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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
सुधांशु जी महाराज
जैसे दिन को सजाता है सूर्य और रात को सजाता है चांद, वैसे ही मानव जीवन को सौन्दर्य से युक्त करने का काम सद्गुरु करते हैं। किंतु यह अनुपम उपलब्धि केवल सद्गुरु बनाने से प्राप्त नहीं होती है, बल्कि सद्गुरु के चरणों का दास बन जाने के बाद ही मानव जीवन शोभायमान होता है। संसार में चाहे कोई कितना ही बड़ा ज्ञानी हो अथवा ध्यानी, सिद्घ, संत हो या कोई महान विज्ञानी, चिकित्सक हो या शिक्षक, कोई उद्योगी हो या व्यवसायी जब तक उसे सद्गुरु प्राप्त नहीं होते तब तक उसका जीवन गरिमा से युक्त नहीं होता। प्रात:काल पूर्व दिशा में लालिमा लिए उदित होने वाला सूर्य समस्त ब्रह्माण्ड की आंख बनकर प्रकट होता है। सबको प्रकाशित करता है लेकिन यह बाहर की आंख है, बाहर का प्रकाश है, जिससे इंसान के बाहर की ओर खुले हुए चर्म चक्षुओं को लाभ प्राप्त होता है। जिससे संसार का सौन्दर्य दिखता है और मनुष्य इस असार की ओर आकर्षित हो जाता है। संसार सागर में अंधेरे और उजाले दोनों हैं। यह जरूरी नहीं कि जो आप अपने इन बाहर खुले हुए नेत्रों से देख रहे हैं, जो दृश्य साफ-साफ दिखाई दे रहा है वह सत्य का ही उजाला हो।
उस चमकते हुए उजाले की परत के पीछे छिपा हुआ घना अंधकार भी हो सकता है। इस मानव देह में एक तीसरा ज्ञान चक्षु भी होता है, जिसके द्वारा अंधेरों और उजालों का अन्तर समझ आता है। जिसके द्वारा संसार नहीं संसार को बनाने वाला, लाखों-करोड़ों प्रकाशित सूर्य भी जिसकी बराबरी नहीं कर सकते, ऐसा जो ज्योति स्वरूप है, जो कण-कण में बसा हुआ है, सर्वव्यापक है, वह महान करतार दिखाई देता है। लेकिन वह अन्तर्चक्षु तभी खुलता है जब गुरुकृपा होती है, वैसे तो गुरु सबके ऊपर ही अनवरत अपनी कृपा बरसाते हैं, लेकिन जो गुरु कृपा पाने के योग्य होता है, गुरु महिमा के महत्व को भलीभांति समझता है, उसका ही यह दिव्य नेत्र उद्भाषित होता है। क्योंकि इस दिव्य चक्षु के खुलने से शिष्य के जीवन में प्रभात का उदय होता है। सद्गुरु शिष्य को बाहर से नहीं अन्दर से जोड़ते हैं। क्योंकि अन्दर ही वह उजाला मौजूद है, जिसमें जीवन की चमक है, जीवन की गरिमा है, जिसके लिए हमें यह अनमोल शरीर प्राप्त हुआ है। अन्दर के प्रकाश से ही बाहर की वास्तविकता समझ आती है। दुनिया के रिश्ते-नातों की सच्चाई का पता तभी चलता है, जब सद्गुरु के ज्ञान का अमृत मिल जाए। नीर और क्षीर का भेद तभी पता चलता है जब गुरुकृपा से अंदर का प्राणी जाग जाए। गुरुशरण प्राप्त किए बिना इंसान बहुत सारी चोटों का शिकार हो जाता है। जाने-अनजाने में गुनाहगार बन जाता है। दर-दर की ठोकरें खाता है, वैसे ठोकरें जीवन में सबक सिखाने के लिए लगती हैं, लेकिन गुरु कृपा के बिना इंसान बार-बार ठोकर खाता है, बार-बार गुनाह करता है, बार-बार धोखे का शिकार होता है। पर जब गुरुकृपा से ज्ञान चक्षु खुल जाता है, तब शिष्य राह में ठोकर बनकर पड़े हुए पत्थर को भी अपनी मंजिल की सीढ़ी बना लेता है।
सुधांशु जी महाराज का जन्म 2 मई 1955 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में हुआ। इन्होंने गायत्री मंत्र द्वारा अज्ञानता दूर करने की विधि को जाना। बाल्यावस्था में ही इन्होंने मंत्र और श्लोकों का अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया था। 24 मार्च 1991 को रामनवमी के दिन इन्होंने दिल्ली में विश्व जागृति मिशन की स्थापना की। देश-विदेश में इसकी कुल 80 शाखाएं हैं। इस मिशन के द्वारा सुधांशु जी महाराज भारत ही नहीं विदेशों में भी अध्यात्म और जनकल्याण का संदेश प्रचारित कर रहे हैं। इनका मिशन निर्धनों और कमजोर व्यक्तियों की सहायता करता है। दिल्ली स्थित इनके आनन्दधम आश्रम में अस्पताल मौजूद हैं जहां गरीब व्यक्तियों को मुफ्त चिकित्सा सेवा उपलब्ध करायी जाती है। अन्य आश्रमों में भी बुजुर्गों एवं गरीबों के लिए विशेष सुविधाओं की व्यवस्था की गयी है। समय-समय पर विश्व जागृति मिशन के द्वारा सुधांशु जी महाराज देश-दुनिया में पीड़ित लोगों की सेवाओं में भी योगदान देते हैं।
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