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Auspicious Dates of Marriage अब शादियां ही शादियां, जानिए शादियों के शुभ मुहूर्त

Auspicious Dates of Marriage जो लोग विशेष मुहूर्तों में विशवास रखते थे उनके लिए सीमित मुहूर्तो के कारण काफी समस्याएं रहीं खासकर प्रवासी भारतीयों के लिए जो विमान यात्राएं नहीं कर सके । कोरोना पाबंदी में ढील आने के बाद दिवाली नें कारोबार में एक उल्लास भरा है।

मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्

वैसे तो यदि विवाहों की शुद्ध तिथियों को देखें तो नवंबर में काफी मुहूर्त रहे हैं परंतु अबचार माह का चातुर्मास पूरा होने को है, इस दौरान 14 नवंबर को देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी से शुभ कार्य शुरू हो जाएंगे। इसके बाद से शुभ विवाह की लग्न का शुभारंभ हो जाएगा।

19 नवंबर से 14 दिसंबर के बीच कुल 12 दिन शादियों का शुभ मुहूर्त है। देवउठनी ग्यारह के ठीक एक दिन बाद यानी 15 नवंबर को माता तुलसी और शालिग्राम का विवाह हिन्दू धर्म के हर घर में संपन्न होगा। इसके बाद अगले दो माह में दिन विवाह के लिए शुभ माने गए हैं। इनमें विवाह या दूसरे शुभ कार्य आयोजित किए जा सकेंगे। इसके बाद 14 दिसंबर से खरमास या मलमास शुरू हो जाएंगे, जो अगले साल 2022 के मकर संक्रांति तक रहेगा, जिस दौरान एक बार फिर शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगी। (Auspicious Time of Marriage)

विवाह के शुभ मुहूर्त (Auspicious Dates of Marriage)

  • विवाह का पहला मुहूर्त 14 नवंबर 2021 को है।
  • नवंबर माह में मुहूर्त इस प्रकार है : 14,15,16,20,21,22,28,29,30,
  • दिसंबर में : 1,2,6,7,8,9,11,13 हैं

2022 के मुहूर्त (Auspicious Dates of Marriage)

  • जनवरी : 22,23,24,25
  • फरवरी : 5,6,7,9,10,11,12,18,19,20,22
  • मार्च: 4,9
  • अप्रैल: 14, 15 1617,1920 21 22,23,24,27

कुछ पंचांगों तथा ज्योतिषीय मतभेदों के अनुसार विवाहों के मुहूर्त नवंबर 2022 के बाद ही निकलेंगे परंतु ऐसा नहीं है। उत्तर भारत के पंचांगो में ऐसा कहीं नहीं लिखा है। पूरे साल 2022 में विवाहों के शुभ अवसर हैं। इस बार 2022 में अक्षय तृतीया 3 मई को पड़ेगी जो अबूझ मुहूर्त कहलाता है] पर भी बहुत विवाह संपन्न होते हैं।

व्यावहारिक कारण (Auspicious Dates of Marriage)

अधिकांश लोग पौष मास में विवाह करना शुभ नहीं मानते। ऐसा भी हो सकता है कि दिसंबर मध्य से लेकर जनवरी मध्य तक उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है, धुनंद के कारण आवागमन भी बाधित रहता है, और खुले आकाश के नीचे विवाह की कुछ रस्में निभाना, प्रतिकूल मौसम के कारण संभव नहीं होता, इसलिए 15 दिसंबर की पौष संक्रांति से लेकर 14 जनवरी की मकर संक्राति तक विवाह न किए जाने के निर्णय को ज्योतिष से जोड़ दिया गया हो।

कुछ समुदायों में ऐसे मुहूर्तो को दरकिनार रख कर रविवार को मध्यान्ह में लावां फेरे या पाणिग्रहण संस्कार करा दिया जाता है। इसके पीछे भी ज्योतिषीय कारण पार्श्व में छिपा होता है। हमारे सौर्यमंडल में सूर्य सबसे बड़ा ग्रह है जो पूरी पृथ्वी को ऊर्जा प्रदान करता है। यह दिन और दिनों की अपेक्षा अधिक शुभ माना गया है। इसके अलावा हर दिन ठीक 12 बजे ] अभिजित मुहूर्त चल रहा होता है। भगवान राम का जन्म भी इसी मुहूर्त काल में हुआ था। (Auspicious Dates of Marriage)

जेैसा इस मुहूर्त के नाम से ही सपष्ट है कि जिसे जीता न जा सके अर्थात ऐसे समय में हम जो कार्य आरंभ करते हैं उसमें विजय प्राप्ति होती है, ऐसे में पाणिग्रहण संस्कार में शुभता रहती है। रविवार को सैबथ डे अर्थात पवित्र दिन मान कर चर्च में शादियां करते हैं। कुछ लोगों को भ्रांति है कि रविवार को अवकाश होता है इसलिए विवाह इतवार को रखे जाते हैं। ऐसा नहीं है। भारत में ही छावनियों तथा कई नगरों में रविवार की बजाय सोमवार को छुट्टी होती है और कई स्थानों पर गुरु या शुक्रवार को । (Auspicious Dates of Marriage)

रविवार को ही सार्वजनिक अवकाश क्यों ?

साल 1890 से पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी. साल 1890 में 10 जून वो दिन था जब रविवार को साप्ताहिक अवकाश के रूप में चुना गया.ब्रिटिश शासन के दौरान मिल मजदूरों को हफ्ते में सातों दिन काम करना पड़ता था। यूनियन नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने पहले साप्ताहिक अवकाश का प्रस्ताव किया जिसे नामंजूर कर दिया गया। अंग्रेजी हुकूमत से 7 साल की सघन लड़ाई के बाद अंग्रेज रविवार को सभी के लिए साप्ताहिक अवकाश बनाने पर राजी हुए.इससे पहले सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी मिलती थी। दुनिया में इस दिन छुट्टी की शुरुआत इसलिए हुई क्योंकि ये ईसाइयों के लिए गिरिजाघर जाकर प्रार्थना करने का दिन होता है।

एक दिन आराम करने से लोगों में रचनात्मक उर्जा बढ़ती है। सबसे पहले भारत में रविवार की छुट्टी मुंबई में दी गई थी। केवल इतना ही नहीं रविवार की छुट्टी होने के पीछे एक और कारण है। दरअसल सभी धर्मों में एक दिन भगवान के नाम का होता है। जैसे की हिंदूओं में सोमवार शिव भगवान का या मंगलवार हनुमान का। ऐसे ही मुस्लिमों में शुक्रवार यानि की जुम्मा होता है। मुस्लिम बहुल्य देशों में शुक्रवार की छुट्टी दी जाती है। इसी तरह ईसाई धर्म में रविवार को ईश्वर का दिन मानते हैं और अंग्रेजों ने भारत में भी उसी परंपरा को बरकरार रखा था। उनके जाने के बाद भी यही चलता रहा और रविवार का दिन छुट्टी का दिन ही बन गया।

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Sameer Saini

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