India News (इंडिया न्यूज), Mahabharata War: महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन का आत्महत्या का विचार एक गंभीर और महत्वपूर्ण घटना थी। यह घटना महाभारत के एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाती है। आइए जानते हैं इसके पीछे के इतिहास और इसके कारणों के बारे में:
घटना का पृष्ठभूमि
महाभारत के युद्ध में, अर्जुन पांडवों के प्रमुख योद्धा थे। कुरुक्षेत्र के मैदान में जब दोनों पक्ष युद्ध के लिए तैयार हो गए, तब अर्जुन ने अपने रथ के सारथी भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि वे उनके रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले चलें ताकि वे युद्ध में शामिल योद्धाओं को देख सकें।
अर्जुन का संकोच और आत्महत्या का विचार
जब अर्जुन ने अपने संबंधियों, गुरुओं और प्रियजनों को युद्ध के मैदान में देखा, तो वह अत्यंत दुखी हो गए। उन्हें यह विचार आया कि अपने ही परिवार, गुरु और मित्रों के साथ युद्ध करना और उन्हें मारना पाप होगा। अर्जुन ने सोचा कि ऐसे युद्ध में जीतने से अच्छा है कि वे आत्महत्या कर लें। इस विचार से अर्जुन का मन व्याकुल हो गया और उन्होंने अपने हथियारों को त्याग दिया।
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अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण का संवाद
अर्जुन के इस मानसिक स्थिति को देखकर, भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया। भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आत्मा, कर्तव्य, धर्म, और जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में ज्ञान दिया। उन्होंने अर्जुन को समझाया कि आत्मा अजर-अमर है और शरीर का नाश होना स्वाभाविक है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्तव्य पालन की महत्ता बताई और यह समझाया कि योद्धा का कर्तव्य युद्ध करना है, चाहे परिणाम कुछ भी हो।
भगवद गीता का महत्व
भगवद गीता का उपदेश अर्जुन को उनकी कर्तव्यनिष्ठा और नैतिकता के प्रति जागरूक करता है। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि इस युद्ध में अधर्म के विरुद्ध धर्म की विजय सुनिश्चित है और उन्हें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
निष्कर्ष
भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद, अर्जुन ने आत्महत्या का विचार त्याग दिया और अपने कर्तव्य का पालन करने का निश्चय किया। इस घटना ने महाभारत के युद्ध में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया और अर्जुन ने धर्म और कर्तव्य की रक्षा के लिए युद्ध किया।
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इस प्रकार, महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन के आत्महत्या के विचार और भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश का महत्व हमें जीवन में धर्म, कर्तव्य और नैतिकता की सीख देता है।
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