दिल्ली

Artificial Rain : कैसे होती है आर्टिफिशियल बारिश, कितना आता है इसे कराने में खर्च? जानिए यहां सबकुछ

India News Delhi(इंडिया न्यूज)Artificial Rain : राजधानी दिल्ली इन दिनों गैस चैंबर में तब्दील हो गयी है। यहाँ की वायु गुणवत्ता हर दिन बद से बदतर होती जा रही है। मंगलवार सुबह 7 बजे दिल्ली के कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 500 से ऊपर दर्ज किया गया। इन दिनों दिल्ली के ज्यादातर इलाकों का यही हाल है। देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट भी दिल्ली के प्रदूषण पर नज़र बनाए हुए है। इस बीच दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कृत्रिम बारिश के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है।

शहर के प्रदूषण पर गोपाल राय ने कहा कि उत्तर भारत इस समय धुंध की परतों में लिपटा हुआ है। इस धुंध से निजात पाने के लिए कृत्रिम बारिश ही एकमात्र उपाय है। उन्होंने दिल्ली के मौजूदा हालात को मेडिकल इमरजेंसी बताया। हालांकि, इस बीच सवाल उठता है कि आखिर यह कृत्रिम बारिश होती कैसे है और इसे करवाने में कितना खर्च आता है? आइए जानते हैं।

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कृत्रिम वर्षा क्या है?

कृत्रिम वर्षा (नकली बारिश), जिसे क्लाउड सीडिंग के नाम से भी जाना जाता है, एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके ज़रिए बादलों में कृत्रिम रूप से बारिश उत्पन्न की जाती है। यह तकनीक प्राकृतिक बारिश जैसी ही है, लेकिन इसमें बादलों में कृत्रिम तत्व डाले जाते हैं ताकि बारिश हो सके।

इस प्रक्रिया में बादलों पर सोडियम क्लोराइड, सिल्वर आयोडाइड या पोटैशियम आयोडाइड जैसे कृत्रिम तत्व डालकर बादलों में नमी की मात्रा बढ़ाई जाती है। इन तत्वों का मुख्य उद्देश्य पानी की बूंदों को आपस में जोड़ना है, ताकि वे भारी हो जाएँ और धरती पर गिर सकें।

आर्टिफिशियल बारिश कराने में कितनी लागत आती है?

कृत्रिम बारिश एक महंगी प्रक्रिया हो सकती है, क्योंकि इसके लिए विशेष उपकरणों और वैज्ञानिक तकनीकों की आवश्यकता होती है। अगर भारत में इस तकनीक की लागत की बात करें तो इसमें सीडिंग एजेंट और विमान/ड्रोन की उड़ान का खर्च मुख्य रूप से शामिल है।

भारत में कृत्रिम बारिश की लागत की बात करें तो इस प्रक्रिया में प्रति हेक्टेयर 1 लाख रुपये से लेकर 3 लाख रुपये तक का खर्च आ सकता है, यह लागत मौसम की स्थिति, तकनीक के प्रकार और क्षेत्र के आकार पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, अगर दिल्ली सरकार कृत्रिम बारिश कराने की योजना बनाती है, तो पूरे शहर में इसे लागू करने में बहुत अधिक खर्च आ सकता है।

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Ashish kumar Rai

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