मात्रा में मिलाकर काढ़ा तैयार करें और 1 कप की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करें। इससे शरीर की सूजन नष्ट हो जाती है।

(8). त्वचा सम्बंधी रोग :
• खुजली, फोडे़ फुन्सी जैसे रोगों में चिरायता का लेप लगाना चाहिए। इससे ये सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
• रात को पानी में चिरायते की पत्ती को डालकर रख दें। रोजाना सुबह उठते ही इसका पानी पीने से खून साफ हो जाता है और त्वचा के रोग मिट जाते हैं।
• 1 चम्मच चिरायता 2 कप पानी में रात को भिगोकर सुबह के समय छानकर सेवन करें।
इससे फोड़े फुन्सी, यकृति विकार, जी मिचलाना, भूख न लगना आदि रोगों में लाभ होता है। यदि कड़वा पानी पिया नहीं जा सके तो स्वादानुसार मिश्री मिलाकर पीते हैं।

(9). जिगर और आमाशय की सूजन :
चिरायता का आधा चम्मच चूर्ण सुबह शाम को लेना चाहिए। इससे जिगर और आमाशय की सूजन नष्ट हो जाती है।

(10). अन्य रोग :
गठिया (जोड़ों का दर्द), दमा (सांस का रोग), रक्तविकार (खून के रोग), मूत्र की रुकावट (पेशाब की रुकावट), खांसी, कब्ज, भूख न लगना, पाचनशक्ति की कमी, मधुमेह, श्वास नलिकाओं की सूजन, अम्लपित्त और दिल के रोगों में चिरायता का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम शहद या देशी घी के साथ नियमित रूप से सेवन करने से लाभ मिलता है।

(11). वात-कफ ज्वर :
• चिरायता, नागरमोथा, नेत्रबाला, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, गोखरू, गिलोय, सोंठ, सरिवन, पिठवन और पोहकरमूल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के बुखार में लाभ मिलता है।
• चिरायता, गिलोय, कटाई, कटेली, सुगन्धबाला, नागरमोथा, गोखरू, सरिवन, पिठवन और सोंठ को लेकर मोटा मोटा पीसकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इस काढ़े को रोगी को पिलाने से वात के बुखार में लाभ मिलता है।
• चिरायता, सोंठ, गिलोय, कटेरी, कटाई, पीपरामूल, लहसुन और सम्भालू को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात-कफ का बुखार समाप्त हो जाता है।
• चिरायता, नागरमोथा, गिलोय और सोंठ को लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात कफ के बुखार से छुटकारा मिल जाता है।
• 5 ग्राम चिरायता, 5 ग्राम नागरमोथा, 5 ग्राम गिलोय और सोंठ 5 ग्राम की मात्रा में लेकर लगभग 150 ग्राम पानी में उबालें, जब पानी 50 ग्राम बच जाये तब इस काढ़े को छानकर एक दिन में सुबह और शाम पीने से लाभ मिलता है।

(12). सान्निपात ज्वर :
• चिरायता के रस में एक तिहाई कप पानी मिलाकर दिन में 3 बार लें, साथ ही एक कप दूध में पी सकते हैं। इसका सेवन करने से रुका हुआ बुखार ठीक हो जाता है।
• चिरायता सत्व 1-1 ग्राम पानी से सुबह और शाम पीयें।

(13). दमा या श्वास रोग :
चिरायते का काढ़ा बनाकर पीना दमा रोग में लाभकारी होता है।

(14). गर्भाशय की सूजन :
चिरायते के काढ़े से योनि को धोएं और चिरायते को पानी में पीसकर पेडू़ और योनि पर लेप करें इससे सर्दी की वजह से होने वाली गर्भाशय की सूजन नष्ट हो जाती है।

(15). हिचकी का रोग :
लगभग 480 से 600 मिलीग्राम चिरायता शहद या शक्कर के साथ सुबह शाम देने से हिचकी में लाभ होता है।

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