धर्म

आखिर भगवान होकर भी क्यों युधिष्ठिर के पैरों में जा गिरे थे श्रीकृष्ण? जाने क्या कहती हैं पौराणिक कथाएँ-IndiaNews

India News (इंडिया न्यूज), Shri Krishna: महाभारत की पौराणिक कथाओं में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ और गूढ़ संदेश छिपे हुए हैं। इन्हीं घटनाओं में से एक है जब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पैरों में गिरकर उन्हें प्रणाम किया। यह घटना न केवल महाभारत के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें गहरे आध्यात्मिक और नैतिक संदेश भी छिपे हैं। आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी और इसका महत्व:

घटना की पृष्ठभूमि

महाभारत के युद्ध के बाद, पांडवों ने कौरवों को पराजित किया और युधिष्ठिर को राजा बनाया गया। युधिष्ठिर एक धर्मपरायण और सत्यवादी राजा थे, और उन्होंने हमेशा धर्म का पालन किया। युद्ध के बाद युधिष्ठिर के मन में कई प्रकार की उलझनें और दुख थे क्योंकि उन्हें अपने ही संबंधियों का विनाश देखना पड़ा था।

श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर के पैरों में गिरना

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय एक विशेष कारण से उनके पैरों में प्रणाम किया। यह घटना इसलिए हुई क्योंकि श्रीकृष्ण ने यह देखा कि युधिष्ठिर अपने धर्म और कर्तव्य पालन के प्रति अत्यंत गंभीर हैं और उन्होंने हमेशा सत्य और न्याय का पालन किया है।

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कारण और संदेश

धर्म की प्रतिष्ठा:

युधिष्ठिर धर्म के प्रतीक थे और उन्होंने हमेशा सत्य और न्याय का पालन किया। श्रीकृष्ण ने यह संदेश दिया कि धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए, चाहे वह कितना भी सामान्य व्यक्ति क्यों न हो।

प्रेम और आदर:

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को यह संदेश दिया कि सच्चे धर्मी और सत्यवादी व्यक्ति का आदर करना चाहिए। यह भगवान का भी कर्तव्य है कि वे धर्म के प्रतीक का सम्मान करें।

विनम्रता का महत्व:

भगवान श्रीकृष्ण ने यह दिखाया कि भले ही वे स्वयं भगवान हों, विनम्रता का महत्व कभी कम नहीं होता। विनम्रता एक महान गुण है जो व्यक्ति को महान बनाता है।

अहंकार का त्याग:

श्रीकृष्ण ने यह संदेश दिया कि अहंकार का त्याग करके ही व्यक्ति सच्चे धर्म का पालन कर सकता है। यह दिखाया कि भगवान भी बिना अहंकार के कार्य करते हैं।

निष्कर्ष

श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर के पैरों में गिरकर प्रणाम करना महाभारत की एक महत्वपूर्ण घटना है जो हमें धर्म, सत्य, न्याय, विनम्रता, और अहंकार के त्याग का महत्वपूर्ण संदेश देती है। यह घटना यह दर्शाती है कि भगवान भी धर्म के प्रति आदर और सम्मान प्रकट करते हैं और हमें भी अपने जीवन में इन मूल्यों को अपनाना चाहिए।

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इस घटना के माध्यम से पौराणिक कथाएँ हमें यह सिखाती हैं कि सच्चे धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति का सम्मान करना और विनम्रता को अपनाना ही जीवन का सही मार्ग है।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

Prachi Jain

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