India News (इंडिया न्यूज), Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि का पर्व भारत में सदियों से मनाया जाता रहा है। यह पर्व मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का प्रतीक है, जो शक्ति और विजय का संदेश देता है। साल में दो बार आने वाली चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान भक्तगण मां दुर्गा की उपासना करते हैं और उनसे सुख-समृद्धि, आध्यात्मिक शक्ति और विजय की कामना करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि नवरात्रि का प्रारंभ कैसे हुआ और सबसे पहले किसने इस पवित्र पर्व का पालन किया?
यहां हम आपको भगवान राम की उस अद्वितीय भक्ति कथा के बारे में बताएंगे, जो नवरात्रि के प्रारंभ का आधार मानी जाती है।
रामायण की कथा में भगवान राम के जीवन का हर पल प्रेरणादायक है। जब भगवान राम लंका के राजा रावण को हराने की तैयारी कर रहे थे, तब उन्हें अपने सामने असंभव चुनौतियाँ दिख रही थीं। लंका की सेना अजेय प्रतीत हो रही थी, और रावण जैसा शक्तिशाली योद्धा राम की सेना के लिए एक गंभीर संकट था। इस कठिन समय में भगवान राम ने अपनी शक्ति को बढ़ाने और विजय प्राप्त करने के लिए माता दुर्गा की उपासना करने का संकल्प लिया।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगवान राम अपने अनुज लक्ष्मण और हनुमान जी के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे थे। यहीं पर भगवान ब्रह्मा जी ने उन्हें माता दुर्गा के चंडी स्वरूप की पूजा करने की सलाह दी। ब्रह्मा जी ने भगवान राम को बताया कि मां दुर्गा, जो कि शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं, उन्हीं की कृपा से उन्हें रावण पर विजय प्राप्त होगी।
ब्रह्मा जी की सलाह से भगवान राम ने प्रतिपदा से लेकर नवमी तक माता दुर्गा के चंडी स्वरूप की उपासना करने का संकल्प लिया। इस दौरान भगवान राम ने अन्न-जल का त्याग कर दिया और अपनी पूरी शक्ति और भक्ति से माता की आराधना करने लगे। चंडी देवी की पूजा के साथ-साथ राम जी ने चंडी पाठ का भी आयोजन किया।
इस पूजा को सफल बनाने के लिए भगवान राम को 108 नील कमल अर्पित करने थे, जो अत्यंत दुर्लभ माने जाते थे। उन्होंने अपनी सेना के साथ मिलकर 108 नील कमल ढूंढे और चंडी देवी को अर्पित करने का निश्चय किया। लेकिन, तभी रावण को यह बात पता चल गई। रावण ने अपनी मायावी शक्तियों का उपयोग करते हुए एक नील कमल को गायब कर दिया।
जब पूजा के अंतिम चरण में भगवान राम ने चंडी देवी को नील कमल अर्पित किए, तो उन्होंने देखा कि एक कमल गायब था। यह देखकर वह चिंतित हो उठे। चूंकि 108 नील कमल अर्पित किए बिना पूजा पूरी नहीं हो सकती थी, भगवान राम ने अपने मन में यह निर्णय लिया कि वे अपनी एक आंख, जिसे ‘कमलनयन’ कहा जाता है, माता को अर्पित करेंगे।
भगवान राम ने जैसे ही अपनी आंख अर्पित करने के लिए तीर उठाया, तभी माता चंडी प्रकट हो गईं। माता चंडी उनकी असीम भक्ति और त्याग से प्रसन्न हो गईं और उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया। उन्होंने भगवान राम से कहा कि उनकी पूजा सफल रही है और वह रावण पर निश्चित रूप से विजय प्राप्त करेंगे।
भगवान राम ने पूरे नौ दिनों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए माता चंडी की पूजा की थी, और नवमी तिथि पर उन्हें माता का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इसके बाद, भगवान राम ने रावण पर चढ़ाई की और उसे पराजित कर दिया। इस प्रकार, भगवान राम ने माता दुर्गा की कृपा से लंका पर विजय प्राप्त की।
ऐसा माना जाता है कि तभी से नवरात्रि की शुरुआत हुई। भगवान राम को नवरात्रि के दौरान व्रत रखने वाले पहले राजा और पहले मनुष्य के रूप में जाना जाता है। उनकी इस भक्ति और तपस्या ने नवरात्रि पर्व को एक विशेष स्थान दिलाया, और आज तक भक्तजन नौ दिनों तक माता दुर्गा की उपासना करते हैं।
यह पर्व भक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, जिसमें श्रद्धा और भक्ति के साथ माता दुर्गा की पूजा करने से जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। भक्तजन नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना करते हैं, जिससे वे जीवन में हर प्रकार की विजय और शक्ति प्राप्त कर सकें।
नवरात्रि की यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान राम जैसे महापुरुष भी, जब असंभव चुनौतियों का सामना करते हैं, तो देवी दुर्गा की शक्ति और कृपा की ओर मुड़ते हैं। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन के हर कठिनाई में धैर्य, भक्ति और निष्ठा के साथ आगे बढ़ने का संदेश भी देता है। नवरात्रि का पर्व हमारे जीवन में विजय, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है, जो हमें हर वर्ष नव जीवन का संचार देता है।
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