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India News(इंडिया न्यूज),Bangladesh: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सोमवार को इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया। जिसके बाद से देश सेना के भरोसे है। बता दें वहां बनने वाली अंतरिम सरकार में मोहम्मद यूनुस प्रधानमंत्री का पद संभाल सकते हैं।
सूत्रों ने सोमवार को बताया कि देश की सेना भी नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस के पीएम बनने के पक्ष में है। बांग्लादेश के सामाजिक उद्यमी, बैंकर, अर्थशास्त्री और नागरिक समाज के नेता मोहम्मद यूनुस का जन्म 28 जून 1940 को हुआ था। उन्होंने ग्रामीण बैंक की स्थापना की और माइक्रोक्रेडिट और माइक्रोफाइनेंस के विचारों को जन्म दिया, जिसके लिए उन्हें 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ये ऋण उन उद्यमियों को दिए जाते हैं जो इतने गरीब होते हैं कि वे पारंपरिक बैंक ऋण के लिए पात्र नहीं होते। यूनुस और ग्रामीण बैंक को एक साथ ‘माइक्रोक्रेडिट के जरिए नीचे से आर्थिक और सामाजिक विकास लाने के उनके प्रयासों’ के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
वहीं दूसरी ओर, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भारत आ चुकी हैं। सोमवार शाम उनका विमान यूपी के गाजियाबाद में वायुसेना के हिंडन एयरबेस पर उतरा। माना जा रहा है कि शेख हसीना अब नई दिल्ली से किसी दूसरे देश के लिए रवाना हो सकती हैं।
सूत्रों का कहना है कि शेख हसीना लंदन जाने की तैयारी कर रही हैं। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इंग्लैंड की सरकार से शरण मांगी है।
इस बीच संसद में बांग्लादेश का मुद्दा उठाने की भी कोशिश की गई। लोकसभा में टीएमसी सांसद ने संसद में बांग्लादेश का मुद्दा उठाने की कोशिश की, लेकिन पीठासीन सभापति जगदंबिका पाल ने उन्हें इस मामले पर बोलने की अनुमति नहीं दी।
बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की 76 वर्षीय बेटी हसीना 2009 से इस रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दक्षिण एशियाई देश की बागडोर संभाल रही थीं। जनवरी में हुए 12वें आम चुनाव में वह लगातार चौथी बार और कुल पांचवीं बार प्रधानमंत्री चुनी गईं।
पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और उसके सहयोगियों ने चुनाव का बहिष्कार किया। पिछले दो दिनों में हसीना सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में 100 से अधिक लोग मारे गए हैं। देश में विवादास्पद कोटा प्रणाली के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसके तहत 1971 के मुक्ति संग्राम में लड़ने वाले लोगों के परिवारों के लिए 30 प्रतिशत नौकरियां आरक्षित हैं।
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