India News(इंडिया न्यूज), Puja Path: मंदिर जाने से हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मन को शांति मिलती है। बच्चे हों या बड़े, ईश्वर की वंदना के लिए सभी को मंदिर जाना अच्छा लगता है। इस दौरान लोग पूजा-पाठ करने के बाद भगवान की परिक्रमा भी करते हैं। लेकिन इस दौरान जानकारी के अभाव में कुछ ऐसा काम भी कर जाते हैं जो विपरीत परिणाम दे सकता है।
दरअसल, कुछ लोग परिक्रमा के बाद भगवान या देवी-देवताओं की पीठ को प्रणाम करते हैं। ऐसा करने से आपकी मनोकामना पूर्ण हो सकती है, लेकिन आपको बता दें कि इससे आपके समस्त पुण्यों का नाश हो सकता है। भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा बताते हैं कि भगवान की पीठ को प्रणाम करना शास्त्रों में वर्जित माना गया है।
इसके पीछे की कहानी यह है कि जब आप भगवान की पीठ को प्रणाम करते हैं, तो यह अनादर और अपमान का संकेत माना जाता है। ऐसा करना आपकी आस्था और विश्वास को कमजोर कर सकता है। इसलिए, परिक्रमा के बाद भगवान के समक्ष प्रणाम करें और इस प्रक्रिया में पीठ को प्रणाम करने से बचें। इससे आपके समस्त पुण्यों का संरक्षण होता है और भगवान की कृपा बनी रहती है।
भगवान को पीछे से प्रणाम नहीं करना चाहिए। इसे लेकर भागवत कथा में एक प्रसंग मिलता है जो भगवान कृष्ण और राक्षस जरासंध के बीच युद्ध से संबंधित है। कथा के अनुसार, जरासंध राक्षस होने के बावजूद सत्कर्मी भी था। ऐसे में भगवान कृष्ण राक्षस का वध करने से पहले उसके सत्कर्मों को नष्ट करना चाहते थे, ताकि उसमें सिर्फ दुष्टता के फल बचें और उसे उसका उचित फल दिया जा सके।
जरासंध ने कई राजाओं को बंदी बनाकर रखा था और उनका बलिदान करने की योजना बनाई थी। भगवान कृष्ण, भीम और अर्जुन ने जरासंध को चुनौती दी और उसे पराजित करने के लिए योजना बनाई। भीम और जरासंध के बीच 27 दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ। इस दौरान भगवान कृष्ण ने जरासंध के सत्कर्मों को समाप्त करने के लिए उसे पीछे से प्रणाम किया, ताकि उसके पुण्य नष्ट हो जाएं। अंततः, जरासंध की दुष्टता ही शेष रह गई और भीम ने उसे पराजित कर उसका वध कर दिया।
इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि भगवान को पीछे से प्रणाम करना सत्कर्मों के नाश का प्रतीक है। इसलिए, हमें भगवान की पूजा करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम भगवान को हमेशा समर्पण भाव से सामने से ही प्रणाम करें, ताकि हमारे सत्कर्मों का नाश न हो और हम भगवान की कृपा प्राप्त कर सकें।
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