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नसबंदी और मारुति 800…, इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे ने किए थे ऐसे काम, आजतक कांग्रेस को सताता है उनका भूत!

PUBLISHED BY: Preeti Pandey • LAST UPDATED : December 14, 2024, 3:46 pm IST
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नसबंदी और मारुति 800…, इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे ने किए थे ऐसे काम, आजतक कांग्रेस को सताता है उनका भूत!

Sanjay Gandhi: नसबंदी और मारुति 800…, इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे ने किए थे ऐसे काम

India News (इंडिया न्यूज), Sanjay Gandhi: भारत की आज़ादी के बाद कांग्रेस परिवार हमेशा भारतीय राजनीति के इर्द-गिर्द घूमता रहा। जवाहरलाल नेहरू के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बड़े बेटे राजीव गांधी ने देश का मुखिया बनने की ज़िम्मेदारी संभाली। हालांकि इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन भारतीय राजनीति के विश्लेषकों का मानना ​​है कि उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से वर्ष 1973 से 1977 के बीच देश की कमान संभाली। दरअसल, राजनीतिक पंडितों का यह भी मानना ​​है कि इस दौरान राजीव गांधी ने भारतीय सरकार को कई अहम फ़ैसले लेने के लिए मजबूर किया।

1970 के दशक में वे भारतीय युवा कांग्रेस के नेता बने और उसके बाद 1980 तक उन्होंने देश की राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ी। पुरुष नसबंदी के फैसले के लिए मशहूर संजय गांधी को इंदिरा गांधी के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जाता था। ऐसा माना जाता है कि जब 25 जून को आपातकाल की घोषणा हुई तो संजय गांधी ने करीब ढाई साल तक देश की बागडोर अपने हाथों में रखी थी। 1976 के सितंबर महीने में उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया था, जिसे आज भी देश के बुजुर्ग याद करते हैं।

पूरे देश में पुरुष नसबंदी का दिया था आदेश

दरअसल, उन्होंने पूरे देश में पुरुष नसबंदी का आदेश दिया था। इस फैसले के पीछे सरकार की मंशा देश की जनसंख्या को नियंत्रित करना था। लेकिन, देशभर में कई लोगों की जबरन नसबंदी कर दी गई। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि एक साल में 60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी की गई संजय गांधी का सपना था कि भारत में आम लोगों के पास कार हो। इसके लिए उन्होंने दिल्ली के गुलाबी बाग में एक वर्कशॉप भी बनवाई। 4 जून 1971 को मारुति मोटर्स लिमिटेड नाम से एक कंपनी बनाई गई और संजय गांधी खुद इस कंपनी के पहले एमडी थे।

लंदन जाकर रोल्स रॉयस कंपनी में की इंटर्नशिप

14 दिसंबर 1946 को दिल्ली में जन्मे इंदिरा गांधी के दूसरे बेटे ने अपनी छोटी सी 33 साल की जिंदगी को भरपूर जिया। बचपन में ही उनका दाखिला देहरादून के दून स्कूल में हुआ था। इसके बाद उन्होंने स्विट्जरलैंड के इंटरनेशनल बोर्डिंग स्कूल ‘इकोले डी ह्यूमैनिटे’ में पढ़ाई की। उन्होंने क्रू में रोल्स रॉयस में इंटर्नशिप की और इंग्लैंड से भारत लौट आए। हालांकि लंदन में रहने के दौरान संजय की जिंदगी में दो लड़कियां आ चुकी थीं। एक ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए वह अपनी गर्लफ्रेंड से अलग हो गए। पहले उनकी जिंदगी में एक मुस्लिम लड़की आई, लेकिन जल्द ही उनके रिश्ते में दरार आ गई।

इसके बाद उन्हें एक जर्मन लड़की सबाइन वॉन स्टिग्लिट्ज़ से प्यार हो गया। सबाइन वॉन स्टिग्लिट्ज़ वही लड़की थीं, जिन्होंने राजीव गांधी को सोनिया गांधी से मिलवाया था। कॉफी पर दोनों एक-दूसरे को पसंद भी करते थे, लेकिन कुछ मतभेदों की वजह से उनके बीच दूरियां बढ़ गईं। सबाइन से बढ़ती दूरी के पीछे सबसे बड़ा कारण यह था कि वह अपनी गर्लफ्रेंड से ज्यादा समय अपने ड्रीम प्रोजेक्ट यानी भारत में मारुति कंपनी (मारुति मोटर्स लिमिटेड) की स्थापना पर खर्च कर रहे थे।

कैसे हुई थी मुलाकात

दो लड़कियों के चले जाने के बाद मेनका गांधी उनकी जिंदगी में आईं। इन दोनों की प्रेम कहानी 14 सितंबर 1973 को शुरू हुई थी। संजय गांधी अपने दोस्त की शादी की पार्टी में गए थे। इस दिन संजय गांधी का जन्मदिन भी था। इसी पार्टी में संजय गांधी की मुलाकात मेनका आनंद से हुई थी। मेनका गांधी की बात करें तो उनके पिता तरलोचन सिंह लेफ्टिनेंट कर्नल थे। जब वह संजय से मिलीं तो उनकी उम्र महज 17 साल थी, जबकि संजय उनसे 10 साल बड़े थे। पहली मुलाकात के बाद दोनों एक-दूसरे के साथ वक्त बिताने लगे। आखिरकार 23 दिसंबर 1974 को दोनों ने शादी कर ली। यह शादी संजय गांधी के पुराने दोस्त मोहम्मद यूनुस के घर पर हुई थी। इंदिरा गांधी ने मेनका गांधी को 21 खूबसूरत साड़ियां दीं। इनमें से एक साड़ी वह भी थी जिसे जवाहरलाल नेहरू ने जेल में बुना था।

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राजनीतिक करियर की शुरुआत

आखिरकार संजय गांधी मार्च 1977 में अपना पहला चुनाव हार गए, लेकिन उन्हें अपने ही इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में करारी हार का सामना करना पड़ा। हार का सबसे बड़ा कारण यह था कि लोग कांग्रेस से नाराज थे। हालांकि, संजय गांधी जनवरी 1980 में आम चुनाव जीत गए। 6 साल बाद संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई। 23 जून 1980 की सुबह उन्होंने और दिल्ली फ्लाइंग क्लब के पूर्व प्रशिक्षक सुभाष सक्सेना ने सफदरजंग स्थित दिल्ली फ्लाइंग क्लब से उड़ान भरी। जब विमान हवा में कलाबाजियां करने लगा तो उसी विमान के पिछले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। विमान सीधा अशोक होटल के पीछे खाली जमीन पर उतरा। इस हादसे में दोनों की मौत हो गई।

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