India News (इंडिया न्यूज़), धर्म डेस्क, Mahadev Formula for Success: जीवन की यात्रा बड़ी ही अनोखी है। बचपन से लेकर वृद्ध अवस्था तक इस यात्रा में हमें कई बार सुखों और दुखों का सामना करना पड़ता है। हालांकि सुख का समय बहुत गति से गुजर जाता है। लेकिन, दुख के समय हमारे अंदर पैदा हुई भावनाओं के बोझ से हमारा हर पल सदियों की तरह गुरता है।
मालूम हो कि हमारे दुख का कारण कुछ भी हो सकता है। जैसे परिवार में आया कोई संकट, काम में हो रही परेशानी, भविष्य की चिंता और किसी को खोने का डर.. ऐसी कई वजहें हैं, जो हमारे दुखों का कारण बनती हैं। वहीं, अगर हम इन सभी समस्याओं का डट कर सामना करें और संयम के साथ ज्ञान प्राप्त करें, तो ये समस्याएं दूर ही नहीं होती बल्की दुखों के सहारे हमारे बड़े-बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारी मदद करती हैं।
आज हम भगवान शिव के द्वारा दिए गए ज्ञान के माध्यम से इन दुखों के अंत के 12 सूत्र आपके सामने रखेंगे। इस ज्ञान के सहारे आप अपने जीवन के लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
दृढ़ निश्चय ही वह मार्ग है जिसके सहारे व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकता है। किसी भी कार्य को करने से पहले दृढ़ संकल्प करना बेहद ही जरुरी है। दृढ़ संकल्प के साथ ही आपका लक्ष्य के प्रति साकारात्मक भाव पैदा हो जाता है।
अगर आपने मन में कुछ करने की ठान ली है तो समाज के लोगों से प्रभावित होना बेकार है, चाहे वे आपके बारे में कितनी भी बुरी बातें कहें। समाज की बातों पर ध्यान देना आपकी प्रगति में बाधा बनेगा। आपको हमेशा शांत रहकर ही अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।
शिव ही दुनिया के सबसे बड़े योगी हैं। ध्यान और योग हमें स्थिर रहना सिखाता है। एक बार महादेव ध्यान में बैठ जाएं तो दुनिया में चाहे कुछ भी हो जाए, उनका ध्यान कोई नहीं तोड़ सकता। शिव के इस गुण से हमें जीवन का गहरा ज्ञान प्राप्त होता है। भले ही आप दुनिया की किसी भी स्थिति में हों, अपने भीतर स्थिर रहना जरूरी है।
भगवान शिव के जीवन को देखकर ऐसा लगता है कि वे हमेशा अपनी प्राथमिकताओं के प्रति जागरूक रहते थे। उन्होंने अपनी पत्नी पार्वती के प्रति प्रेम और सम्मान को सर्वोपरि रखने के साथ-साथ अपने मित्रों और भक्तों को भी उचित स्थान दिया। ये गुण हमारे जीवन में समाज के कर्तव्यों के बारे में बताते हैं।
शिव की जीवनशैली हो या उनका कोई भी अवतार, हर रूप में उनका स्वभाव बिल्कुल अलग रहा है। फिर वह रूप चाहे तांडव करते नटराज का हो, विष पीने वाले नीलकंठ का, अर्धनारीश्वर का या शीघ्र प्रसन्न होने वाले भोलेनाथ का।
जब समुद्र मंथन से विष निकला तो सभी लोग पीछे हट गए क्योंकि विष को कोई पी नहीं सकता था। ऐसे में महादेव ने स्वयं विष (हलाहल) पी लिया और उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। इसकी सीख यह है कि जीवन में परिस्थितियां कितनी भी नकारात्मक क्यों न हों, आपको सकारात्मक रहना चाहिए।
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