धर्म

महाभारत में भीष्म के अंत के बाद इस नियम की उड़ा दी गई थी धज्जियां, फिर ऐसा हुआ था हश्र?

India News (इंडिया न्यूज़), Bhishma Death Story: महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला, जिसमें हर दिन नई रणनीतियां और चौंकाने वाली घटनाएं घटित हुईं। लाखों योद्धाओं की मृत्यु इस भीषण संग्राम का हिस्सा बनी, और कुछ घटनाएं ऐसी थीं जो इतिहास में अमर हो गईं। ऐसा ही एक अद्भुत और रहस्यमय युद्ध महाभारत के 14वें दिन हुआ, जब नियमों को तोड़कर आधी रात तक युद्ध जारी रहा। इस रात का मुख्य पात्र था भीम का पुत्र घटोत्कच, और उसके सामने थे कर्ण, जो वासवी शक्ति के स्वामी थे।

भीष्म के वध के बाद नियम टूटे

महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह का वध एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उनके निधन के बाद, युद्ध के स्थापित नियम टूटने लगे। एक मुख्य नियम यह था कि सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं होता था, लेकिन 14वें दिन यह नियम भंग हो गया। उस दिन सूरज ढलने के बाद भी युद्ध आधी रात तक चलता रहा। इसके पीछे श्रीकृष्ण की योजना और उनकी माया थी, जो इस महान संघर्ष की दिशा को बदलने वाली थी।

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कर्ण की वासवी शक्ति और श्रीकृष्ण की चाल

कर्ण के पास इंद्रदेव द्वारा दी गई वासवी शक्ति थी, जो अचूक और अत्यंत घातक थी। कर्ण ने इस शक्ति का उपयोग अर्जुन को मारने के लिए सोचा था, और यह पांडवों के लिए बड़ा संकट बन सकता था। लेकिन श्रीकृष्ण, जो हर चाल को पहले से जानते थे, ने इस स्थिति से निपटने की योजना बनाई। उनका उद्देश्य था कि कर्ण इस अचूक शक्ति का उपयोग अर्जुन पर न कर सके, इसलिए श्रीकृष्ण ने घटोत्कच को मैदान में उतारने का निश्चय किया।

घटोत्कच का आक्रमण और कौरव सेना में हलचल

सूर्यास्त के बाद जब पांडव सेना विश्राम कर रही थी, तब घटोत्कच ने रात में कौरवों पर हमला किया। वह अपनी मायावी शक्तियों के लिए प्रसिद्ध था और रात में उसकी शक्तियां कई गुना बढ़ जाती थीं। कौरव सेना में घटोत्कच का आतंक छा गया, और कोई भी योद्धा उसे रोक पाने में असमर्थ था। उसकी मायावी शक्तियों ने कौरव सेना को भयभीत कर दिया, और उनकी सेना में त्राहि-त्राहि मच गई।

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दुर्योधन और कर्ण की चिंता

घटोत्कच का आक्रमण इतना प्रबल था कि कौरव सेना बिखरने लगी। तब दुर्योधन ने कर्ण से आग्रह किया कि वह अपनी वासवी शक्ति का उपयोग करे और घटोत्कच का वध करे। कर्ण यह जानता था कि इस शक्ति का उपयोग केवल एक बार किया जा सकता है, और वह इसे अर्जुन के लिए बचाकर रखना चाहता था। लेकिन युद्ध की स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि कर्ण को मजबूरन वासवी शक्ति का उपयोग घटोत्कच पर करना पड़ा।

घटोत्कच का बलिदान

कर्ण ने अपनी अचूक वासवी शक्ति से घटोत्कच पर प्रहार किया, और वह वीर योद्धा रणभूमि में गिर पड़ा। घटोत्कच का वध कौरवों के लिए एक जीत थी, लेकिन यह श्रीकृष्ण की योजना का हिस्सा था। कर्ण ने अपनी सबसे घातक शक्ति का उपयोग कर दिया था, और अब वह अर्जुन के लिए खतरा नहीं रहा। घटोत्कच के बलिदान ने पांडवों को एक बड़ी जीत दिलाई, भले ही यह एक असाधारण योद्धा का अंत था।

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निष्कर्ष: घटोत्कच की वीरता और श्रीकृष्ण की माया

महाभारत के युद्ध की 14वीं रात एक ऐसी घटना थी जिसने युद्ध की दिशा को बदल दिया। घटोत्कच ने अपनी वीरता से पांडवों की रक्षा की, और श्रीकृष्ण की माया ने यह सुनिश्चित किया कि कर्ण अपनी शक्ति का उपयोग अर्जुन पर न कर सके। इस रात ने साबित किया कि महाभारत केवल एक युद्ध नहीं था, बल्कि इसमें कई मायावी शक्तियों और रणनीतियों का खेल भी था। घटोत्कच का बलिदान आज भी वीरता, त्याग और युद्धनीति का प्रतीक माना जाता है।

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Prachi Jain

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