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हिमाचल कांग्रेस में सरकार बनने के बाद भी तकरार बरकरार, मंत्रिमंडल गठन में देरी से उठे सवाल

Ashish kumar Rai • LAST UPDATED : January 2, 2023, 5:15 pm IST

इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : हिमाचल, गुजरात और दिल्ली एमसीडी के चुनावी नतीजे पिछले 8 दिसंबर को आए थे। दिल्ली और गुजरात में कांग्रेस को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। तो वहीं हिमाचल में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाकर कांग्रेस ने अपनी साख बचाई थी। वीरभद्र परिवार या कोई और सीएम पद की छीनाझपटी से जल्द निपटते हुए 11 दिसम्बर को मुख्यमंत्री के तौर पर सुखविंदर सुक्खू और उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री को शपथ ली थी।

लेकिन साल बदल गया, 2022 से 23 आ गया। तब से करीब 21 दिन हो गए लेकिन अब तक महज 68 सीटों वाले राज्य में अब तक मंत्रिमंडल का गठन नहीं हो सका। इस बीच मुख्यमंत्री कई बार दिल्ली दौरा भी कर चुके, लेकिन पार्टी के अंदर की खेमेबाज़ी, इलाकाई संतुलन और 3 निर्दलीय विधायकों के समर्थन के चलते एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति बनी हुई है, जिससे पार पाना कांग्रेस पार्टी के लिए खासा मुश्किल पड़ रहा है।

मंत्रिमंडल गठन में देरी पर कांग्रेस बचाव

जानकारी दें, मंत्रिमंडल गठन में देरी मामले पर सफाई देते हुए कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि, बीजेपी ने असम और महाराष्ट्र में कितने दिन लगाए थे, राज्यपाल बीच में छुट्टी पर भी थे, कोई गुटबाज़ी नहीं है। लेकिन सबसे बात करके ही ये फैसले होते हैं, उसमें थोड़ा समय लग जाता है। जानकारी दें, शिमला, कांगड़ा, हमीरपुर, मंडी में बंटे हिमाचल में सामंजस्य बैठाना पार्टी के लिए कठिन हो गया है।

कई विधायकों में मंत्री बनने की चाहत

जानकारी दें, पूर्व अध्यक्ष कुलदीप राठौर, पिछली बार प्रेम कुमार धूमल को हराने वाले राजेन्द्र राणा, पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा, धनीराम शांडिल्य, कुलदीप पठानिया जैसे बड़े नामों ने मंत्री पद की चाहत में है। जबकि, बड़े दिवंगत नेता जीएस बाली के बेटे और सबसे ज़्यादा वोट से जीतने वाले रघुबीर बाली भी दावा ठोंक रहे हैं, तो सुक्खू के करीबी अनिरुद्ध सिंह भी दावेदार हैं।

वीरभद्र परिवार का खेमा प्रमुख चुनौती

वहीं, वीरभद्र परिवार का खेमा अपने ज़्यादा से ज़्यादा समर्थकों को मंत्री बनवाना चाहता है। इसके अलावा आलाकमान चाहता है कि, वीरभद्र के बेटे विक्रमादित्य को शामिल किया जाए, जिससे गुटबाज़ी दूर हो.ऐसे में जातिगत, क्षेत्रवार संतुलन साधना, दिग्गजों के साथ ही नयों को मौका देना और हर खेमे को सन्तुष्ट करने में कांग्रेस अभी तक उलझी हुई है।

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