इंडिया न्यूज, नई दिल्ली।
Omicron India New Updates: 24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका में कोरोना का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन (omicron variant) अब तक 80 से ज्यादा देशों में फैल चुका है। देश में ओमिक्रॉन के अब तक 200 मामलों की पुष्टि हुई है। सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में दिल्ली और महाराष्ट्र शामिल हैं।
दोनों राज्यों में ओमिक्रॉन के 54-54 मामले मिले हैं। ओमिक्रॉन (omicron vaccine) को लेकर नीति आयोग का कहना है कि 13-14 लाख तक रोजाना केस आने की संभावना है। उधर आईआईटी कानपुर का कहना है कि जनवरी 2022 में तीसरी लहर आ सकती है। वहीं कई यूरोपीय देशों, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और यूके में केस फिर से बेतहाशा बढ़ रहे हैं।
omicron variant news: दक्षिण अफ्रीका में रोजाना 26-28 हजार केस मिल रहे हैं। 98 फीसदी नए केस के पीछे ओमिक्रॉन ही वजह है। वहीं ब्रिटेन में रोजाना करीब 90 हजार के आसपास मामले आ रहे हैं। हालांकि, यहां नए केस की वजह पहले से मौजूद डेल्टा वेरिएंट ही है। केवल 2.4 फीसदी नए केस ओमिक्रॉन की वजह से आ रहे हैं।
omicron variant symptomsओमिक्रॉन पर वैक्सीन की इफेक्टिवनेस को लेकर अलग-अलग स्टडीज में कहा गया है कि वैक्सीन ओमिक्रॉन पर कम इफेक्टिव है। उसके बाद से ही ओमिक्रॉन से निपटने के लिए लोगों को बूस्टर डोज दिए जा रहे हैं। फाइजर और मॉडर्ना जैसी वैक्सीन कंपनियां भी बूस्टर डोज को ओमिक्रॉन पर ज्यादा कारगर बता चुकी हैं।
बता दें आपके शरीर में एंटीबॉडी बिल्कुल न होना और कम होना दो अलग-अलग बातें हैं। एंटीबॉडी नहीं होगी तो सबसे ज्यादा खतरा होगा, लेकिन एंटीबॉडी भले ही कम हो वो वायरस को रोकने में कारगर होगी। स्टडीज में सामने आया है कि वैक्सीन लेने के नौ महीने बाद शरीर में एंटीबॉडी कम होने लगती है। इसलिए शरीर में एंटीबॉडी लेवल बनाए रखने के लिए बूस्टर डोज दिया जा रहा है।
omicron variant severity: ओमिक्रॉन के खिलाफ वैक्सीन की इफेक्टिवनेस भले ही कम हो लेकिन टी-सेल पर कोई असर नहीं पड़ता। टी सेल हमारे इम्यून सिस्टम का पार्ट है, जो इंफेक्शन से निपटने का काम करती है। टी सेल इंफेक्टेड सेल्स को नष्ट कर देती हैं, जिससे कि इंफेक्शन की रफ्तार धीमी हो जाती है।
वहीं ओमिक्रॉन पर हॉन्ग-कॉन्ग यूनिवर्सिटी की स्टडी कहती है कि रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट में ओमिक्रॉन डेल्टा या ओरिजिनल स्ट्रेन के मुकाबले 70 गुना ज्यादा तेजी से फैलता है। हालांकि, लंग टिश्यू में ये 50-60 गुना तेजी से फैलता है। यानी, ओमिक्रॉन का फेफड़ों पर इतना गंभीर असर नहीं होता है। इसी कारण ओमिक्रॉन की वजह से लोगों में गंभीर लक्षण नहीं देखे जा रहे हैं।
एक्सपर्ट्स इसे डार्विन की नेचुरल सिलेक्शन थ्योरी से भी जोड़ते हैं। वायरस खुद को जिंदा रखने के लिए अपने आप में बदलाव करता रहता है। खतरनाक स्ट्रेन की वजह से मरीज की मौत हो जाती है और वायरस मर जाता है। इसलिए खुद को ज्यादा से ज्यादा समय तक जीवित रखने के लिए वायरस खुद में बदलाव मरीजों में केवल हल्के लक्षण पैदा कर रहा है, ताकि उसे लंबे समय तक एक होस्ट बॉडी मिले।
ओमिक्रॉन के स्पाइक प्रोटीन में ही 26-32 म्यूटेशन है। स्पाइक प्रोटीन से ही वायरस शरीर में प्रवेश के रास्ते खोलता है। इसकी तुलना में डेल्टा के स्पाइक प्रोटीन में 18 म्यूटेशन हुए थे। ओमिक्रॉन के रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन में भी 10 म्यूटेशन हो चुके हैं, जबकि डेल्टा वेरिएंट में केवल दो ही म्यूटेशन हुए थे। रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन वायरस का वह हिस्सा है जो इंसान के शरीर के सेल के सबसे पहले संपर्क में आता है। इन वजहों से ओमिक्रॉन को खतरनाक माना जा रहा है।
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