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मुस्लिम देश से Israel कैसे बना दुनिया का इकलौता यहूदी देश? दिल दहला देगी धर्म परिवर्तन की जंग की कहानी

Ankita Pandey • LAST UPDATED : October 1, 2024, 12:33 pm IST
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मुस्लिम देश से Israel कैसे बना दुनिया का इकलौता यहूदी देश? दिल दहला देगी धर्म परिवर्तन की जंग की कहानी

When Israel Formed Jews Were A Minority: जब इजरायल बना तो यहूदी अल्पसंख्यक और मुस्लिम बहुसंख्यक थे

India News (इंडिया न्यूज), When Israel Formed Jews Were A Minority: इजरायल एक ऐसा देश है जो चारों तरफ से दुश्मनों से घिरा हुआ है। क्षेत्रफल में भारत के मणिपुर से भी ज्यादा छोटा है इजरायल और आबादी में उत्तराखंड से भी कम है। इतना छोटा देश होने के बाद भी इसकी तरफ कोई आंख उठाकर नहीं देख सकता। इसकी वजह इजराइल की सेना और उसकी हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल करना है। इजरायल की सेना का नाम पूरी दुनिया में है। प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार में वे छोटे देशों में सबसे ऊपर हैं। उनके पास बहुत कम कृषि भूमि है, लेकिन तकनीक की मदद से वे न केवल अपने लिए पर्याप्त अनाज उगाते हैं बल्कि उसका निर्यात भी करते हैं। यही उनकी ताकत है और यही उनकी सफलता है। ये हैं इजरायल की कुछ खासियतें, जिसे दुनिया का एकमात्र यहूदी देश कहा जाता है।

देश बनने के 24 घंटे के अंदर लड़ना पड़ा पहला युद्द

76 साल पहले 14 मई 1948 को इजरायल दुनिया का इकलौता यहूदी देश बना था। देश बनने के 24 घंटे के अंदर ही इसे अपना पहला युद्ध लड़ना पड़ा। पड़ोसी अरब देशों ने इजराइल की आजादी को स्वीकार नहीं किया और अगले ही दिन पांच देशों की सेनाओं ने नए बने देश पर हमला कर दिया। हालांकि, अरब देशों को हार का सामना करना पड़ा।
यहूदी इजरायल जाना चाहते हैं

इन्हीं खूबियों की वजह से यह देश महज 76 साल में न सिर्फ आकार ले पाया है, बल्कि यहां यहूदी बहुसंख्यक भी हो गए हैं। दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले यहूदी इजरायल जाना चाहते हैं। यहीं बसना चाहते हैं। दोनों विश्व युद्धों के दौरान यहूदियों ने यूरोप में इतना आतंक और नरसंहार झेला है कि अब उन्हें यहां शांति मिलती है। उन्हें घर जैसा महसूस होता है।

92 लाख की आबादी में 70 लाख से ज्यादा यहूदी

इजराइल की आबादी 92 लाख से कुछ ज्यादा है। इनमें 70 लाख से ज्यादा यहूदी हैं। अमेरिका और कनाडा को मिलाकर करीब इतने ही यहूदी रहते हैं। बाकी करीब 35 लाख यहूदी दुनिया के दूसरे हिस्सों में रहते हैं। जब इजरायल को राष्ट्र के तौर पर मान्यता मिली थी, तब इसकी आबादी करीब आठ-नौ लाख थी, लेकिन तब मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा थी। धीरे-धीरे मुस्लिम या तो वहां से चले गए या उन्हें खदेड़ दिया गया।

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इस बीच दुनिया के दूसरे हिस्सों से भी यहूदी यहाँ आने लगे क्योंकि वे इस जमीन को अपना मानते हैं। यह आसान नहीं था। हिटलर ने जिस तरह यहूदियों का कत्लेआम किया, अत्याचार और अनाचार हुआ, शायद उससे इस समुदाय ने अपने रहन-सहन और सोच में बदलाव किया।

युद्ध जीतता रहा और मजबूत होकर उभरा

नवनिर्मित राष्ट्र के रूप में इसे युद्ध का सामना करना पड़ा। यह क्रम चलता रहा। इजराइल हर युद्ध जीतता रहा और मजबूत होकर उभरता रहा। हमास के साथ संघर्ष में भी दुनिया भर के यहूदी इजराइल के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को छोड़कर आगे बढ़ गए। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भारत समेत दुनिया के दूसरे हिस्सों से भी यहूदी संकट के समय देश की सेवा करने के लिए इजराइल पहुँचे। यह देश के प्रति उनकी एकता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। शायद यही वजह है कि वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं।

इजराइल कैसे मजबूत हुआ?

इजराइल का हर नागरिक सेना की मदद करता है। हर युवा को प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे देशभक्ति की भावना जागृत होती रहती है। बूढ़े हों या जवान, सभी सेना में भर्ती होते हैं। एकता की इसी भावना ने उन्हें दुनिया में अल्पसंख्यक होने के बावजूद इजराइल में बहुसंख्यक बना दिया है। चारों तरफ से युद्ध और दुश्मन देशों से घिरे होने के बावजूद यहूदी न तो घबराते हैं और न ही देश छोड़ने के बारे में सोचते हैं, बल्कि युद्ध जैसे मौकों पर वे और भी उत्साहित होकर राष्ट्र के प्रति समर्पित होते नजर आते हैं। इस भूमि से उनका लगाव अकारण नहीं है।

उन्हें लगता है कि इजराइल ही वह जगह है, जहां यहूदी इतिहास का जन्म हुआ। इजराइल का पहला उल्लेख 1213-1203 ईसा पूर्व में मिलता है। इजराइल का उल्लेख 1500 ईसा पूर्व तक धार्मिक साहित्य में मिलता है। वे यरुशलम को अपने प्रभु की भूमि मानते हैं। जब यहूदियों ने अपने लिए एक देश की मांग शुरू की, तो वे अपनी ही भूमि पर आ गए और ब्रिटिश शासन को उनकी मांग के आगे झुकना पड़ा। अरब देशों के विरोध के बावजूद संयुक्त राष्ट्र को इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता देनी पड़ी।

यहूदियों की एकता और संघर्ष

इजराइल ने अपनी स्थापना के बाद कई कठिनाइयों के बीच प्रगति का जो सिलसिला शुरू किया, वह थमता नहीं दिख रहा है। जब एक देश ने लड़ाई की तो उसे हारना भी पड़ा और जब कई देशों ने मिलकर हमला किया तो भी इजराइल जीत गया। यह यहूदियों की संघर्ष शक्ति और एकता की पहचान है। वहां के पीएम पर आरोप है कि वे किसी भी तरह सत्ता में बने रहते हैं, लेकिन जैसे ही हमास ने हमला किया, देश का पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा हो गया। फिलहाल वहां संयुक्त सरकार चल रही है।

यह यहूदियों का विजन है। उनका मानना ​​है कि अंदरखाने लड़ाई होगी, लेकिन अगर कोई हमारी तरफ आंख उठाकर देखेगा तो हर हाल में मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। उनकी इसी नीति के कारण वे दुनिया में तकनीक, रिसर्च, रक्षा में आगे हैं, लेकिन देश में भी वे एकजुट नहीं दिखते, हकीकत में वे एकजुट हैं।

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