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India News (इंडिया न्यूज), SP Akhilesh Yadav: समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव अक्सर अपने बयानों और काम के लिए जाने जाते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि अखिलेश ने अपने पिता की नाही विरासत को संभाला बल्कि उनकी पार्टी की जो खराब ईमेज थी उसको भी बदल डाला। इतना ही नहीं ये साफ कर दिया था कि यह पार्टी पढ़े लिखे लोगों की है कि गुंडों की पार्टी नहीं है। एक वक्त ये भी था जब उनके पिता और चाचा के बीच में जबरदस्त लड़ाई हुई थी। उस वक्त क्या माहौल रहा था। इसका जवाब छिपा है The Contenders नाम के बुक में। इस बुक को लिखा है लेखिका और एडिटोरियल डायरेक्टर न्यूज एक्स की प्रिया सहगल ने। हिस्टोरिकली स्पीकिंग के एक खास बातचीत में प्रिया ने होस्ट कर रहीं डॉ. ऐश्वर्या पंडित शर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर/लेखिका) को बताया कि किस तरह से इस बुक में रीडर्स को यूपी में राजनीति का पूरा समीकरण देखने को मिलेगा।
पूजा बताती है कि किस तरह से जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनते ही लोगों के बीच लैपटॉप बांटने का काम किया। मुलायम सिंह यादव जहां एक तरफ टेक्नोलॉजी के खिलाफ थे। लेकिन अखिलेश यादव ने इसे बदला। साल 2012 से इसकी बदलाव की शुरुआत हुई थी। यही वो साल था जब सपा की इमेज समाज में गुंडई वाली पार्टी की बनी हुई थी। हालांकि इसे सुधारने में अखिलेश का बड़ा हाथ रहा है। तभी तो कहा जाता है कि अखिलेश यादव इस इमेज से आजाद है। इसी साल अखिलेश ने यह साफ कर दिया था कि यह पार्टी गुंडो की नहीं है।
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2012 के टिकट बंटवारे से शुरुआत
अखिलेश ने इसकी नींव रखी 2012 के टिकट बंटवारे से। उस समय बाहुबली और आपराधिक बैकग्राउंड वाले नेता डी पी यादव का जब अखिलेश ने पत्ता ही काट दिया। टिकट ना देते हुए पार्टी के लिए जब पहला कदम उठाया। उसी समय से वो जनता की नजरों में आ गए थे। लोगों को भरोसा हुआ था कि अखिलेश यादव के रुप में अब उन्हें एक ऐसा नेता मिल गया है जो प्रदेश में गुंडई को सूपड़ा साफ कर देगा। इस मुद्दे को अखिलेश साल 2017 के चुनाव में भी उठा चुके हैं। एक बार अखिलेश बगावत पर भी उतर आए थे। गौरतलब हो कि मुख्तार अंसारी की पार्टी के सपा में विलय को लेकर जब अखिलेश ने बगावत की राह अपना ली थी उस समय पार्टी ही टूट के राह पर पहुंच गई थी।
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