इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
khalistan movement: पांच राज्यों (पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर) में विधानसभा चुनाव (2022) का दौर चल रहा है, और चुनाव के दौरान ही कोई न कोई विषय चर्चा का बन जाता है। हाल ही में शुरू हुआ हिजाब, गजवा-ए-हिंद का मुद्दा ठंडा भी नहीं हुआ था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खालिस्तान (khalistan movement in india) पर चर्चा शुरू कर दी। (punjab election 2022)
इससे पहले भी किसानों के आंदोलन को तमाम लोग खालिस्तान से जोड़ रहे हैं, जिस पर किसानों और कई पंजाबी कलाकारों ने नाराजगी भी जताई थी, लेकिन सत्ता से जुड़े तमाम लोगों ने किसान आंदोलन को खालिस्तानियों का आंदोलन करार दिया था। (khalistan mudda kya hai) तो चलिए जानते हैं क्या था खालिस्तान आंदोलन, कैसे हुआ समाप्त। (khalistan movement)
In which year the story of ”Khalistan movement” started?
- सन् 1929 में शुरू हुई थी खालिस्तान आंदोलन की कहानी। उस समय कांग्रेस के लाहौर सेशन में मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा। इस दौरान तीन तरह के समूहों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। पहला- मोहम्मद अली जिन्ना की अगुआई में मुस्लिम लीग। दूसरा समूह दलितों का था। जिनकी अगुआई डाक्टर भीमराव अंबेडकर कर रहे थे। अंबेडकर दलितों के लिए अधिकारों की मांग कर रहे थे। तीसरा गुट मास्टर तारा सिंह की अगुआई में शिरोमणि अकाली दल का था।
- तारा सिंह ने पहली बार सिखों के लिए अलग राज्य की मांग रखी। 1947 में यह मांग आंदोलन में बदल गई। इसे नाम दिया गया पंजाबी सूबा आंदोलन। आजादी के समय पंजाब को दो हिस्सों में बांट दिया गया। शिरोमणि अकाली दल भारत में ही भाषाई आधार पर एक अलग सिख सूबा यानी सिख प्रदेश मांग रहा था। स्वतंत्र भारत में बने राज्य पुनर्गठन आयोग ने यह मांग मानने से इनकार कर दिया।
- कहते हैं कि पूरे पंजाब में 19 साल तक अलग सिख सूबे के लिए आंदोलन और प्रदर्शन होते रहे। आखिरकार 1966 में इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला किया। सिखों की बहुलता वाला पंजाब, हिंदी भाषा बोलने वालों के लिए हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ था।
- चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इसे दोनों नए प्रदेशों की राजधानी बना दिया गया। पंजाब के कुछ पर्वतीय इलाके को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया। इस बड़े फैसले के बावजूद कई लोग इस बंटवारे से खुश नहीं थे। कुछ लोग पंजाब को दिए गए इलाकों से नाखुश थे तो कुछ साझा राजधानी के विचार से खफा थे।
आनंदपुर साहिब रिजोल्यूशन क्या था? (khalistan movement)
- पंजाबी आंदोलन से अकाली दल को खूब राजनीतिक फायदा मिला। इसके बाद प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में पार्टी ने कांग्रेस को 1967 और 1969 के विधानसभा चुनावों में कड़ी टक्कर दी। हालांकि, 1972 का चुनाव अकालियों के बढ़ते राजनीतिक ग्राफ के लिए काफी खराब साबित हुआ। कांग्रेस सत्ता में आई। इसने शिरोमणि अकाली दल को सोचने पर मजबूर कर दिया। (khalistan movement kya hai)
- 1973 में अकाली दल ने अपने राज्य के लिए स्वायत्तता, यानी ज्यादा अधिकारों की मांग की। इस स्वायत्तता की मांग आनंदपुर साहिब रिजोल्यूशन के जरिए मांगी गई थी। आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में सिखों ने ज्यादा स्वायत्त पंजाब के लिए अलग संविधान बनाने की मांग रखी। 1980 तक आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के पक्ष में सिखों के बीच समर्थन बढ़ता गया।
1980 में khalistan movement पूरे चरम पर था
कहते हैं कि 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन (khalistan movement) पूरे उभार पर था। उसे विदेशों में रहने वाले सिखों के जरिए वित्तीय और नैतिक समर्थन मिल रहा था। इसी दौरान पंजाब में जनरैल सिंह भिंडरावाले खालिस्तान के सबसे मजबूत नेता के रूप में उभरे थे। उसने स्वर्ण मंदिर के हरमंदिर साहिब को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। उसने अपने साथियों के जरिए पूरे पंजाब में इस आंदोलन को खासा उग्र कर दिया। (khalistan terrorist)
कौन थे जरनैल सिंह भिंडरांवाले? (khalistan movement)
- आनंद साहिब रिजोल्यूशन का ही एक कट्टर समर्थक था जरनैल सिंह भिंडरांवाले। एक रागी के रूप में सफर शुरू करने वाले भिंडरांवाले आगे चल कर आतंकी बन गया। खुशवंत सिंह का कहना था कि भिंडरांवाले हर सिख को 32 हिंदुओं की हत्या करने को उकसाता था। उसका कहना था कि इससे सिखों की समस्या का हल हमेशा के लिए हो जाएगा।
- 1982 में भिंडरांवाले ने शिरोमणि अकाली दल से हाथ मिला लिया और असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। यही असहयोग आंदोलन आगे चलकर सशस्त्र विद्रोह में बदल गया। इस दौरान जिसने भी भिंडरांवाले का विरोध किया वह उसकी हिट लिस्ट में आ गया।
- कहा जाता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने उस समय अकाली दल के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भिंडरांवाले का समर्थन किया। इसके बाद सुरक्षाबलों से बचने के लिए भिंडरांवाले स्वर्ण मंदिर में जा घुसा। दो साल तक सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। इसी दौरान भिंडरांवाले स्वर्ण मंदिर परिसर में बने अकाल तख्त पर काबिज हो गया।
क्या स्वर्ण मंदिर खाली कराने के लिए चला था आपरेशन?
- इंदिरा सरकार ने स्वर्ण मंदिर को भिंडरांवाले और हथियारबंद समर्थकों से खाली कराने के लिए सेना का जो अभियान शुरू किया, उसे आपरेशन ब्लू स्टार नाम दिया गया था। (operation bluestar) एक से तीन जून 1984 के बीच पंजाब में रेल सड़क और हवाई सेवा बंद कर दी गईं। स्वर्ण मंदिर को होने वाली पानी और बिजली की सप्लाई बंद कर दी गई। अमृतसर में पूरी तरह कर्फ्यू लगा दिया गया था।
- सीआरपीएफ सड़कों पर गश्त कर रही थी। स्वर्ण मंदिर में आने-जाने वाले सभी एंट्री और एग्जिट पॉइंट को भी पूरी तरह से सील कर दिया गया था। पांच जून 1984 को रात 10:30 बजे आपरेशन का पहला चरण शुरू किया गया था। स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर की इमारतों पर आगे से हमला शुरू किया गया। इस दौरान खालिस्तानी आतंकियों ने भी सेना पर खूब गोलीबारी की।
- सेना आगे नहीं बढ़ पा रही थी। उधर, पंजाब के बाकी हिस्सों में सेना ने गांवों और गुरुद्वारों से संदिग्धों को पकड़ने के लिए एक साथ अभियान भी शुरू कर दिया था। एक दिन बाद जनरल केएस बरार ने स्थिति से निपटने के लिए टैंक की मांग की। छह जून को टैंक परिक्रमा तक सीढ़ियों से नीचे लाए गए। गोलीबारी में अकाल तख्त के भवन को भारी नुकसान हुआ। कुछ घंटों बाद भिंडरांवाले और उसके कमांडरों के शव बरामद कर लिए गए।
- सात जून तक भारतीय सेना ने परिसर पर कंट्रोल कर लिया। आॅपरेशन ब्लूस्टार 10 जून 1984 को दोपहर में समाप्त हो गया। इस पूरे आपरेशन के दौरान सेना के 83 जवान शहीद हुए और 249 घायल हो गए। सरकार के अनुसार, हमले में 493 आतंकवादी और नागरिक मारे गए। हालांकि कई सिख संगठनों का दावा है कि आॅपरेशन के दौरान कम से कम 3,000 लोग मारे गए थे।
आपरेशन खत्म होने के बाद क्या हुआ?
- आपरेशन ब्लूस्टार में निर्दोष लोगों की मौत होने के विरोध में कैप्टन अमरिंदर सिंह सहित कई सिख नेताओं ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। खुशवंत सिंह सहित प्रमुख लेखकों ने अपने सरकारी पुरस्कार लौटा दिए।
- चार महीने बाद 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख बॉडीगार्ड्स ने गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद हुए 1984 में सिख विरोधी दंगों में 8,000 से ज्यादा सिख मार दिए गए। सबसे ज्यादा दंगे दिल्ली में हुए। आरोप है कि इन दंगों को कांग्रेस नेताओं ने बढ़ावा दिया।
- एक साल बाद 23 जून 1985 में कनाडा में रह रहे खालिस्तान समर्थकों ने एअर इंडिया की फ्लाइट को बम रखकर उड़ा दिया। इस दौरान 329 लोगों की मौत हो गई। बब्बर खालसा के आतंकियों ने इसे भिंडरांवाले की मौत का बदला करार दिया।
- 10 अगस्त 1986 को आपरेशन ब्लूस्टार को लीड करने वाले पूर्व सेना प्रमुख जनरल एएस वैद्य की पुणे में दो बाइक सवार आतंकियों ने हत्या कर दी थी। खालिस्तान कमांडो फोर्स ने इस हत्या की जिम्मेदारी ली थी। 31 अगस्त 1995 को एक सुसाइड बॉम्बर ने पंजाब के सीएम बेअंत सिंह की कार के पास खुद को उड़ा लिया था। इसमें बेअंत सिंह की मौत हो गई थी। सिंह को आतंकवाद का सफाया करने का श्रेय दिया जाता था।
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