India News (इंडिया न्यूज), Garuda Purana: प्राचीन काल की बात है, एक छोटे से राज्य में एक प्रसिद्ध ज्योतिषी रहते थे। उनका नाम ऋषि वरुण था, और वे अपने ज्ञान और अनुभव के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। उनके पास कई राजाओं और रानियों का आना-जाना था, जो उनके ज्योतिषीय परामर्श से अपने राज्य की उन्नति के उपाय पूछते थे।
एक दिन, राजा सुनील के दरबार में कुछ महत्वपूर्ण अतिथि आए। वे दूसरे राज्य के राजा और उनके परिवार के सदस्य थे, जो किसी विशेष कारण से राजा सुनील के पास आए थे। जब राजा ने उनका स्वागत किया, तो उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने अतिथि की शारीरिक विशेषताओं को देखकर उनकी भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली स्थिति का पता लगाया जाए।
राजा सुनील ने अपने दरबार में ऋषि वरुण को बुलाया और उनसे कहा, “ऋषि, आप तो शरीर के विभिन्न अंगों के लक्षण देखकर व्यक्ति के भविष्य और भाग्य का अनुमान लगा सकते हैं। कृपया मेरे इन विशेष अतिथियों के बारे में कुछ बताइए।”
ऋषि वरुण ने राजा के अनुरोध को स्वीकार किया और उन्होंने बड़े ध्यान से उन अतिथियों की शारीरिक विशेषताओं का अध्ययन किया। सबसे पहले, उन्होंने राजा के हाथ-पांव को देखा। उनके हाथ-पांव कमल के भीतरी भाग की तरह मृदु और रक्तिम थे। उनकी अंगुलियां सटी हुई थीं, और उनके नाखून तांबे के वर्ण के समान थोड़े रक्तिम थे।
ऋषि वरुण ने मुस्कुराते हुए कहा, “राजन, जिनके हाथ-पांव ऐसे मृदु और रक्तिम हों, वे नृपश्रेष्ठ होते हैं। वे व्यक्ति श्रेष्ठता के प्रतीक होते हैं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।”
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फिर उन्होंने रानी के पांवों की ओर ध्यान दिया। उनके पांव सुंदर गुल्फवाले, नसों से रहित और कूर्म के समान उन्नत थे। ऋषि ने कहा, “ऐसे पांवों वाले स्त्री और पुरुष भी नृपश्रेष्ठ होते हैं। ये लोग सौभाग्यशाली होते हैं और इनका जीवन सुख और सफलता से भरा रहता है।”
इसके बाद, ऋषि वरुण ने एक अन्य अतिथि की ओर देखा, जिनकी त्वचा रूक्ष और थोड़ा पीलापन लिए हुए थी। उन्होंने सिर हिलाते हुए कहा, “दुख की बात है, जिनकी त्वचा रूक्ष और पीलापन लिए होती है, वे लोग जीवन में दुखी और दरिद्र होते हैं।”
फिर उन्होंने एक अन्य व्यक्ति के श्वेत नख, वक्र और नसों से भरे हुए पांव देखे। “यह लक्षण भी शुभ नहीं है,” ऋषि ने कहा। “ऐसे लोग दुखी और दरिद्र होते हैं।”
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अंत में, ऋषि वरुण ने एक व्यक्ति के पांवों की ओर देखा, जिनकी अंगुलियां विरल थीं और उनके चरण शूर्पाकार (पंखे के आकार के) थे। उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा, “ऐसे लक्षण वाले व्यक्ति भी जीवन में कष्ट और दरिद्रता का सामना करते हैं।”
राजा सुनील और उनके अतिथि ऋषि वरुण की इस ज्योतिषीय सलाह से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने फिर एक अंतिम टिप्पणी की, “राजन, मांस रहित और अत्यंत कृश जानुयुगल (घुटने) वाले मनुष्य रोगी होते हैं। और जो लोग अतिशय भोग से समृद्ध और कुम्भ के सदृश उन्नत या सर्प के समान पेट वाले होते हैं, वे अत्यंत दरिद्र होते हैं।”
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राजा सुनील ने ऋषि वरुण को धन्यवाद दिया और उनके द्वारा बताई गई बातों को ध्यान में रखा। इस घटना के बाद, राजा ने अपने अतिथियों की अच्छे से देखभाल की और उन्हें उनके जीवन में समृद्धि और सफलता प्राप्त करने के उपाय बताए, जो ऋषि वरुण ने सुझाए थे।
इस प्रकार, राजा सुनील और उनके दरबार में आने वाले लोग ऋषि वरुण के ज्ञान और अनुभव से बहुत लाभान्वित हुए, और राज्य में सुख-शांति और समृद्धि का वातावरण बना रहा।
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