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India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: हरियाणा में एसआरके का टूटना कांग्रेस के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। क्योंकि इस टूट के बाद हरियाणा में हालात सुधरने के बजाए बिगड़ेंगे। चुनाव के दौरान अभी और नेता भी पार्टी छोड़ सकते है। लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर पार्टी भले ही उत्साहित दिखने की कोशिश कर रही है,लेकिन अंदर खाने नेताओं में अभी भी असुरक्षा का भाव बना हुआ है। जिसके चलते और नेता भी इधर उधर जा सकते हैं। दिल्ली के बाद हरियाणा ने चुनाव पूर्व झटका दिया है। दिल्ली में चुनाव से ठीक पहले प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए थे।
कुमारी शैलजा, रणदीप सिंह सुरजेवाला और किरण चौधरी को हरियाणा की राजनीति में एसआरके गुट के नाम से जाना जाता रहा है। एक तरह से यह गुट पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनौती देता था। सुरजेवाला और शैलजा को गांधी परिवार के करीबी होने के चलते बराबर का ताकतवर माना जाता था। लेकिन लोकसभा चुनाव के समय टिकट वितरण से संकेत मिल गए थे कि इस गुट से ज्यादा ताकतवर आज भी हुड्डा ही हैं। क्योंकि जिन 9 सीट पर पार्टी चुनाव लड़ी शेलजा को छोड़ सभी हुड्डा समर्थक थे।
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किरण चौधरी अपनी बेटी को टिकट नहीं दिलवा पाई। उसका परिणाम आज देखने को मिला कि वह अपनी बेटी के साथ बीजेपी में शामिल हो गई। कांग्रेस भले ही इसे हल्के में लेगी, लेकिन इसका असर दूसरे चुनाव वाले राज्यों पर पड़ना तय है। हरियाणा के साथ महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू कश्मीर का चुनाव होना है। इनके बाद फिर दिल्ली और बिहार का चुनाव है। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व के अब तक की कार्यप्रणाली से इतना तो साफ है कि वह आपसी झगड़ो को लेकर कोई फैसला नहीं कर पाता है।
जबकि गुटबाजी का सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस ने ही भुगता है। आपसी लड़ाई झगड़े के चलते कांग्रेस मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ जैसे राज्य नहीं बचा पाई। इन राज्यों में भी हरियाणा जैसे गुट थे। कांग्रेस को पहला झटका मध्य प्रदेश में लगा था। गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी छोड़कर चले गए। नतीजा सरकार चली गई और आज मध्य प्रदेश की स्थिति यह हो गई कि विधानसभा में करारी हार के बाद लोकसभा 2024 में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार जैसे तैसे पांच साल चली लेकिन झगड़ों के चलते पार्टी हार गई।
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल बनाम टी सिंह देव और राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट के चलते पार्टी जीते जाने वाले दोनों राज्य कांग्रेस हार गई। इसी का परिणाम है कि इन तीनों राज्यों की 65 सीट में से कांग्रेस लोकसभा चुनाव में इस बार कुल 9 ही सीट जीत सकी। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस गुटबाजी के चलते लगातार कमजोर हो रही है। यही स्थिति अधिकांश राज्यों की है। बीजेपी कांग्रेस की कमजोरियों का पूरा फायदा उठाती है। हरियाणा में शुरुआत हो गई है। अब बीजेपी हरियाणा में और कमजोर कड़ियां भी तलाशेगी। महाराष्ट्र में बीजेपी लगातार कोशिश में है कि उद्धव ठाकरे में सेंध लगाई जाए। झारखंड में भी स्थिति ठीक नहीं है।
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस आलाकमान बहुत कुछ बदलाव करने की स्थिति में दिख नहीं रहा है। अभी तक कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी एक ही कोशिश में लगे हैं गठबंधन से बनी राजग सरकार को किसी भी तरह अस्थिर रखा जाए। इसलिए वह लगातार इस तरह की बयान बाजी कर रहे हैं जिससे सरकार और उसके सहयोगी भ्रम की स्थिति में बने रहे हैं। हालांकि चुनाव वाले राज्यों को लेकर राहुल बैठकों का दौर जल्द शुरू करने वाले हैं, लेकिन गुटबाजी रोक पाएंगे लगता नहीं है। हरियाणा में हुड्डा को पार्टी साइड कर नहीं सकती है इसके चलते उनके विरोधी चुप बैठेंगे नहीं।
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