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Sengol Controversy: क्या है 'सेंगोल' जिसके साथ राष्ट्रपति ने ली एंट्री, 'राजा का डंडा' कहकर क्यों भड़का विपक्ष?

Divyanshi Singh • LAST UPDATED : June 27, 2024, 4:36 pm IST
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Sengol Controversy: क्या है 'सेंगोल' जिसके साथ राष्ट्रपति ने ली एंट्री, 'राजा का डंडा' कहकर क्यों भड़का विपक्ष?

Sengol Controversy

India News (इंडिया न्यूज़), Sengol Controversy:  पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संसद भवन में एक भव्य अनुष्ठान के तहत स्थापित सेंगोल विपक्ष के निशाने पर आ गया है। समाजवादी पार्टी (SP) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD), जो कि INDI ब्लॉक के पार्ट है ने मांग की है कि सेंगोल को संसद से हटाया जाए।

लोगों की यादों से ओझल हो गया था सेंगोल

सेंगोल जिसमें ब्रिटिशों से भारत में सत्ता के हस्तांतरण को दर्शाया गया था, लोगों की यादों से ओझल हो गया था, और इलाहाबाद संग्रहालय में गलत लेबल के साथ पड़ा हुआ था।  प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा ने तमिलनाडु में अपने प्रचार अभियान के तहत ऐतिहासिक सेंगोल को लोगों की चेतना में वापस लाया।

सत्ता के हस्तांतरण का हिस्सा

सेंगोल चोल साम्राज्य में एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता के हस्तांतरण का हिस्सा थे। सेंगोल आमतौर पर एक सुनहरा डंडा जिस पर नंदी की आकृति बनी होती है न्याय का प्रतीक था जिसे लागू करने की जिम्मेदारी चोल राजाओं की थी।

सेंगोल को ‘राजा का डंडा’ क्यों कहा जाता है?

विपक्षी दल ऐतिहासिक सेंगोल को राजशाही से जोड़ रहे हैं। समाजवादी पार्टी के सांसद आरके चौधरी ने प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब को लिखा कि “सेंगोल का मतलब है ‘राज दंड’। इसका मतलब ‘राजा का डंडा’ भी है। रियासती व्यवस्था खत्म होने के बाद देश आजाद हुआ। क्या देश ‘राजा के डंडे’ से चलेगा या संविधान से? मैं मांग करता हूं कि संविधान को बचाने के लिए सेंगोल को संसद से हटाया जाए,” ।

चौधरी की पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने सांसद के रुख का बचाव किया। आरजेडी सांसद और लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती ने भी मांग की कि सेंगोल को संसद से हटाया जाए क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। मीसा भारती ने कहा, “सेंगोल को संग्रहालय में रखा जाना चाहिए जहां लोग आकर इसे देख सकें।”

भारत में सत्ता हस्तांतरण के साथ सेंगोल का जुड़ाव

मीसा भारती चाहती हैं कि सेंगोल को वापस वहीं भेजा जाए जहां से वह आया था। यानी इलाहाबाद संग्रहालय में, आपको बता दें ऐतिहासिक सेंगोल को वास्तव में इलाहाबाद संग्रहालय से पुनर्जीवित किया गया था। इलाहाबाद संग्रहालय में  इसे अनदेखा किया गया था और इसे ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू को उपहार में दी गई स्वर्ण छड़ी’ के रूप में गलत तरीके से ब्रांड किया गया था।

SANGOL

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सेंगोल कैसे ऐतिहासिक था और यह संग्रहालय में कैसे पहुंचा यह एक दिलचस्प कहानी है। जब अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता सौंपने की योजना बनाई जा रही थी तो एक दुविधा सामने आई। सत्ता के हस्तांतरण को भौतिक और प्रतीकात्मक रूप से कैसे दिखाया जाए?

कांग्रेस नेता जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु के दिग्गज स्वतंत्रता सेनानी सी राजगोपालाचारी से सलाह मांगी। सी राजगोपालाचारी या राजाजी ने एक सरकारी दस्तावेज़ के अनुसार चोल राजाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सेंगोल में इसका उत्तर पाया।

मद्रास (अब चेन्नई) के प्रसिद्ध जौहरी वुम्मिडी बंगारू को सेंगोल को तराशने का काम सौंपा गया था। जिसका इस्तेमाल 1947 में किया जाना था। 10 स्वर्ण शिल्पकारों की एक टीम ने सेंगोल को पूरा करने में 10-15 दिन लगाए।

सेंगोल दरअसल ‘लोकतंत्र का डंडा’ है। 14 अगस्त, 1947 को, ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर, जवाहरलाल नेहरू, जो स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने, ने अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक 5 फुट लंबा सेंगोल प्राप्त किया। जैसे-जैसे स्वतंत्र भारत आगे बढ़ा, सेंगोल का महत्व कम हो गया और ऐतिहासिक सेंगोल इलाहाबाद संग्रहालय में आ गया।

स्वर्ण राजदंड को “पंडित जवाहरलाल नेहरू को उपहार में दी गई स्वर्ण छड़ी” के रूप में गलत लेबल किया गया था। 1947 में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक सेंगोल नेहरू को व्यक्तिगत उपहार नहीं था।

2023 में सेंगोल पर एक लेख का तमिल से अंग्रेजी में अनुवाद प्रसिद्ध नृत्यांगना पद्मा सुब्रह्मण्यम द्वारा किया गया था।वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से ऐतिहासिक सेंगोल का पता लगाने का अनुरोध किया है।

इस तरह सेंगोल लोगों की यादों में वापस आ गया।

इसलिए, संसद में स्थापित सेंगोल राजशाही का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसके विपरीत, 1947 में उपनिवेशवादी ब्रिटेन से भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है। यह राजा का डंडा नहीं, बल्कि लोकतंत्र का डंडा है।

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