इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : बिहार में जातिगत जनगणना के लिए 6 जून को राज्य सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मालूम हो, बिहार सरकार द्वारा जारी की गई नोटिफिकेशन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। जातिगत जनगणना के खिलाफ दायर की गई याचिका में कहा गया है कि जातिगत जनगणना का नोटिफिकेशन संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। याचिका में ये भी कहा गया है कि जनगणना अधिनियम के तहत सरकार को जणगणना का अधिकार नहीं है। विधानसभा से कानून पास किए बगैर इस करवाया जा रहा है।

जानकारी दें, बिहार में 7 जनवरी से जातिगत जनगणना का पहला दौर शुरू हो गया है। पहले दौर में जानकारी के मुताबिक,पहले मकानों की गिनती हो रही है। इसके बाद आवासीय मकानों पर नंबर डाले जाएंगे। इस जनगणना के दौरान केवल जातियों की गणना नहीं, बल्कि राज्य के हर परिवार के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी।

जातिगत जनगणना दो चरणों में होगी

जानकारी दें, जातिगत जनगणना पर बिहार सरकार की दलील है कि इससे देश के विकास और समाज के उत्थान में बहुत फ़ायदा होगा । मालूम हो, जातिगत जनगणना दो चरणों में होगी। पहला चरण 7 जनवरी से शुरू हो चुका है जो 21 जनवरी तक चलेगा। दूसरा चरण 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक चलेगा। नीतीश सरकार में जातिगत जनगणना कराने की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग को दी गई है।

बीजेपी ने भी जातिगत जनगणना पर उठाये हैं सवाल

जानकारी दें, जातिगत जनगणना पर बीजेपी ने भी सवाल उठाए हैं। बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा है कि बिहार में जातिगत जनगणना शुरू कर दी गई है लेकिन अभी तक सरकार या महागठबंधन के किसी भी प्रतिनिधि ने यह नहीं बताया है कि जातिगत जनगणना का स्वरूप क्या होगा? बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि पहले नीतीश कुमार यह बताएं कि उपजाति का वास्तविक अर्थ क्या है और उपजातियों की गिनती जातीय जनगणना में क्यों नहीं कराया जाएगा।