इंडिया न्यूज़ (दिल्ली): सुप्रीम कोर्ट ने कहा की मुस्लिम समाज में प्रचलित तलाक-ए-हसन प्रथमदृष्टया अनुचित नही लगता, मुस्लिम महिलाओं के पास भी विकल्प है। यह तलाक देने का एक खुला तरीका है.

सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और एम.एम सुंदरेश की पीठ ने तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की, याचिकाकर्ता की तरफ से वकील पिंकी आनंद ने कहा की सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया, लेकिन उसने तलाक-ए-हसन के मुद्दे को छोड़ दिया.

बेंच ने कहा की प्रथम दृष्टया यह (तलाक ए हसन) इतना अनुचित नहीं है। महिलाओं के पास भी खुला विकल्प है। प्रथम दृष्टया हम याचिकाकर्ता से सहमत नही है। हम नही चाहते की इस मुद्दे को किसी भी कारण से किसी एजेंडे के लिए इस्तेमाल किया जाएं.

जस्टिस संजय किशन कौल ने टिपण्णी करते हुए कहा की, इसमें महिलाओं के पास भी खुला विकल्प है। जब दो लोग साथ नही रह सकते तो हम शादी टूटने पर तलाक देते है। कोर्ट ने पूछा की यदि पत्नी का ध्यान रखा जाता है तो क्या आप आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हैं? कोर्ट के बिना हस्तक्षेप के, यदि पति आपसी सहमति से तैयार हो, क्या आप इस विषय पर जो पत्नी के लिए उचित है,आपसी सहमति से तय करने को तैयार है?

याचिकाकर्ता के वकील द्वारा निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगे जाने पर पीठ ने मामले को 29 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया.

यह जनहित याचिका पत्रकार बेनज़ीर हीना ने लगाई थी, इसमें कहा गया था की उसे तलाक की पहली क़िस्त 19 अप्रैल को स्पीड पोस्ट के जरिए मिली, फिर ऐसे ही दूसरी और तीसरी क़िस्त भी स्पीड पोस्ट से दी गई, याचिकाकर्ता ने तलाक-ए-हसन को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंगन बताते हुए, असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी.

तलाक-ए-हसन, मुस्लिम समाज में प्रचलित तलाक देने की एक प्रक्रिया है, जिसमे पति महीने में एक बार लगातार तीन महीने तक तलाक बोलकर पत्नी को तलाक देता है.