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India News (इंडिया न्यूज़), Deendayal Upadhyaya Death Anniversary: भारत की आज़ादी के बाद के इतिहास में आमतौर पर सत्ताधारी दल के नेताओं के योगदान का ज़िक्र ज़्यादा किया जाता है। लेकिन कई नेता ऐसे भी हैं जो विपक्षी पार्टी में रहकर भी खासा प्रभाव छोड़ते हैं। भारत में जब भी भारतीय जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी की सरकार होती थी, तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जिक्र अक्सर होता था। 11 फरवरी को उनकी पुण्य तिथि है। कई लोग उन्हें बीजेपी का गांधी भी कहते हैं। दार्शनिक और विचारक के रूप में प्रसिद्ध पंडित दीनदयाल भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापकों में से एक थे और उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि उनकी असामयिक मृत्यु के कारण देश में बड़े बदलाव नहीं हो सके थे।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय का शव 11 फरवरी 1968 को वाराणसी के पास मुगलसराय जंक्शन पर लावारिस हालत में मिला था। उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत का रहस्य कभी सामने नहीं आया. जिन लोगों को उसकी हत्या के लिए सजा सुनाई गई थी, उनके बारे में कहा गया था कि उन्होंने चोरी की थी। लेकिन इससे शायद ही कोई संतुष्ट हुआ हो और उनकी मौत एक रहस्य ही मानी जाती रही। बाद में जनसंघ के एक वरिष्ठ नेता ने तो उनकी मौत को राजनीतिक हत्या तक बता दिया था.
पंडित दीन दयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को नागदा, मथुरा के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह स्थान आज दीनदयाल धाम के नाम से जाना जाता है। सीकर में उनके मामा-मामी ने उनका पालन-पोषण किया। उन्होंने कानपुर में बीए और आगरा में अंग्रेजी साहित्य में एमए की पढ़ाई की। 1937 में उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महासचिव बनाया गया और 1952 में उन्हें जनसंघ का महासचिव बनाया गया।
बता दें कि, जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक बार कहा था, ‘मुझे दो दीनदयाल दीजिए, मैं भारत का चेहरा बदल दूंगा।’ कहा जाता है कि देश को कांग्रेस का बेहतर विकल्प देने के लिए राम मनोहर लोहिया और पंडित जी ने मिलकर काम करना शुरू किया और जिस साल पंडित जी जनसंघ के अध्यक्ष बने, उस साल पहली बार ऐसा हुआ कि भारत के राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई.
दीनदयाल उपाध्याय का राजनीतिक दर्शन एकात्म मानववाद की अवधारणा पर आधारित था, जिसे वे जन-जन तक फैलाने में सफल रहे। वह चुनाव जीतने के बजाय अपने राजनीतिक दर्शन को लोगों के बीच ले जाना चाहते थे। ताकि वे अन्य राजनीतिक दलों से अपनी एक अलग और स्पष्ट पहचान बना सकें। उनका मानना था कि समाज निर्माण से ही राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। वे देश में भारतीय मूल्यों पर आधारित सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संरचना के निर्माण के समर्थक थे। यह सोच बहुत प्रभावी रही जिसमें कार्यकर्ता को बहुत महत्व दिया गया। आज देश में सबसे मजबूत कार्यकर्ता संगठन वाली भाजपा की सफलता का यही कारण माना जाता है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जनसंघ को पंडित दीन दयाल उपाध्याय का अधिक समर्थन मिलता तो वे निस्संदेह देश को कांग्रेस का एक मजबूत विकल्प देने में सफल होते, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
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