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200 साल पुरानी परंपरा, नवरात्रि में एक श्राप के कारण पुरुष साड़ी पहनकर करते हैं गरबा, जानें इस शहर की अनोखी कहानी

Nishika Shrivastava • LAST UPDATED : October 5, 2024, 4:56 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), 200 Year Old Tradition When Men Wear Sarees and Do Garba Due To A Curse: नवरात्रि एक वार्षिक हिंदू त्यौहार है, जो साल में दो बार नौरातों में मनाया जाता है। पहला चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में और दूसरा अश्विन (सितंबर-अक्टूबर) के महीने में। यह त्यौहार देवी दुर्गा को समर्पित है, जो ‘आदि पराशक्ति’ का एक रूप भी हैं, जिन्हें सर्वोच्च देवी भी कहा जाता है। बता दें कि नवरात्रि की नौ रातें हिंदू संस्कृति की नौ अलग-अलग देवियों को समर्पित हैं।

भारत के विभिन्न राज्यों में इसे कैसे मनाया जाता है?

आपको बता दें कि देवियों के नाम उनके दिनों के क्रम में इस प्रकार हैं: देवी शैलपुत्री (पहला दिन), देवी ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन), देवी चंद्रघंटा (तीसरा दिन), देवी कुष्मांडा (चौथा दिन), देवी स्कंदमाता (पांचवां दिन), देवी कात्यायनी (छठा दिन), देवी कालरात्रि (सातवां दिन), देवी महागौरी (आठवां दिन) और देवी सिद्धिदात्री (नौवां दिन)। नवरात्रि का त्यौहार देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। गुजरात में जहां गरबा और डांडिया की धूम रहती है, वहीं पश्चिम बंगाल में लोग दुर्गा पूजा और सिंदूर खेला मनाते हैं, तथा महाराष्ट्र में लोग आयुध पूजा करके नवरात्रि मनाते हैं।

उत्तर प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में रामलीला का आयोजन होता है, जिसका समापन नवरात्रि के दसवें दिन होता है, जिसे विजयादशमी कहते हैं। नवरात्रि उत्सव की बात करें तो हर क्षेत्र की अपनी पहचान होती है। जहां पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लोग मांसाहारी भोजन खाते हैं, वहीं भारत के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्रों में मांसाहारी भोजन पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। यह विविधता ही है जो हर चीज़ को खूबसूरत बनाती है और सोशल मीडिया के उदय के साथ ही हम एक राज्य से दूसरे राज्य में संस्कृति के हस्तांतरण को भी देख रहें हैं।

अहमदाबाद के नवरात्रि पर पुरुष साड़ी पहनकर गरबा क्यों करते हैं?

देशभर में नवरात्रि के चलते उत्साह और उल्लास के बीच, हम अहमदाबाद के साडू माता नी पोल इलाके के बारे में बात करेंगे, जो हर साल इस समय ट्रेंड करता है। साडू माता नी पोल 200 साल पुरानी परंपरा के कारण नवरात्रि के आठवें दिन सोशल मीडिया पर सुर्खियों और ट्रेंड में आ जाता है। साडू माता नी पोल इलाके के ज़्यादातर पुरुष 200 साल पुराने श्राप का सम्मान करने के लिए साड़ी पहनते हैं और गरबा करते हैं। जी हाँ! जिस तरह से वो गरबा करते हैं, वो इंस्टाग्राम रील्स पर दिखने वाले गरबा से कम ग्लैमरस होता है, क्योंकि इसके पीछे की कहानी गंभीर होती है।

क्या है इस 200 साल पुराने श्राप के पीछे क्या है कहानी?

एक रिपोर्ट के अनुसार, साडू माता नी पोल के पूर्वजों को साडू माता ने श्राप दिया था। स्थानीय लोगों की मानें तो 200 साल पहले साडूबेन नाम की एक महिला ने मुगलों से बचने के लिए बरोट समुदाय के लोगों से मदद मांगी थी। मुगल साडूबेन को अपनी रखैल बनाना चाहते थे और उनकी कई बार मदद की गुहार के बावजूद बरोट समुदाय से कोई भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। जब एक भी आदमी आगे नहीं आया तो मुगलों ने साडूबेन के बच्चे को मार डाला और उसे अपनी रखैल बनाने के लिए मजबूर कर दिया। हालांकि, साडूबेन ने सती प्रथा का पालन करके अपनी जान दे दी।

सती होने से पहले साडूबेन ने बरोट समुदाय के लोगों को श्राप दिया था कि उनकी आने वाली पीढ़ियां कायर बनकर रहेंगी। इसलिए साडूबेन की आत्मा को शांत करने के लिए स्थानीय लोगों ने एक मंदिर भी बनवाया। हर साल नवरात्रि की आठवीं रात को बरोट समुदाय के लोग मंदिर के सामने इकट्ठा होते हैं और श्राप का सम्मान करने के लिए शानदार गरबा करते हैं। साड़ी पहने पुरुष शेरी गरबा की धुन पर नृत्य करते हैं, जो एक लोक नृत्य है जो पीढ़ियों से चला आ रहा है।

पवित्र आत्मा लोगों को ऐसे देती है आशीर्वाद

दिलचस्प बात यह है कि बरोट समुदाय साधुबेन को एक पवित्र आत्मा मानता है और यह अनुष्ठान सिर्फ़ पापों के प्रायश्चित के लिए ही नहीं बल्कि उनका आशीर्वाद पाने के लिए भी किया जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, साधु माता ने उनकी इच्छाएं पूरी की हैं, यही एक और कारण है कि वो इस परंपरा का पालन करते आ रहे हैं और निश्चित रूप से इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाएंगे।

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