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Ahoi Ashtami Vrat ka mehtav Kyu Dali Jati Hai Mala का महत्व व माला धारण करने का महत्व

Mukta • LAST UPDATED : October 27, 2021, 9:05 am IST

Ahoi Ashtami Vrat ka mehtav Kyu Dali Jati Hai Mala

Ahoi Ashtami Vrat 2021: कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन स्त्रियां अपनी संतान की आयु और आरोग्यता के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखकर पूजा करती हैं। अहोई अष्टमी 28 अक्टूबर, 2021 गुरुवार को आ रही है।

इस दिन प्रात: 9.42 बजे तक पुनर्वस नक्षत्र रहेगा उसके बाद पुष्य नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा। यह व्रत वे स्त्रियां करती हैं जिनकी संतानें होती हैं। अहोई का व्रत करवा चौथ के बाद किया जाता है।

अहोई अष्टमी बच्चों की खुशहाली के लिए किया जाने वाला व्रत है। मां रात्रि को तारे देखकर अपने पुत्र के दीघार्यु होने की कामना करती हैं। उसके बाद महिलाएं व्रत खोलती हैं।

नि:संतान महिलाएं पुत्र प्राप्ति की कामना से अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं। अहोई का व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। व्रत को करने से घर में खुशहाली आती है। दिवाली के दिन पुत्र करवा के जल से स्नान करते हैं।

अहोई अष्टमी व्रत का लाभ (Ahoi Ashtami Vrat 2021)

जिन महिलाओं की संतानें हमेशा अस्वस्थ रहती हैं उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
संतानें होते ही मर जाती हैं, उन्हें भी यह व्रत अवश्य करना चाहिए।
संतानों की अच्छी और लंबी आयु के लिए महिलाओं को यह व्रत करना चाहिए।
यह व्रत माता और पिता दोनों करें तो अधिक फल प्राप्त होता है।

अहोई माला धारण करने का महत्व (Ahoi Ashtami Vrat)

स्याहु माला को संतान की लंबी आयु की कामना के साथ पहना जाता है। दिवाली तक इसे पहनना आवश्यक माना जाता है। हर वर्ष इस माला में एक चांदी का मोती बढ़ाया जाता है। मान्यता है कि इससे  पुत्र की आयु लंबी होती है।

ऐसे करें पूजा (Ahoi Ashtami Vrat )

अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की विधिवत पूजा करें और करवा में जल भरकर रखें। अहोई माता की कथा सुने। स्याहु माता के लॉकेट की पूजा करें, उसके बाद संतान को पास में बैठाकर माला बनाएं।

संतान का तिलक करें और माला धारण करें। करवे के जल से पुत्रों को स्नान भी कराया जाता है। अहोई माता अपने पुत्र की लंबी आयु की प्रार्थना करें।

बिना माला के पूजा हो सकती है क्या? (Ahoi Ashtami 2021 Bina Mala ke Puja kar Sakte hai Kya)

इस बारे में जानेमान विद्वान और ज्योतिषाचार्य मदन गुप्ता सपाटू कहते हैं कि हां। अगर आपकी माता गुम हो गई है तो कोई बात नहीं। आप नई माला ले सकते हैं और उससे पूजा कर सकते हैं।
इसके लिए आप नई माला ले लें और इसे दिवाली तक धारण करके रखें। इस लेख में आपको बताया जाएगा कि माला को कैसे धारण करें और माला गुम जाए तो क्या करें?

इस बार है विशेष संयोग

इस बार विशेष संयोगों के साथ अहोई अष्टमी व्रत आ रहा है। इसमें सवार्थ सिद्धि, गुरु पुष्य योग, अमृत सिद्धि तथा गजकेसरी योग में पड़ रहा है जिसे ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद खास और लाभकारी माना जा रहा है।

इस दिन व्रत के अतिरिक्त सोना, चांदी, मकान, घरेलू सामान, विद्युत या इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, कंप्यूटर या दीर्घ काल में उपयोग की जाने वाली वस्तुएं खरीदने का भी अक्षय तृतीया या धन त्रयोदशी जैसा ही शुभ दिन होगा।

संतान की दीघार्यु जीवन के लिए रखें व्रत (Ahoi Ashtami 2021 Bina Mala ke Puja kar Sakte hai Kya)

इस दिन महिलाएं अहोई माता का व्रत रखती हैं और उनका विधि विधान से पूजा अर्चना करती हैं। यह व्रत संतान के खुशहाल और दीघार्यु जीवन के लिए रखा जाता है। इससे संतान के जीवन में संकटों और कष्टों से रक्षा होती है। अहोई अष्टमी का व्रत महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है। अपनी संतान की मंगलकामना के लिए वे अष्टमी तिथि के दिन निर्जला व्रत रखती हैं। मुख्यत: शाम के समय में अहोई माता की पूजा अर्चना की जाती है। फिर रात्रि के समय तारों को करवे से अर्ध्य देती हैं और उनकी आरती करती हैं।

क्या है अहोई माता की माला का महत्व

अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुनें और सुनाएं। पूजा के पश्चात अपनी सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करती हैं।

अहोई अष्टमी 2021 शुभ मुहूर्त

कार्तिक मास कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ- 28 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार को दोपहर 12 बजकर 49 मिनट से

अष्टमी समाप्त-29 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को दोपहर 02 बजकर 09 मिनट से

अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम 05 बजकर 39 मिनट से शाम 06 बजकर 56 मिनट तक है। पूजा का समय कुल मिलाकर 01 घंटा 17 मिनट रहेगा।

तारों को देखने का संभावित समय- शाम को 06 बजकर 03 मिनट पर

इस व्रत में बायना सास, ननद या जेठानी को दिया जाता है। व्रत पूरा होने पर व्रती महिलाएं अपनी सास और परिवार के बड़े सदस्यों का पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं। इसके बाद वह अन्न जल ग्रहण करती हैं। अहोई माता की माला को दीपावली तक गले में धारण किया जाता है।

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