इंडिया न्यूज, चंडीगढ़:
कोरोना की दूसरी लहर जारी है और तीसरी की आशंका एक्सपर्ट्स निरंतर जता रहे हैं। कोरोना की वैक्सीन (Corona Vaccine) आने पर थोड़ी राहत मिली। लेकिन वैक्सीन (Corona Vaccine) यूं ही नहीं बनी। सबको दिए जाने से पहले गिने चुने लोगों के शरीर पर इसको आजमाया गया ताकि पता लग सके कि बाकी के लिए कहीं इसके दुष्प्रभाव तो नहीं हैं। अंबाला के रहने वाले अरुण पाल वो पहले व्यक्ति हैं जिसने कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) के ट्रायल के लिए अपना जीवित शरीर दान कर दिया और अन्य के लिए एक मिसाल बने।
उन पर ट्रायल महज एक दफा नहीं, बार बार किया गया। इसके चलते कई दफा जान जोखिम में डाली। ये इनका योगदान है जो दवाई को कई बार के ट्रायल के बाद अप्रूवल मिल पाया। लेकिन इस नेक काम के लिए खुद की जिंदगी दांव पर लगाने वाले अरुण को पूछने वाला कोई नहीं है। सबकी अनदेखी के शिकार अरुण के साथ इस तरह का व्यवहार ना केवल परेशान करने वाला है, बल्कि सोचने पर मजबूर करने वाला है। जहां अंबाला व प्रदेशवासी निरंतर अरुण को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करने की मांग कर रहे हैं तो वहीं लोकल प्रशासन के सर पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
अरुण के शरीर पर कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) का ट्रायल कोई एक दो दिन के लिए नहीं था। बल्कि ये 194 दिन यानि कि करीब 6 महीने तक चला है। ऐसे में समझा जा सकता है कि कितना कठिन और जोखिम भरा काम था। लेकिन शायद प्रशासन को इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। उसी का नतीजा है कि एक बार भी किसी कार्यक्रम में अरुण को सम्मानित करना तक गंवारा नहीं समझा गया।
हालांकि अरुण इस बारे में कुछ ज्यादा तो नहीं कहते लेकिन चेहरे पर पीड़ा समझी जा सकती है। उन्होंने ये भी बताया कि एक कार्यक्रम में अन्य को तो सम्मानित किया गया लेकिन उनसे दूरी बनायी गई जो कि सबकी समझ से परे है। वहीं ये भी बता दें कि अरुण दुर्गानगर निवासी अरुण के पिता एक प्लंबर हैं हमेशा की तरह उन्होंने अपने जन्मदिन 19 जुलाई के दिन कुछ अलग करने की ठानी और ये इसी का नतीजा है कि उस दिन ट्रायल के लिए जीवित शरीर दान दिया जबकि मरने पर ही आदमी का शरीर दान किया जाता है।
वहीं अरुण ने बताया कि उन्होने कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) के लिए सबसे पहले ट्रायल दिया और जीवित शरीर को इस काम के लिए डोनेट कर दिया। ऐसा उन्होंने कई बार किया। रिस्क की संभावना बराबर बनी हुई थी लेकिन मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है। इस नेक काम का हिस्सा बनकर वो बेहद गर्व महसूस करते हैं।
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