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इतने बड़े ब्राह्मण का बेटा लेकिन फिर भी कहलाया असुर…आखिर क्यों रावण को मजबूरी में लेनी पड़ी थी सोने की लंका?

Prachi Jain • LAST UPDATED : September 26, 2024, 7:48 pm IST
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इतने बड़े ब्राह्मण का बेटा लेकिन फिर भी कहलाया असुर…आखिर क्यों रावण को मजबूरी में लेनी पड़ी थी सोने की लंका?

Ravan Ki Kahani: रावण शिव का परम भक्त था और उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। अपनी तपस्या में उसने कई बार अपना सिर काटा, जो हर बार फिर से उग आता था।

India News (इंडिया न्यूज़), Ravan Ki Kahani: रावण, जिसे हम रामायण के संदर्भ में एक अत्याचारी राक्षस के रूप में जानते हैं, वास्तव में उससे कहीं अधिक जटिल और बहुआयामी व्यक्तित्व था। उसे विद्वान, योद्धा, राजनीतिज्ञ, और शिव का परम भक्त माना जाता है। हालांकि, उसके अहंकार और अधर्म के कारण उसकी विनाशकारी भूमिका भी महत्वपूर्ण है। रावण के जीवन की विभिन्न घटनाओं को जानकर यह स्पष्ट होता है कि वह केवल एक दैत्य नहीं था, बल्कि उसमें ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों के गुण विद्यमान थे।

रावण का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

रावण का जन्म ऋषि विश्रवा और दैत्य कुल की राजकुमारी कैकसी के घर हुआ था। विश्रवा ऋषि, ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलस्त्य ऋषि के पुत्र थे, और इसलिए रावण देवताओं और ऋषियों के परिवार से संबंध रखता था। कैकसी की इच्छा थी कि उसकी संतान शक्तिशाली और अपराजेय हो, इसलिए उसने विश्रवा से विवाह किया। रावण के भाई-बहनों में विभीषण, कुंभकर्ण, और शूर्पणखा का नाम प्रमुख है। रावण का जीवन मुख्य रूप से अपने कुल के गौरव और अपनी शक्ति के विस्तार के लिए समर्पित रहा।

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शिक्षा और ज्ञान

रावण को अपने पिता से वेदों और शास्त्रों का गहरा ज्ञान प्राप्त हुआ। उसने युद्धकला में भी महारत हासिल की और एक उत्कृष्ट वीणा वादक के रूप में प्रसिद्ध हुआ। उसकी विद्वता और शक्ति का लोहा उसके शत्रु भी मानते थे। राम ने भी उसे “महाविद्वान” कहा था। रावण का प्रतीक चिन्ह, वीणा, उसकी संगीत और कला के प्रति निष्ठा को दर्शाता है।

भगवान शिव के प्रति भक्ति

रावण शिव का परम भक्त था और उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। अपनी तपस्या में उसने कई बार अपना सिर काटा, जो हर बार फिर से उग आता था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उसे चंद्रहास नाम की दिव्य तलवार दी और कई अन्य वरदान भी दिए। हालांकि, शिव से अमरता का वरदान न मिलने के कारण रावण ने ऐसी शक्तियाँ मांगीं जो उसे देवताओं, असुरों और अन्य प्रजातियों से अजेय बनाती थीं। लेकिन उसने नश्वर मनुष्यों से किसी भी प्रकार की रक्षा नहीं मांगी, जो अंततः उसकी विनाशकारी भूल साबित हुई।

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लंका का अधिपति बनना

रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से लंका छीन ली, जो विश्वकर्मा द्वारा शिव और पार्वती के लिए निर्मित किया गया था। उसने अपनी शक्ति और बल के दम पर लंका का शासन अपने हाथों में ले लिया और उसे एक समृद्ध राज्य में बदल दिया। लंका पर अधिकार जमाने के बाद, रावण ने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने का अभियान शुरू किया और वह पाताललोक, स्वर्गलोक, और पृथ्वी पर अपनी विजय पताका फहराने लगा।

रावण का अहंकार और पतन

रावण के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दोष उसका अहंकार था, जिसने उसे अधर्म की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया। उसने अपनी शक्ति और ज्ञान का गलत इस्तेमाल किया और अन्यायपूर्ण तरीके से सीता का अपहरण किया, जो उसकी विनाशकारी यात्रा की शुरुआत बनी। रामायण में रावण का अंत उसके इसी अहंकार और अधर्म के कारण हुआ।

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निष्कर्ष

रावण का जीवन हमें यह सिखाता है कि ज्ञान, शक्ति, और भक्ति के बावजूद, जब अहंकार और अधर्म का रास्ता अपनाया जाता है, तो विनाश निश्चित है। रावण एक महान विद्वान और शिव का भक्त था, लेकिन उसका अन्याय और अहंकार उसके पतन का कारण बने। रामायण में रावण की कहानी हमें धर्म, नैतिकता और विनम्रता के महत्व को समझाती है।

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