E-Nose Technology : हमारे शरीर में लक्षण दिखने के बाद किसी भी बीमारी का पता तब तक नहीं लगता जब तक ब्लड या अन्य तरह के सैंपल दिए जाने के बाद उसकी रिपोर्ट ना जाए। ऐसे में क्या ऐसा संभव हो सकता है कि आपने कोई सैंपल ना दिया हो और आपकी बीमारी का पता चल जाए? जी हां, ऐसा संभव हो सकता है।
साइंटिस्टों ने अब एक ऐसी डिवाइस की खोज की है जिससे बीमारी का पता लगाने के लिए तरह तरह के सैंपल देने से निजात मिल जाएगी। इस डिवाइस का नाम ई-नोज यानी इलेक्ट्रोनिक नोज है। ये डिवाइस कोरोना, अस्थमा और लीवर से जुड़ी के साथ साथ कई तरह के कैंसर का भी पता लगा सकती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि अगले दो-तीन सालों में ये डिवाइस हेल्थ सेक्टर में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी।(E-Nose Technology)
कई देशों में ई नोज के क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं और इसके सबसे ज्यादा आशाजनक नतीजे ब्रिटेन में मिले हैं। कैंसर रिसर्च यूके कैंब्रिज इंस्टीट्यूट रिसर्चर्स और डॉक्टर्स के लिए ब्रीद टेस्ट कर रही है। इस नई तकनीक के जरिए बीमारी पहचानने के साथ ही ये अनुमान भी लगाया जा रहा है कि मरीज को किसी नई दवा से खास फायदा मिलेगा या नहीं, या इलाज उस पर काम कर रहा है या नहीं? ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस से जुडे़ अस्पतालों और यूरोप के भी कई अस्पतालों में लंग कैंसर का पता लगाने के लिए ब्रीद टेस्ट की मदद ली जा रही है। (E-Nose Technology)
इस डिवाइस में कैमरे के आकार के एक गैजेट के साथ एक सिलिकॉन का डिस्पॉजेबल मास्क जुड़ा होता है। इस मास्क में लगे सेंसर सांस का विश्लेषण करते हैं। बायोटेक कंपनी आउलस्टोन के सीईओ बिली बॉयले बताते हैं कि उनकी ये डिवाइस लीवर की बीमारियों के साथ कोलोन कैंसर का पता लगाने में भी सक्षम है।
हमारे द्वारा छोड़ी गई सांसों में करीब 3500 वीओसी यानी वाष्पशील कार्बनिक यौगिक, गैस के कण और ड्रॉपलेट्स मौजूद रहते हैं। हर स्थिति में इन वीओसी की केमिकल नेचर यानी रसायनिक प्रकृति अलग होती है। ई-नोज एआई के जरिए इसी केमिकल के व्यूह को पहचानती है। चेस्ट फिजिशियन डॉ एंड्रयू बुश कहते हैं कि यह तथ्य तो साबित हो चुका है कि हमारी सांसों में मौजूद रसायन यानी केमिकल सेहत की स्थिति बता देते हैं। आउलस्टोन की डिवाइस में हमने इसी को आधार बनाकर काम किया है।
नीदरलैंड्स के रेडबाउंड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के प्रो पीटर सीसेंमा के अनुसार आंत और कोलोन के कैंसर का पता तो सांसों में हो रहे केमिकल चेंज से लगा ही रहे हैं, लेकिन अब किडनी की समस्या वाले मरीजों की सांसों में अमोनिया का हाई लेवल जैसी समस्या भी इससे पता लगने लगी है। वहीं जर्मनी की एयरसेंस ने पेन 3 ई-नोज डिवाइस को पीसीआर टेस्ट में पॉजिटिव नतीजों के जरिए वायरस पहचानना सिखाया। वह ई नोज 80 सेकेंड बाद ही कोरोना का पहचानने में सक्षम हो गई। रिसर्चर्स का मानना है कि भीड़भाड़ वाली जगहों पर ई-नोज रीयल टाइम डायग्नोज में सक्षम हो सकती है। (E-Nose Technology)
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