इंडिया न्यूज़ (दिल्ली):सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा पर एक जुलाई की गई टिप्पणियों पर 100 से ज्यादा पूर्व जजों,नौकरशाहो और सैनिको ने पत्र जारी किया है इसमें कहा गया है की सर्वोच्च न्यायालय का ऐसा दृष्टिकोण प्रशंसा के योग्य नहीं है और उच्चतम न्यायालय की पवित्रता और सम्मान को प्रभावित करता है.
टिप्पणियों ने सदमे का संचार किया
पत्र में कहा गया है की सुप्रीम कोर्ट के दो जजों द्वारा की गए टिप्पणियों ने लक्ष्मण रेखा को लांग दिया है और हमे बयान जारी होने को मजबूर होने पड़ा है,नूपुर शर्मा केस में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों ने देश और देश के बाहर एक सदमे की लहर का संचार किया है,इन टिप्पणियों को सभी चैनलों ने जोर जोर से प्रसारित किया है जो न्यायकि लोकाचार के अनुरूप नहीं है,यह टिप्पणियों जो आदेश का हिस्सा नहीं हैं किसी भी तरह से न्यायिक औचित्य और निष्पक्षता के रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता है,नूपुर शर्मा को उस कार्यवाही में दोषी ठहराया गया है जहां यह कोई मुद्दा ही नहीं था,इस तरह के अवलोकन से दिन के उजाले में उदयपुर में क्रूर सिर काटने की आभासी छूट मिलती है.
भारतीय संविधान को सूली पर चढ़ाने जैसा
पत्र में लिखा गया है की टिप्पणियां जो व्यहवार में अनुमानित हो ऐसे मुद्दे पर जो न्यायालय के समक्ष भी नहीं है,भारतीय संविधान के आत्मा और सार को सूली पर चढ़ाने जैसा है,यदि कानून के शासन, लोकतंत्र को कायम रखना है और अच्छे से आगे बढ़ाना है तो इन टिप्पणियों को नज़रअंदाज़ करना गंभीर होगा इन्हे वापस लिए जाने की जरुरत है,सुप्रीम कोर्ट ने याचिका का संज्ञान लेने से इनकार कर दिया और नुपुर शर्मा को याचिका वापस लेने और उचित फोरम (उच्च न्यायालय) से संपर्क करने के लिए मजबूर किया, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि उच्च न्यायालय के पास प्राथमिकी को स्थानांतरित करने या क्लब करने का अधिकार नहीं है.
इस पत्र में 15 पूर्व जज ,78 पूर्व नौकरशाहो और 25 पूर्व सैन्य अफसरों के हस्ताक्षर है.