3 घंटे में ही हो जाती है विसर्जित
इंडिया न्यूज, जोधपुर:
भारत देश त्योहारों का देश माना जाता है और यहां हर त्योहार को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है जिसमें गणेश चतुर्थी महोत्सव भी प्रमुख है। बता दें कि अधिकतर टेराकोटा की मूर्तियों का चलन हो रहा है, लेकिन इन मूर्तियों के विसर्जन के बाद तालाबों और नदियों को काफी नुकसान पहुंचता है। उधर लोगों में भी जागरुकता बढ़ी है, अब लोग भी पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता देने लगे हैं। ‘माटी गणेश’ ऐसा स्टार्टअप है, जिसमें गणेश प्रतिमा को मिट्टी से बनाया जाता है। जोधपुर के भुवनेश ने यह स्टार्टअप 300 मूर्तियां बनाने से शुरू किया था। अब इसकी डिमांड 3,000 से अधिक मूर्तियों तक पहुंच गई है।
मूर्तियां हर किसी को लुभा रही
मिट्टी और प्राकृतिक वस्तुओं से बनाई गई यह मूर्तियां हर किसी को अपनी ओर आकृषित कर रही हैं। इसमें गणपति का विसर्जन घर पर ही कर सकते हैं। इस मूर्ति की खासियत है कि विसर्जन के साथ मिट्टी टब में ही रह जाती है तो उसमें उगाने के लिए मूली, पालक के बीज का पाउच भी साथ में दिया जा रहा है। इससे बीज मिट्टी में बोए जा सकते हैं और हरी सब्जियां उगा सकते हैं। यह कॉन्सेप्ट यूथ को काफी पसंद आ रहा है।
इंदौर से हुई शुरुआत, जोधपुर में निर्माण
माटी गणेश देश का पहला ऐसा स्टार्टअप है, जो शास्त्रों के अनुसार मूर्तियां बनवाकर आस्था को उद्यमिता, रचनात्मकता, प्रकृति और परंपरा से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। माटी गणेश की शुरुेआत 2015 में ज्योति सुबोध खंडेलवाल ने की थी। वे बताती हैं कि इसकी प्रेरणा उनके पति सुबोध को शंकराचार्य ने दी थी। इसकी शुरुआत इंदौर से हुई थी। जोधपुर में माटी गणेश की डिमांड ज्यादा है। इसलिए इनका निर्माण अब जोधपुर से ही किया जा रहा है। बंगाली कारीगर जोधपुर आकर मूर्तियां बनाने में लगे हैं। मिट्टी की मूर्ति के टूटने का खतरा रहता है। ट्रांसपोर्ट करना भी महंगा पड़ता है। इसीलिए जोधपुर में इन मूर्तियों का निर्माण शुरू कर दिया है। 5 तीर्थ स्थलों की मिट्टी से ‘बीज गणेश’ बनाए जाते हैं। प्रतिमा गाय के गोबर में 76 औषधियों का अर्क मिलाकर मंत्रों के बीच बनाते हैं।