दिल्ली में हुए श्रद्धा मर्डर केस ने हर किसी को चौका दिया है, वही इस हत्याकांड के बाद कई और केस भी निकल कर सामने आए है, जो लोगो को ज्यादा परेशान कर रहें है. इन केस में हर रोज नए खुलासे हो रहे है. जो भी व्यक्ति इस केस के बारे में सुन रहा है उसका भरोसा इंसानियत से उठने लगा है. लोगों के मन में एक सवाल तेजी से घर कर रहा है की आखिर कोई किसी को कैसे इतनी बेरहमी से मार सकता है। आज आपनी इस रिपोर्ट में आपको बताएंगे की बेरहमी से हत्या करने वाले का दिमाग एक नॉर्मल इंसान से कितना अलग होता है।
आप इस बात को डॉक्टर्स की स्टडी से समझ सकते है. 70 के दशक के एक इटली के डॉक्टर जिन्हें फादर ऑफ साइंटिफिक क्रिमिनोलॉजी भी कहा जाता था, उन्होनें ने ये दावा किया कि कत्ल करने वालों के शरीर की बनावट आम लोगों से अलग होती है. डॉ का कहना था की उनके हाथ ज्यादा लंबे, और कान काफी बड़े होते हैं. इस दाव को सीध करने के लिए डॉ उस वक्त जेल में पड़े शातिर अपराधियों से मिलान करने गए थे.
तो वहां उन्हें हत्यारों के कान और हाथ दोनों छोटे दिखे. जिसके बाद डॉक्टर लॉम्बोर्सो का जमकर मजाक भी बना. लेकिन ये डॉक्टर लॉम्बोर्सो के लिए अपराधियों और खासकर हत्यारों पर रिसर्च की शुरुआत थी. वहीं हाथ-पैर, कान-आंखों से होते हुए न्यूरोसाइंस ब्रेन तक जा पहुंचा. अस्सी के दशक में ब्रेन की स्कैनिंग के बाद वैज्ञानिक समझने लगे कि छोटे-से दिमाग के भीतर क्या-क्या चलता है. कैसे लगभग 3 पाउंड की ये चीज अच्छे-खासे इंसान को पागल बना सकती है. या फिर हंसता-प्यार करता बिल्कुल सामान्य दिखने वाला आदमी अपने ही परिवार या दोस्तों की बेरहमी से हत्या कर सकता है. जहां डॉ को ब्रेन इमेज में कई ऐसी बातें दिखीं, जिन्होंने साफ कर दिया कि हत्यारा दिमाग अलग तरीके से काम करता है- क्योंकि वो आम इंसान से अलग होता है.
एक और स्टडी इस पर की गई थी जिसकी शुरुआत कैलिफोर्निया से हुई. बता दें कि यह राज्य इस तरह की हत्याओं के लिए बदनाम था. वहीं 40 से ज्यादा कैदियों की पीईटी जांच कि गई, ताकि दिमाग के भीतर बायोकेमिकल फंक्शन को समझा जा सके. आसान भाषा में इसे कहें तो ये पकड़ा जा सके कि दिमाग में क्या खिचड़ी पकती है. जब उन लोगों के दिमाग का स्कैन किया गया उस दौरान ये दिखा कि हत्यारों के ब्रेन के कई हिस्से सिकुड़े हुए हैं. खासकर प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स .
बता दें कि ये मस्तिष्क का वो भाग होता है, जो सेल्फ-कंट्रोल सिखाता है. यानी गुस्सा आने पर दांत भींचकर भले रह जाएं, लेकिन सामने वाले का मुंह नहीं तोड़ना है. यही वो हिस्सा है, जो खतरों का अंदाजा भी देता है. जैसे ऊंची जगह से कूदने पर मौत हो सकती है, या जहर पीने पर जान बच भी जाए तो अंतड़ियां खराब हो सकती हैं. कातिल दिमाग रखने वालों में यही प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स काफी छोटा दिख रहा था. वही वैज्ञानिकों के मुताबिक इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जो जेनेटिक भी हैं, और कई बार सिर पर गहरी चोट लगना भी एक कारण बनता है. साथ ही बचपन में एब्यूज झेलने वालों के साथ भी ये हो सकता है.
ब्रेन पर हुई सबसे नई स्टडी में क्रिमिनल साइकोपैथ के दिमाग में धब्बे नजर आते हैं. ये संकेत है कि उनके दिमाग में फैसला लेने और भावनाओं पर काबू रखने वाले हिस्से अमीग्डेला और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स जिसका काम अमीग्डेला के रिस्पॉन्स को समझकर प्रोसेस करना होता है, दोनों में काफी दूरी थी. यानी दोनों ही हिस्से सिकुड़े हुए थे. इससे हत्यारा न केवल हत्या करता है, बल्कि उसके बाद दुख या शर्म भी महसूस नहीं कर पाता है.
वहीं जो लोगों को ब्रेन की स्कैनिंग पर भरोसा नहीं करते है। उनके लिए एक और जानकारी है! एक खास जीन भी होता है, जिसका मिसिंग होना किसी भी आदमी को हत्यारा बना सकता है. इसे मोनोअमीन ऑक्सीडेज ए कहते हैं. ये न्यूरोट्रांसमीटर मॉलीक्यूल्स जैसे सेरेटोनिन और डोपामिन पर कंट्रोल रखता है. इनका सीधा ताल्लुक मूड, भावनाओं नींद और भूख से है. अगर ये गड़बड़ाए तो इंसान के गड़बड़ाते देर नहीं लगती. ऐसे में अगर इनपर काबू करने वाला जीन ही गायब हो जाए या कम पड़ जाए तो नतीजा खतरन हो सकता है. यही वजह है कि मोनोअमीन ऑक्सीडेज ए को वॉरियर जीन या सीरियल किलर जीन भी कहा गया है।
इस मिसिंग जीन का खतरा भी पुरुषों को ज्यादा होता है, जबकि महिलाएं इसके लिए कैरियर का काम करती हैं, एक से दूसरी पीढ़ी तक ले जाने का महिलाएं करती है. वहीं ज्यादातर मामलों में इस जीन की कमी परिवार के प्यार, अच्छे खानपान के बीच पता नहीं लग पाती है. जिन घरों में माता-पिता एब्यूसिव रिश्ते में हों, जहां मारपीट या गाली गलौज हो, उन घरों के बच्चों में अगर ये जीन कम है, तो गुस्सा कंट्रोल से बाहर हो जाता है. यही बच्चे बड़े होते-होते क्रिमिनल बिहैवियर दिखाने लगते हैं, और आगे चलकर हत्या भी कर सकते हैं.
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