इंडिया न्यूज़ (रायपुर): छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा की भारीतय दंड संहिता की धारा 498 A को पति के परिवार को सबक सिखाने के लिए हथियार की तरह नहीं इस्तेमाल किया जा सकता,न्यायमूर्ति गौतम बहदुरी और रजनी दुबे की बेंच ने पति को तलाक का एक फरमान देते हुए कहा कि यह शादी का अपूरणीय टूटना है जो किसी भी मरम्मत से परे है.
इस मामले में पति का परिवार न्यायालय बिलासपुर द्वारा पारित निर्णय और हुक्मनामा के खिलाफ उच्च न्यायालय गए थे,जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम,1955 की धारा 13 के तहत तलाक की मांग को खारिज कर दिया गया था,आदमी की पत्नी ने अपीलकर्ता-पति के साथ-साथ उनके वृद्ध माता-पिता,अविवाहित बहन और भाइयों के खिलाफ 498-ए आईपीसी के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी,हालांकि,उन सभी को 2006 में निचली अदालत ने आरोपों से बरी कर दिया था.
इस हर हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा की अपीलकर्ता एक डॉक्टर है और जैसा कि सुनवाई के दौरान कहा गया है, प्रतिवादी-पत्नी एक निजी शिक्षक हैं,एक आपराधिक मामले का सामना करना हमेशा समाज में एक कलंक माना जाता है,आईपीसी की धारा 498-ए के तहत रिपोर्ट को पति के परिवार के सदस्यों को सबक सिखाने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है,क्योंकि यह एक युवा पेशेवर की भविष्य की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है और इसे भरने में लंबा समय लग सकता है,इसलिए हमारी राय है कि पत्नी द्वारा पूरे परिवार के सदस्यों के खिलाफ धारा 498-ए के तहत लगाए गए झूठे आरोप मानसिक क्रूरता और प्रतिवादी-पत्नी के इस तरह का आचरण अपीलकर्ता-पति को मानसिक पीड़ा और प्रताड़ना देता है,उसके लिए अपीलकर्ता-पति के साथ रहना संभव नहीं होगा, अदालत ने आगे कहा कि हम पति के पक्ष में तलाक का आदेश देते है.