India News (इंडिया न्यूज), Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में शिवजी को समर्पित एक प्रमुख व्रत है, जो प्रतिमा तिथि को आधारित होता है। यह व्रत प्रतिमा तिथि के प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा एवं व्रत विधि के रूप में मनाया जाता है। इस व्रत का महत्व है कि इसे भगवान शिव की कृपा पाने और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।

इस साल 2024 में प्रदोष व्रत की तिथियाँ:

  • 2 जुलाई 2024, मंगलवार
  • 17 जुलाई 2024, सोमवार
  • 1 अगस्त 2024, बुधवार
  • 15 अगस्त 2024, बुधवार
  • 30 अगस्त 2024, बुधवार

ये तिथियाँ प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त होते हैं जब शिवजी की पूजा और व्रत का अच्छा फल मिलता है।

शुभ मुहूर्त (2024 में):

 

2 जुलाई 2024, मंगलवार – प्रदोष काल: 19:03 से 21:11 बजे

प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त व्रत की तिथि के दौरान प्रदोष काल में होता है, जो संध्या के समय के बीच अपना समय रखता है। यह व्रत ज्यादातर सोमवार को किया जाता है, जो भगवान शिव को समर्पित होता है। व्रत की शुरुआत प्रदोष काल के प्रारम्भिक समय से होती है और व्रत के अन्त में संध्या के प्रदोष काल में विशेष पूजा और अर्चना की जाती है।

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महत्व:

प्रदोष व्रत का महत्व विशेष रूप से भगवान शिव के प्रसन्नता प्राप्ति में माना जाता है। इस व्रत को करने से विविध प्रकार की संकटों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। इसके अलावा, यह व्रत भक्ति और श्रद्धा के रूप में भी महत्वपूर्ण होता है और भगवान शिव के प्रति विशेष समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

पूजा का तरीका:

स्नान:

व्रत की प्रारंभिक स्थिति में स्नान करें। यह शुद्धता और शुभता का प्रतीक होता है।

पूजा स्थल:

एक शुद्ध और साफ स्थान चुनें जहां आसानी से पूजा की जा सके। शिवलिंग के सामने या शिव मंदिर में पूजा की जाती है।

सामग्री:

पूजा के लिए आवश्यक सामग्री में दीपक, धूप, अगरबत्ती, नैवेद्य (फल या मिठाई), पुष्प (फूल), जल, चावल, कुमकुम आदि शामिल होते हैं।

पूजा का विधान:

 

शुद्ध बुद्धि के साथ शिवलिंग को जल द्वारा स्नान कराएं। फिर कुमकुम और चावल से शिवलिंग को सजाएं।
अर्चना के दौरान मन्त्रों का जाप करें और अपनी भक्ति और श्रद्धा से भगवान शिव को समर्पित करें।
धूप, दीप, अगरबत्ती जलाएं और फूलों की माला से शिवलिंग को अर्पण करें।
नैवेद्य को भगवान के समक्ष रखें और उसे प्रसाद के रूप में माने।

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आरती:

पूजा के अन्त में शिव जी की आरती करें। इसके बाद प्रसाद को वितरित करें।

व्रत का समापन:

व्रत का समापन उपासना करने के बाद करें। भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और निष्ठा का ध्यान रखें।
इस प्रकार, प्रदोष व्रत के दौरान उचित तरीके से पूजा करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और व्रत की सार्थकता मिलती है।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।